सीएए अर्थात संशोधित नागरिक कानून पर जिस तरह देश की राजधानी दिल्ली के कुछ इलाकों में साम्प्रदायिक हिंसा का तांडव हुआ है उससे भारत का सर शर्म से नीचा हो गया है। एक तरफ भारत यात्रा पर आये अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प भारत की धार्मिक विविधता के बीच बनी इस राष्ट्र की मजबूती का बखान करते हैं और दूसरी तरफ हम भारतीय धार्मिक विविधता को बीच में लाकर ही आपस में लड़ रहे हैं। यह सिर्फ पागलपन है जो हर सूरत में बन्द होना जाना चाहिए। सीएए के मुद्दे पर साम्प्रदायिक उन्माद पैदा करके हम भारत की उस एकता को ही कमजोर कर रहे हैं जिसे बनाये रखने के लिए हमारे लाखों स्वतन्त्रता सेनानियों ने बलिदान दिये।
उनका यह बलिदान उस दिन व्यर्थ चला जायेगा जिस दिन हिन्दू और मुसलमान आपस में एक-दूसरे को शंका की नजरों से देखने लगेंगे। इस स्थिति को समाप्त किये बिना भारत उस ऊंचाई को प्राप्त नहीं कर सकता जिसका वह हकदार है और हमारी नई पीढ़ियों ने उसे अपने ज्ञान की शक्ति के बूते पर विश्व में विशिष्ट स्थान दिलाया है। इनमें हिन्दू भी शामिल हैं और मुसलमान भी तथा अन्य सम्प्रदायों के लोग भी। भारत सभी का है और हर धर्म काे मानने वाले लोग भारत माता की सन्तान हैं मगर उत्तर-पूर्वी दिल्ली के यमुनापार इलाकों में नफरत को अपना ईमान मानने वाले लोग दोनों समुदायों के बीच हिंसा का बाजार गर्म करना चाहते हैं जिसे रोकने के लिए स्वयं समझदार नागरिकों को ही आगे आने होगा।
सीएए का मुद्दा पूरी तरह कानूनी है और इसका फैसला देश का सर्वोच्च न्यायालय ही करेगा। मैंने कल भी आगाह किया था कि सवाल हिन्दू या मुसलमान का नहीं बल्कि ‘नागरिक’ का है। अतः इसके विरोध या समर्थन में सम्प्रदायगत भावना का आना अनुचित कहा जायेगा। अतः इसे लेकर धर्म के आधार पर गोलबन्दी पूरी तरह अमान्य कही जायेगी। इसकी वजह से भारत के नागरिक साम्प्रदायिक खेमों में नहीं बंटने चाहिए क्योंकि पाकिस्तान, अफगानिस्तान व बंगलादेश में रहने वाले अल्पसंख्यक मानवीयता के आधार पर ही भारत में शरण लेना चाहेंगे और उन्हें भारत की नागरिकता प्रदान करने का अधिकार भी मानवीयता के आधार पर ही संविधान देगा , अब इस मानवीयता का दायरा कहां तक हो? इसी पर मुख्य विवाद है जो कानूनी समीक्षा के घेरे में है परन्तु इसे साम्प्रदायिक नजरिये से देखने की बदौलत ही दिल्ली में अभी तक दस नागरिकों की जान चली गई है और 136 के लगभग जख्मी हैं।
पुलिस को भी जिस तरह कुछ लोगों ने निशाना बनाने की कोशिश की है उसका समर्थन कोई भी नागरिक नहीं कर सकता है। इन संघर्ष में पुलिस कर्मियों का मरना भी बताता है कि पागलपन किस हद तक पहुंच चुका है। दूसरी तरफ पुलिस का भी यह प्राथमिक कर्त्तव्य है कि वह हिंसा फैलाने वाले किसी भी समुदाय के लोगों के प्रति नरमी न बरते। ऐसे लोग जो साम्प्रदायिक उन्माद फैला कर बेगुनाह लोगों की हत्याएं करा रहे हैं वे हर दृष्टि से देश के दुश्मन ही नहीं बल्कि राष्ट्रद्रोही हैं। दो सम्प्रदायों के बीच रंजिश पैदा करना या दुश्मनी पैदा करने की तजवीजें बनाना हिन्दोस्तान के कानून में संगीन जुर्म है, परन्तु इसके साथ ही बयान बहादुरी दिखाने वाले राजनैतिक नेताओं पर भी लगाम कसने की जरूरत होगी और प्रत्येक राजनैतिक दल को सबसे पहले राष्ट्रीय एकता के प्रति अपनी जिम्मेदारी दिखानी होगी। पुलिस को केवल संविधान और कानून के तहत काम करते हुए पूरी निष्पक्षता के साथ शान्ति और अमन कायम करने का कार्य करना होगा।
कोई भी देश केवल बड़ी-बड़ी सेनाएं व आधुनिक सामरिक साजो-सामान रखने से ही मजबूत नहीं होता बल्कि नागरिकों के भाईचारे व एकता से मजबूत होता है। इसका असर देश की रक्षा सम्बन्धी तैयारी से लेकर विकास के कार्यक्रमों तक सकारात्मक रूप से पड़ता है। अतः हर नागरिक का पहला कर्त्तव्य है कि वह इस पागलपन को अपनी हैसियत के मुताबिक खत्म करने का प्रण ले। साम्प्रदायिक उन्माद किसी भी देश की अर्थव्यवस्था को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाता है और सभी प्रकार की गतिविधियों पर उल्टा असर डालता है।
सीएए कोई ऐसा मुद्दा नहीं है कि हम आपस में एक-दूसरे सम्प्रदाय के लोगों को शक की नजरों से देखें। स्वतन्त्र भारत के इतिहास में ऐसे बहुत से कानून बने हैं जिनकी जांच-परख सर्वोच्च न्यायालय ने की है। जाहिर है ये सभी कानून भारत की संसद ने ही बनाये थे। अतः अब इसके विरोध में धरने-प्रदर्शन बन्द होने चाहिएं और समर्थन में क्रुद्ध भाव का विलोप होना चाहिए क्योंकि भारत हिन्दुओं का भी है और मुसलमानों का भी।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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