श्रीलंका फिर ड्रैगन के शिकंजे में

श्रीलंका फिर ड्रैगन के शिकंजे में
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भारत के दुश्मन नम्बर वन चीन ने एक बार फिर श्रीलंका को अपने जाल में फंसा लिया है। चीन के कर्ज जाल में दबे श्रीलंका की मजबूरियां भी हैं लेकिन वह भी भारत के साथ दोहरा खेल खेलने में व्यस्त है। कौन नहीं जानता कि चाइना पहले पड़ोसी देशों को अपने कर्ज जाल में फंसाता है और फिर उनकी जमीन और सम्पत्तियां हड़प लेता है। भारत चीन के आर्थिक हमलों का मुकाबला करने के लिए हमेशा दबाव में रहता है। चीन भारत को हर तरफ से घेरने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रहा। नेपाल, बंगलादेश, मालदीव, पाकिस्तान आैर श्रीलंका इसके उदाहरण हैं। चीन भारत के उन 8 पड़ोसी देशों पर लगातार अपनी वित्तीय और सियासी ताकत का शिकंजा कस रहा है जो दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (सार्क) के सदस्य हैं। वैसे तो सार्क इस समय मृतप्राय है। चीन की गतिविधियां भारत के​ लिए बहुत चिंताजनक और चुनौतीपूर्ण हैं। इसके लिए चीन अपनी वित्तीय क्षमताओं और विशाल परियोजनाओं को आर्थिक सहायता देने की अपनी क्षमता का भरपूर इस्तेमाल कर रहा है। यही वजह है कि दक्षिण एशिया के कुछ देशों का झुकाव चीन के प्रति बढ़ रहा है। यह देश अपने मूलभूत ढांचे के विकास और आर्थिक फायदों के लिए चीन से मदद लेने की कोशिश कर रहे हैं। हाल ही में हुई घटनाओं को देखकर साफ है कि दुनिया की भूराजनीतिक, अस्थिरता अब हिन्द महासागर में पहुंच गई है।
नए घटनाक्रम में भारत और श्रीलंका में जो नए समझौते हुए हैं वह भारत के लिए चिंताजनक है। श्रीलंका के प्रधानमंत्री दिनेश गुणवर्धने चीन की यात्रा पर हैं। उन्होंने चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और प्रधानमंत्री ली कियांग के साथ बातचीत के बाद समझौतों पर हस्ताक्षर​ किए। समझौतों के मुताबिक चीन श्रीलंका के गहरे समुद्री बंदरगाह आैर कोलम्बो हवाई अड्डे का पुनर्विकास करेगा। चीन श्रीलंका का सबसे बड़ा ऋणदाता है। श्रीलंका के विदेशी ऋण 2.9 बिलियन डॉलर के आईएमएफ बेलआउट को बनाए रखने के लिए एक महत्वपूर्ण शर्त में भी चीन सहायता करेगा। हालांकि ऋण पुनर्गठन पर बीजिंग की स्थिति सार्वजनिक नहीं की गई है। मगर श्रीलंकाई अधिकारियों ने कहा है कि चीन अपने ऋणों पर कटौती करने के लिए अनिच्छुक था लेकिन वह अब कार्यकाल बढ़ा सकता है और ब्याज दरों को समायोजित कर सकता है। 2022 में श्रीलंका के पास आवश्यक आयातों के वित्तपोषण के लिए विदेशी मुद्रा खत्म हो गई और उसने अपने 46 बिलियन डॉलर के विदेशी ऋण पर संप्रभु डिफ़ॉल्ट की घोषणा कर दी। श्रीलंका में वर्ष 2022 में आर्थिक हालत खस्ता होने के बाद महीनों के विरोध-प्रदर्शन के कारण तत्कालीन राष्ट्रपति गौटबाया राजपक्षे को राष्ट्रपति भवन से बाहर होना पड़ा था। इसके बाद आईएमएफ से बेलआउट पैकेज दिलाने से लेकर विदेशी सहायता देने में भारत सबसे आगे रहा। भारत ने श्रीलंका की अब तक 4 से 5 बिलियन डॉलर तक की मदद की है लेकिन वह अब चीन के गुण गा रहा है।
