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जल उठी श्रीलंका

श्रीलंका में आर्थिक संकट से उपजे असंतोष से देश जल उठा है। जनाक्रोश के दबाव में प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे को इस्तीफा देना पड़ा है। हालात काबू से बाहर हो चुके हैं

श्रीलंका में आर्थिक संकट से उपजे असंतोष से देश जल उठा है। जनाक्रोश के दबाव में प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे को इस्तीफा देना पड़ा है। हालात काबू से बाहर हो चुके हैं। श्रीलंका के सांसद अमर कीर्ति ने भीड़ से बचने के लिए आत्महत्या कर ली है। उग्र भीड़ ने एक पूर्व मंत्री जॉनसन फ्रनाडो को कार समेत झील में फैंक दिया है। हिंसा में अब तक आधा दर्जन लोगों की जान जा चुकी है। प्रदर्शनकारियों ने प्रधानमंत्री समेत 12 से ज्यादा मंत्रियों के घर जला दिए हैं। हालात यहां तक पहुंच गए हैं कि महिंदा राजपक्षे को जान बचाकर किसी सुरक्षित पनाहगाह में छुपना पड़ रहा है। श्रीलंका के हालात पहले ही गृहयुद्ध की ओर पहुंचने के संकेत दे रहे थे। अब तक हमने कई देशों की जनक्रांतियां देखी हैं जहां लोगाें ने निरंकुश तानाशाहों को उखाड़ फैंका था। श्रीलंका का जनाक्रोश राजनीतिक कम भूख के कारण उपजा है। श्रीलंका का विदेशी मुद्रा भंडार खत्म हो चुका है जिससे वह जरूरी चीजों का आयात नहीं कर पा रहा है। श्रीलंका के लोगों को रोजमर्रा की जरूरी चीजें नहीं​ मिल पा रही हैं। अगर मिल भी रही हैं तो कई गुणा महंगी मिल रही हैं।
देश में अनाज,चीनी, दूध मिल्क पाउडर,सब्जियों से लेकर दवाओं तक की कमी है। 13-13 घंटे बिजली नहीं मिल रही। देश में सार्वजनिक परिवहन सेवाएं ठप्प हो चुकी हैं क्योंकि बसों को चलाने के लिए डीजल ही नहीं है। ऐसी ​स्थिति में जनता सड़कों पर न आए तो क्या करे। महिंदा राजपक्षे के इस्तीफे के बाद राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे विपक्षी नेताओं से नई सरकार बनाने के लिए विचार- विमर्श कर रहे हैं। देखना होगा कि नई सरकार बनती भी है या नहीं। सबसे बड़ा सवाल यह है कि श्रीलंका की अर्थव्यवस्था के ध्वस्त होने के पीछे खलनायक कौन-कौन है। इसमें कोई संदेह नहीं कि 74 वर्ष में सबसे बड़े आर्थिक संकट के लिए दो ताकतवर राजनीतिक परिवारों का भ्रष्टाचार और गलत फैसले भी बड़ा कारण है। श्रीलंका की दो सबसे शक्तिशाली पार्टियां हैं। इनमें से एक है श्रीलंका फ्रीडम पार्टी जिसके प्रमुख हैं मैत्रीपाला सिरिसेना और दूसरी पार्टी है श्रीलंका पोडूजाना पैरामुना पार्टी जिसके मुखिया महिंदा राजपक्षे हैं। 2015 से 2019 तक श्रीलंका के राष्ट्रपति रहे सिरिसेना पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे। 2018 में उनके चीफ ऑफ स्टाफ आैर अधिकारियों को रिश्वत लेने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। सिरिसेना के भ्रष्टाचार की पोल पूरी तरह खुल गई है।
ताकतवर राजनीतिक परिवार माने जाने वाले राजपक्षे के गलत फैसले और भ्रष्टाचार ने भी श्रीलंका की हालत बहुत खराब की। राजपक्षे परिवार पर भी भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगते रहे हैं। इसके बावजूद पिछले दो दशक से इस ताकतवर राजनीतिक परिवार की तूती बोलती रही है। राजपक्षे परिवार के पांच सदस्य सरकार में शामिल थे। यानी एक तरह से सत्ता पर परिवार का ही शासन था। इनमें राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे उनके भाई प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे, वित्तमंत्री ​बासिल राजपक्षे, सिंचाई मंत्री चामल राजपक्षे और खेलमंत्री नामल राजपक्षे शामिल थे। राजपक्षे परिवार के शासन में कुछ ऐसी गलतियां हुई जिसने श्रीलंका की लुटिया डूबोकर रख दी। महिंदा राजपक्षे के शासनकाल में श्रीलंका की चीन से नजदीकियां बढ़ी और उसने चीन से बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के लिए सात अरब डालर का लोन लिया लेकिन यह सारी परियोजनाएं एक छलावा साबित हुई और इनमें जमकर भ्रष्टाचार हुआ। दरअसल महिंदा राजपक्षे ने ​तमिल उग्रवादी संगठन लिट्टे को खत्म करने के लिए चीन से मदद ली थी। जिसके चलते श्रीलंका चीन के चंगुल में फंसता चला गया। गोटबाया राजपक्षे 2019 में श्रीलंका के राष्ट्रपति बने। उन्हें भी टैक्स में कटौती से लेकर खेती में रासायनिक खादों के इस्तेमाल पर प्रतिबंध जैसी नीतियों को लागू करने से वर्तमान संकट का जिम्मेदार माना जा रहा है। बासिल राजपक्षे जो अब तक वित्तमंत्री थे उन्हें भी सरकारी ठेकों में कमिशन लेने की वजह से मिस्टर टैन प्रसैंट कहा जाता है यानी कि सरकारी ठेका जिसे भी दिया जाता उस कंपनी से वह 10 प्रतिशत कमिशन लेते थे। उन पर सरकारी खजाने में लाखों डॉलर की हेराफेरी के आरोप लगे लेकिन गोटबाया ने राष्ट्रपति बनते ही उन पर केस खत्म कर दिया था।
श्रीलंका की सरकारों ने कभी भी देश को आत्मनिर्भर बनाने की नीतियों को लागू नहीं किया। श्रीलंका ने वर्ल्ड बैंक, एशियन डवलपमेंट बैंक और इंटरनेशनल मार्किट से जमकर उधार लिया लेकिन वह धन का सही तरीके से इस्तेमाल ही नहीं कर पाया। आमदनी अठन्नी और खर्चा रुपया। हालात ऐसे ही हो गए। 2019 में ईस्टर संडे के दिन कोलंबो में हुए आतंकी हमलों के बाद टूरिजम इंडस्ट्री को नुक्सान पंहुचा और कोरोना महामारी के दौरान श्रीलंका का टूरिजम उद्योग ठप्प हो कर रह गया। भारत लगातार श्रीलंका की मदद कर रहा है। भारत की समस्या यह है कि श्रीलंका संकट का असर भारत में शरणार्थी संकट के तौर पर पड़ सकता है। श्रीलंका भारत के लिए जियो-पॉलिटिकल रूप में बहुत महत्वपूर्ण है। भारत चाहता है कि श्रीलंका किसी न किसी तरह संकट से उबर जाए ताकि वह चीन के ज्यादा करीब न जाए। देखना होगा ​कि लंका की आग कैसे बुझती है। 
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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