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अर्थव्यवस्था में सुधार के कदम

पिछली तिमाही में भारत की सकल विकास वृद्धि दर पांच प्रतिशत होने पर जिस तरह का हाहाकार मचाया जा रहा है उसके राजनैतिक कारण अधिक और आर्थिक कारण कम हैं।

देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने के लिए वित्त मन्त्री श्रीमती निर्मला सीतारमण ने भवन निर्माण व निर्यात क्षेत्र के लिए जो 70 हजार करोड़ रुपये का ‘पैकेज’ घोषित किया है उसका सद्परिणाम निकलना इस बात पर निर्भर करता है कि समग्र रूप में आर्थिक नियमान मजबूत होते जायें। वैसे पिछली तिमाही में भारत की सकल विकास वृद्धि दर पांच प्रतिशत होने पर जिस तरह का हाहाकार मचाया जा रहा है उसके राजनैतिक कारण अधिक और आर्थिक कारण कम हैं। जिस भवन निर्माण उद्योग में मन्दी का ढोल पीटा जा रहा है उसका मुख्य कारण इस क्षेत्र में कालेधन के निवेश का लगभग मृत हो जाना है। 
अतः वित्त मन्त्री द्वारा इस क्षेत्र को 20 हजार करोड़ रुपये का पैकेज दिया जाना उन आवास योजनाओं को पूरा करने में मदद करेगा जिन्हें अपनी गाढ़ी कमाई के बूते पर विभिन्न क्षेत्रों के लोग लेना चाहते हैं और इनमें जिन्होंने अपने हिसाब-किताब में दर्ज रोकड़ा से खरीदने के अनुबन्ध किये हुए हैं। वर्ष 2016 में हुई नोटबन्दी के बाद जमीन-जायदाद के क्षेत्र में कालेधन की खपत लगभग रुक गई है जिसकी वजह से यह क्षेत्र कथित मन्दी की चपेट में है परन्तु इसका खामियाजा भरने के लिए वे लोग नहीं हैं जिन्होंने विभिन्न आवास परियोजनाओं में अपने आयकर के हिसाब में आयी कमाई को डाला है। अतः ऐसी परियोजनाओं को पूरा करने के लिए वित्त मन्त्री द्वारा उठाये गये कदम का सामान्य नागरिकों द्वारा स्वागत किया जाना चाहिए।
जहां तक समग्रता में भवन निर्माण उद्योग का सवाल है तो कालेधन के बूते पर किया गये विकास को विकास नहीं कहा जा सकता बल्कि इसे उत्पादनशील क्षेत्र में होने वाले निवेश का अवरोधक ही कहा जायेगा। अतः हमें गैरसंगठित क्षेत्र की अर्थव्यवस्था को और मजबूत बनाने के उपायों की तरफ देखना चाहिए जिनमें स्थायी तौर पर रोजगार की संभावनाएं होती हैं। वित्त मन्त्री ने निर्यात क्षेत्र के लिए जो पचास हजार करोड़ रुपये की मदद स्कीम लागू करने का फैसला किया है उससे निश्चित रूप से निर्यात आय बढ़ाने में मदद मिलेगी क्योंकि नई योजना के तहत निर्यातित माल पर विभिन्न शुल्कों की क्षतिपूर्ति सरकार इस प्रकार करेगी जिससे निर्यात को लगातार अपना उत्पादन बढ़ाने में मदद मिले। 
वाणिज्यिक या मर्चेडाइज निर्यात इस बात पर निर्भर करता है कि उसकी उत्पादन लागत अन्य देशों के मुकाबले कितनी किफायती पड़ती है। भारत ने कम्प्यूटर साफ्टवेयर निर्यात क्षेत्र में पिछले दो दशकों में छलांग लगाकर पूरी दुनिया को चौंका रखा है परन्तु अब इस क्षेत्र में भी कड़ी प्रतियोगिता बनती जा रही है। दूसरे टेक्सटाइल्स व चमड़ा उत्पादों के क्षेत्र में भारत का निर्यात कारोबार सर्वाधिक होता रहा है। इनमें चमड़ा उत्पादों के क्षेत्र में बांग्लादेश उसे कड़ी प्रतियोगिता दे रहा है क्योंकि वहां भारत के मुकाबले उत्पादन लागत सस्ती पड़ती है। एक टेक्सटाइल्स क्षेत्र ऐसा है जिसमें भारत का पारंपरिक रूप से हाथ ऊंचा रहा है और वह आज भी है।
इसकी वजह इस देश में फैले हुनरमन्द दस्तकार और कशीदाकार हैं  लेकिन अब जमाना जिस तेजी से बदल रहा है उसे देखते हुए विभिन्न औद्योगिक क्षेत्रों में भारत को अपनी उत्पादन लागत को कम से कम करते हुए विश्व बाजार में प्रतियोगिता करनी पड़ेगी और इसमें उसका सबसे कड़ा मुकाबला चीन से है। अतः विभिन्न उत्पादों के टेक्नोलोजी उन्नयन से ही आगे बढ़ा जा सकता है। दुर्भाग्य से हमने इस तरफ मन से मेहनत नहीं की है। हालांकि मोटर-वाहन उद्योग की वृद्धि दर में कमी होने के अनेक कारण हैं परन्तु एक कारण यह भी है कि अगले दशक तक विभिन्न वाहन पैट्रोल के स्थान पर बिजली से चलने लगेंगे। इस दिशा में भारत यथोचित कदम उठा रहा है परन्तु इसमें प्रतियोगिता का क्या माहौल बनेगा इस बारे में अभी ठीक से नहीं कहा जा सकता है। मोटर-वाहन के निर्यात में भी भारत आगे बढ़ रहा था और दुनिया की लगभग हर कम्पनी अपने वाहनों का उत्पादन कर रही थी। 
इसका दोष नोटबन्दी पर मढ़ देना उचित इसलिए नहीं है क्योंकि कालेधन के अलोप हो जाने का असर इस उद्योग पर भी पड़ना शुरू हुआ है। बेशक बैंकिंग उद्योग में बट्टेखाते में जाने वाले ऋणों के बोझ से बढ़ने के असर से वाहनों की एवज में दिये जाने वाले ऋण मानकों में कसाव आया है परन्तु यह उत्पादन की गति को ही आधा बना देने के सक्षम नहीं है। जाहिरा तौर पर इसका कारण दूसरा है जो वाहनों की बिक्री में कमी ला रहा है। सबसे महत्वपूर्ण यह है कि टेक्सटाइल्स उद्योग के निर्यात बाजार को भारत लगातार मजबूत बनाये रखे और आर्थिक भूमंडलीकरण के चलते इन क्षेत्रों में विदेशी निवेश अधिक से अधिक आकर्षित करे जिनका निर्यात बाजार बहुत प्रबल हो मगर इस सबसे भी ज्यादा जरूरी और आवश्यक है कि हमारे असंगठित क्षेत्र की अर्थव्यवस्था ज्यादा से ज्यादा मजबूत हो जिससे घरेलू मांग में लगातार इजाफा होता रहे वित्त मन्त्री को इस तरफ भी ध्यान देना चाहिए।

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