संयुक्त राष्ट्र 75 वर्ष का हो गया है। दूसरे विश्व युद्ध के बाद संयुक्त राज्य का गठन हुआ था। संयुक्त राष्ट्र को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी सम्बोधित किया और चीन के राष्ट्रपति शी-जिनपिंग ने भी सम्बोधित किया। दोनों ने ही लगभग एक जैसी बात कही कि दुनिया अब बहुध्रुवीय हो गई है और इस लिहाज से संयुक्त राष्ट्र को संतुलित होने की जरूरत है। प्रधानमंत्री मोदी ने अपने सम्बोधन में कहा कि ’75 साल पहले युद्ध की भयावहता के बाद एक नई उम्मीद जगी थी। मानव इतिहास में पहली बार कई संस्थान पूरी दुनिया के लिए बनाया गया था। भारत यूएन चार्टर का शुरू से ही हिस्सा रहा है। भारत का अपना दर्शन भी वसुधैव कुटुंबकम का रहा है। हम पूरी दुनिया को अपना परिवार मानते हैं। संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन में भारत की भूमिका अहम है। हालांकि अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। टकराव से बचना, विकास को गति देना। जलवायु परिवर्तन और विषमता से कम करने की चुनौती कायम है।
चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने एक ध्रुवीय दुनिया का विरोध किया और कहा कि कोई एक देश पूरी दुनिया का बॉस नहीं बन सकता। जाहिर है शी-जिनपिंग के निशाने पर अमेरिका था। शीत युद्ध वाली मानसिकता से हमें कुछ हासिल नहीं होगा, बल्कि चुनौतियों से साथ मिलकर लड़ना होगा। हमें टकराव की जगह संवाद लाना होगा। दादागिरी की जगह बातचीत और पारम्परिक हितों को बढ़ावा देना होगा। चीन किसी देश से युद्ध नहीं चाहता। बातें तो शीजिनपिंग ने बहुत अच्छी-अच्छी कहीं हैं लेकिन चीन का आचरण इसके पूरी तरह विपरीत है। उसके सभी मुखौटे एक-एक करके सामने आ रहे हैं। उसकी कथनी और करनी में काफी अंतर है। भारत और चीन दोनों परमाणु शक्ति सम्पन्न देश हैं और दोनों देशों की सेना सरहद पर आमने-सामने हैं, तनाव इतना ज्यादा है कि दोनों तरफ से सीमा और सैनिकों और हथियारों की व्यवस्था की जा रही है। सोमवार को एलएसी पर तनाव कम करने के लिए कमांडर स्तर के छठे चरण की बातचीत के बाद सांझा बयान जारी किया गया है। दोनों देशों के सांझा बयान पर बताया गया है कि सीमा पर भारत-चीन और सैनिकों को भेजना बंद करेंगे। इस बात पर भी सहमति बनी है कि सीमा पर कोई भी पक्ष एक तरफा यथास्थिति को नहीं बदलेगा। दोनों देश इस बात पर सहमत हैं कि गतिरोध खत्म करने के लिए बातचीत की जरूरत है। यह सब बातें तो ठीक हैं लेकिन भारत के लिए महत्वपूर्ण यह है कि क्या चीन अपने सैनिकों को पीछे हटाने को तैयार हैं या नहीं। भारत उसे दो टूक कह चुका है कि चीनी सैनिकों को पीछे हटकर पूर्व स्थिति बहाल करनी चाहिए। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह चीनी नेतृत्व को दो टूक कह चुके हैं कि भारत अपनी एक इंच भूमि भी नहीं छोड़ेगा।
फिलहाल चीन अपने सैनिकों को वापिस बुलाने पर सहमत नहीं हुआ है। भारत ने कहा है कि चीन टकराव वाले सभी इलाकों से अपने सैनिकों को वापिस बुलाए। हालांकि सीमा पर अब भी हालात पहले की तरह हैं। सीमा विवाद का हल पूरी तरह व्यावहारिक दृष्टि से ही निकाला जाना चाहिए। यह बात चीन को समझनी चाहिए कि भारत चीन की भौगोलिक सीमाओं का पूरा सम्मान करता है और उसने तिब्बत को भी उसका अंग स्वीकार कर लिया है तो फिर वह बार-बार सीमा विवाद क्यों पैदा करता है। यह बात भी उसे समझनी चाहिए कि भारत और चीन दोनों विश्व की तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाएं हैं और इनके आर्थिक हित एक-दूसरे से सहयोग किए बिना संरक्षित नहीं रह सकते। मगर जैसे ही दोनों देशों की गाड़ी कुछ आगे खिंचती है तो चीन की तरफ से सीमा विवाद छेड़ दिया जाता है।
तनाव के बीच ग्लोबल सिक्योरिटी कंसल्टेंसी की नई रिपोर्ट में कहा गया है कि 2017 में डोकलाम तनाव के बाद एलएसी पर चीन ने अपनी ताकत दोगुनी की है। डोकलाम में मुंह की खाने के बाद चीन ने अपनी रणनीति पूरी तरह बदल दी थी। चीन ने वास्तविक नियंत्रण रेखा पर कम से कम 13 नए सैन्य ठिकानों का निर्माण शुरू कर दिया है। इनमें तीन एयरबेस, पांच स्थाई रक्षा तैनातियों और पांच हेलिपोर्ट शामिल हैं। रक्षा विशेषज्ञ सिम टैंक की तैयार की गई रिपोर्ट में बताया गया है कि चीन की निर्माण परियोजनाओं का अभियान भविष्य की सैन्य क्षमताओं को और मजबूत करने के लिए है। चीन का इरादा लम्बे समय तक भारत के साथ सीमा पर तनाव कायम रखना चाहता है। यह तनाव दो देशों के दायरे के बाहर भी जा सकता है। ऐसी रिपोर्टों को देखते हुए भारत भी एलएसी पर अपनी स्थिति को मजबूत बना रहा है। तनाव कब खत्म होगा, फिलहाल कुछ कहा नहीं जा सकता क्योंकि कुछ बातों का फैसला वक्त ही करता है। हमारे जवानों का जोश काफी हाई है। राष्ट्र को हर स्थिति का मुकाबला करने के लिए तैयार रहना होगा। राष्ट्र के लिए आह्वान।
‘‘नाचै रणचंडिका कि उतरे प्रलय हिमालय पर
फटे अतल पाताल की झर-झर हरि मृत्यु अम्बर है
मन की व्यथा समेट, न तो अपने मन से हारेगा
मर जाएगा स्वयं, सर्प को अगर नहीं मारेगा।’’