2022 अप्रैल में श्रीलंका के आर्थिक हालात बहुत बिगड़ गए थे। महंगाई आसमान को छू रही थी और लोग रोजमर्रा के सामान भी नहीं खरीद पा रहे थे। जनता प्रदर्शन करते हुए राष्ट्रपति के आवास में घुस गई थी। तब तत्कालीन राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे को इस्तीफा देना पड़ा था। श्रीलंका की खराब आर्थिक स्थिति के पीछे चीन का हाथ था।
चीन कोरोना से पहले ही श्रीलंका में काफी निवेश कर चुका था और श्रीलंका को कर्जा दे चुका था। हालांकि, कोरोना के बाद इसमें काफी ज्यादा इजाफा हो गया। श्रीलंका बेहतर बुनियादी ढांचे, उच्च रोजगार, इन्कम, आर्थिक स्थिरता के सपनों की वजह से चीनी विदेशी निवेश के आगे झुक गया है जिससे आम लोगों के जीवन स्तर में वृद्धि हुई है। मगर धीरे-धीरे श्रीलंका चीन पर आश्रित हो गया, नतीजा ये है कि श्रीलंका पर 2022 में लगभग 7 बिलियन अमरीकी डॉलर का विदेशी कर्जा था और इसमें चीन का काफी बड़ा हिस्सा है। दरअसल चीन की ओर से दिया जाने वाला कर्ज इंफ्रास्ट्रक्चर से लेकर खनन तक की तमाम योजनाओं में निवेश के तौर पर दिया जाता है। तो, इसे ट्रेस करना आसान नहीं होता है। माना जाता है कि कर्ज समय से न चुका पाने की स्थिति में देशों को मजबूरन चीन के सामने घुटने टेकने पड़ते हैं। पाकिस्तान और नेपाल जैसे देश इसका बेहतरीन उदाहरण माने जा सकते हैं। ऐसे ही श्रीलंका में कई प्रोजेक्ट पर चीन का कब्जा हुआ और श्रीलंका कर्ज में होने की वजह से काफी प्रोजेक्ट लीज पर चले गए। इस वजह से श्रीलंका धीरे-धीरे बर्बादी की ओर बढ़ता गया।
भारत ने उस वक्त श्रीलंका की सहायता की थी। भारत ने अब तक 5 बिलियन डॉलर की मदद की और उसे आईएमएफ से बेलआऊट पैकेज दिलाने में मदद की। भारत ने अनाज और तेल भी दिया लेकिन श्रीलंका अब फिर चीन के गुण गा रहा है। चीन पहले ही हंबनटोटा बंदरगाह हड़प चुका है। भारत के साथ-साथ अमेरिका भी चिंतित है कि हंबनटोटा में चीनी पैर जमाने से हिंद महासागर में उसकी नौसैनिक ताकत बढ़ सकती है। हालांकि, श्रीलंका ने जोर देकर कहा है कि उसके बंदरगाहों का उपयोग किसी भी सैन्य उद्देश्य के लिए नहीं किया जाएगा लेकिन नई दिल्ली हंबनटोटा बंदरगाह पर चीनी जासूसी जहाजों को बुलाने पर आपत्ति जता चुका है। दरअसल, चीन हंबनटोटा बंदरगाह और कोलंबो एयरपोर्ट के विकास के बहाने पूरे हिन्द महासागर की जासूसी करना और उस पर सामरिक वर्चस्व स्थापित करना चाह रहा है जो भारत-अमेरिका समेत अन्य एशियाई देशों के लिए भी चिंता की बात है। भारत को भूराजनीतिक स्थितियों को देखते हुए बहुत सतर्कता से काम लेना होगा।

आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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