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बेंगलुरू के बोलते सवाल

स्वतन्त्र भारत में किसी भी समस्या का हल किसी भी तौर पर हिन्दू-मुस्लिम नजरिया नहीं हो सकता। इस देश की हर समस्या का हल केवल और केवल सौहार्द, प्रेम व करुणा के मार्ग से ही निकलता रहा है

स्वतन्त्र भारत में किसी भी समस्या का हल किसी भी तौर पर हिन्दू-मुस्लिम नजरिया नहीं हो सकता। इस देश की हर समस्या का हल केवल और केवल सौहार्द, प्रेम व करुणा  के मार्ग से ही निकलता रहा है और भविष्य में भी इसी तर्ज पर आगे बढ़ता हुआ हिन्दोस्तान तरक्की की नई सीढि़यां चढे़गा। बेशक गांधी के देश में नाथूराम गोडसे भी पैदा हो सकता है परन्तु हर समय और दौर में वह भी एक ‘समस्या’ के रूप में ही देखा जायेगा। गांधी के देश में यदि बेंगलुरू जैसी हिंसा होती है तो पूरे प्रशासन तन्त्र को व्यापक शान्ति अभियान चला कर मुजरिमों को कानून के हवाले करना चाहिए औऱ बिना वक्त गंवाये इसी बेंगलुरू के उन मुस्लिम नौजवानों को शान्ति दूत घोषित करते हुए उनका सार्वजनिक अभिनंदन करना चाहिए जिन्होंने धार्मिक उन्माद में होश खोये हुए अपने ही समुदाय के लोगों को एक मन्दिर को छूने तक से रोका और उसकी सुरक्षा में चक्रव्यूह रच डाला।
 यही घटना स्वयं में भारत की संस्कृति का ‘जय घोष’ करने के लिए काफी है। यही गांधीवाद है जिसका प्रदर्शन कुछ युवकों ने वीरतापूर्वक किया और सिद्ध किया कि अहिंसा में हिंसा को पस्त करने की अजीम ताकत अल्ला ताला ने अता फरमाई है मगर क्या गजब हुआ कि जो पुलिस स्टेशन विधानसभा से केवल दस मिनट की दूरी पर हो और मुख्यमन्त्री निवास से 12 मिनट की दूरी पर हो, उसे ही कुछ दंगाई आकर तहस-नहस कर देते हैं और यह खेल इस तरह करते हैं कि पुलिस स्टेशन में खड़े वाहनों को भी फूंक डालते हैं। बहुमंजिला पुलिस स्टेशन में इस तरह की गई विनाश लीला बताती है कि प्रशासन किस तरह रात में नींद में गहरा सो जाता है। 
दूसरा प्रमुख सवाल यह है कि यह मसला कांग्रेस व भाजपा के बीव वाक् युद्ध का नहीं है बल्कि भारतीयता को बदनाम करने वाले कुछ स्वार्थी तत्वों के खिलाफ युद्ध का है। कर्नाटक में भी एस. येदुयुरप्पा सरकार को यह देखना है कि फेस बुक पर एक विवादास्पद पोस्ट के बाद उपद्रवी तत्वों को इकट्ठा करने में किन लोगों औऱ जमातों का हाथ था। दूसरे यह देखना है कि इस पोस्ट के बहाने कांग्रेस के एक विधायक को निशाना क्यों बनाया गया जबकि उनका पोस्ट से कोई लेना-देना नहीं था। हालांकि उनके किसी रिश्तेदार ने यह पोस्ट लिखी थी जो इस्लाम धर्म के संस्थापक रसूले पाक ‘सल्ले अल्लाह अलहै वसल्लम हजरत मोहम्मद साहब’ की शान में गुस्ताखी करने वाली थी।  इस पोस्ट को लिखने की क्या वजह थी और इसके बाद उग्र प्रदर्शन करने में शामिल होने के लिए लोगों को इकट्ठा करने के पीछे किसका हाथ था? क्या इन लोगों में कुछ असामाजिक तत्व भी शामिल थे? क्या यह कार्य हिन्दू-मुस्लिम भाईचारे को बिगाड़ने  की नीयत से किया गया था? क्योंकि पोस्ट को बाद में फेस बुक से हटा ( डिलीट) दिया गया था। इससे पहली नजर में यही नतीजा निकलता है कि यह साजिश के तौर पर किया गया। अब यह देखना होगा कि एेसी कामों से किस संगठन या पार्टी को अन्तिम रूप से लाभ पहुंचता है? कर्नाटक पुलिस ने फिलहाल एसडीपीआई के कुछ नेताओं को  गिरफ्तार किया है।  एक समुदाय के लोगों को भड़का कर राजनीतिक लाभ उठाने की इनकी गरज हो सकती है मगर हिन्दू समुदाय के लोगोंं को सल्ले अल्लाह अलहै वसल्लम हजरत मोहम्मद साहब के इस्लाम धर्म में ‘मयार’ से कोई शिकवा-शिकायत नहीं हो सकती क्योंकि इस मजहब में उनका स्थान सबसे पाक और सर्वोच्च है।  वैसे इस्लाम में सवा लाख के लगभग पैगम्बर हैं जिनमें गैर इस्लामी भी हैं। 
इस्लाम को मजलूमों का धर्म इसीलिए कहा गया क्योंकि धार्मिक क्षेत्र में समाजवादी चिन्तन की शुरूआत इसी ने 1400 साल पहले की। ऐसे धर्म के अधिष्ठाता के प्रति समाज के हर वर्ग का हर व्यक्ति श्रद्धा से सर ही झुकायेगा। हम भूल जाते हैं कि जब भी कहीं मजहबी दंगे या फसाद अथवा दूसरे धर्म से विवाद होता है तो भारत की अन्तरआत्मा रोने लगती है क्योंकि इसका दर्शन सर्वधर्म समभाव का है जिसमें ईश्वरवादी से लेकर अनीश्वरवादी धर्म एक साथ फलते-फूलते रहे हैं। बेंगलुरू में जो पीड़ादायक घटा उसकी जांच तो आवश्यक है जिससे स्वार्थी तत्वों के चेहरे से नकाब हटाया जा सके मगर इस शहर के उन युवकों को आदर्श मानने की भी जरूरत है जिन्होंने विधायक के घर के सामने बने ही एक हनुमान मन्दिर की सुरक्षा की और फसाद को फैलने से रोका।  हमें हिन्दू-मुस्लिम विमर्श ठुकराते हुए भारतीय विमर्श ही चहुं ओर फैलाना होगा और किसान से लेकर जवान तक को मजबूत बनाना होगा जिससे हमारा देश भारत लगातार और विकास करते हुए मजबूत बन सके। -जय हिन्द।

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