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सुपर टेक को सुपर झटका

आम आदमी का सपना होता है कि उसे सुन्दर सा फ्लैट मिल जाए। जहां वह परिवार के साथ ​जिंदगी जी सके। नौकरीपेशा लोग जो अपने पैतृक शहर से कहीं दूर किसी बड़े शहर में काम करने लग जाते हैं

आम आदमी का सपना होता है कि उसे सुन्दर सा फ्लैट मिल जाए। जहां वह परिवार के साथ ​जिंदगी जी सके। नौकरीपेशा लोग जो अपने पैतृक शहर से कहीं दूर किसी बड़े शहर में काम करने लग जाते हैं, उन्हें जिन्दगी भर एक अच्छे आशियाने की तलाश रहती है। देश में वैसे तो करोड़ों लोग ऐसे हैं जिनके पास अपना घर नहीं है। मध्यम वर्गीय लोग अपना आशियाना बनाने के लिए अपनी इच्छाओं को कुचल कर पैसा-पैसा बचाते हैं कि परिवार को एक छत नसीब हो जाए लेकिन वह ​बिल्डर माफिया के जाल में ऐसे फंसते हैं कि निकल ही नहीं पाते। सरकारें आती-जाती रहती हैं, कोर्ट में मुकदमे चलते रहते हैं लेकिन फ्लैट नहीं मिलता। उन लोगों की दुख भरी दास्तान सुनिये तो आपकी आंखों में आंसू आ जाएंगे। किसी ने घर के आभूषण बेचे तो किसी ने रिटायरमैंट पर मिले भविष्य निधि का सारा धन फ्लैट की बुकिंग में लगा दिया। अब ना तो उनके पास कोई पूंजी बची है। ऊपर से मकान का किराया भी देना पड़ रहा है। जिन लोगों ने निवेश के उद्देश्य से फ्लैट की बुकिंग कराई थी, वे तो झटका सहन कर लेंगे क्योंकि उनके पास अपना घर होता है, लेकिन जो किराए के मकानों में भटक रहे हैं, उनका क्या होगा। जिन लोगों ने बैंक से ऋण लेकर फ्लैट की किश्तें चुकाई हैं लेकिन उन्हें फ्लैट भी नहीं मिला। उन पर तो दोहरी मार पड़ रही है। बैंक की किश्तें भी चुकानी हैं और मकान का किराया भी देना है। लाखों ऐसे केस देश की अदालतों में लम्बित पड़े हैं। सुप्रीम कोर्ट ने नोएडा के सुपर टेक की चालीस-चालीस मंजिला दो टावर गिराने के आदेश देकर एक महत्वपूर्ण फैसला किया है। बिल्डर ने सभी नियमों और कानूनों की धज्जियां उड़ाते हुए यह दोनों टावर खड़े कर लिए थे। नोएडा और ग्रेटर नोएडा में बनी बहुमंजिला बहुत सुन्दर दिखाई देती है लेकिन खाली पड़े हुए हैं। दोनों जगह लगभग चार लाख के करीब लोगों को फ्लैटों का कब्जा नहीं मिला है। 
परियोजनाओं को लेकर विवाद अदालतों में हैं। बिल्डर तो जेल में बैठकर भी अपनी सम्पत्तियों का निपटारा कर लेते हैं। भूमिगत कार्यालय बनाकर जेल से पैरोल ​पर रिहा होकर इन कार्यालयों से काम करते हुए सौदे करते रहे। जेल में भी उन्हें सब सुविधाएं हासिल हो जाती हैं, जिनसे वह जेल से ही व्यापार करने में सक्षम हो जाते हैं।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले से बिल्डर माफिया को एक सख्त संदेश तो गया ही साथ ही ऐसे प्राधिकरणों को भी सबक मिलेगा जिनके अधिकारी बिल्डरों से साठगांठ कर लोगों को लूटने का मार्ग प्रशस्त करते हैं। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 11 अप्रैल, 2014 को अवैध रूप से बने दोनों टावरों को गिराने का निर्देश दिया था। उसके बाद बिल्डर कम्पनी ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया कि कानूनी दांवपेचों के चलते उन्हें राहत मिल जाए। सात वर्ष बीत गए। फ्लैट खरीददार फैसले का इंतजार कर रहे थे। सर्वोच्च अदालत ने निवेशकों का दर्द महसूस किया और सुपरटेक को यह निर्देश दिया कि वह इस परियोजना के खरीददारों को 12 फीसदी ब्याज के साथ पूरा पैसा दो महीने के भीतर लौटाएं। सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि फ्लैट खरीददारों को बिल्डरों और योजनाकारों के बीच नापाक गठजोड़ का परिणाम भुगतना पड़ा। कोर्ट ने नोएडा प्राधिकरणों के अधिकारियों के खिलाफ एक्शन चलाने का निर्देश दिया। अब इस प्राधिकरण के अधिकारियों पर भी कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए, जिनके कार्यकाल में यह 40 मंजिला टावर खड़े हुए। आज आप अपने घर के बाहर सौ ईंट रखवा लें, निगम से लेकर प्राधिकरण तक के कर्मचारी पूछने आ जाते हैं लेकिन यहां तो आसमान छूती ​बिल्डिंग बन गई किसी ने कोई कार्रवाही नहीं की। किसी को पता ही नहीं चला। यह बात किसी से छिपी हुई नहीं कि बिल्डर, राजनीतिज्ञों और माफिया गठजोड़ का शिकार जनता हो रही है। यह देश का दुर्भाग्य ही है कि जनता के हितों की रक्षा के लिए कानून बनाए जाते हैं।  बिल्डरों की आर्थिक ताकत और नियोजन निकायों द्वारा संचालित कानूनी अधिकार की ताकत के खिलाफ जो लोग आवाज उठाते हैं, उन्हें लम्बी खर्चीली कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ती है। सुप्रीम कोर्ट ने उनकी चिंताओं की रक्षा के लिए ही ऐसा सख्त फैसला दिया है। अभी भी कम्पनी सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका जरूर डालेगी और राहत का आग्रह करेगी। 
सवाल यह है कि फिर तारीख पर तारीख पड़ेगी, खरीददारों को आशियाना या पैसा कब मिलेगा। उन्हें वास्तविक न्याय तभी मिलेगा जब उनके हाथ में धन वापिस आएगा। उन लोगों के नाम भी उजागर होने चाहिएं, जिन्होंने बिल्डर की गैर कानूनी कार्यों के प्रति आंखें मूंदे रखीं और अपनी जेबें भरीं। पिछले दो दशकों में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में बड़ी संख्या में आवासीय परियोजनाएं खड़ी हो गईं। नामी-गिरामी कम्पनियों ने लोगों को सब्जबाग दिखाकर अरबों का कारोबार खड़ा कर लिया। एक प्रोजैक्ट पूरा नहीं हुआ कि उसके पैसे से दूसरा प्रोजैक्ट शुरू कर लिया। अरबों रुपए के धन का हेरफेर किया गया। इन कम्पनियों के निदेशकों ने विदेशों तक में अपनी सम्पत्तियां बना लीं। कई बार तो प्राधिकरणों ने बिल्डर की योजना के अनुरूप नियमों में परिवर्तन कर दिया। अब इस मामले में सारा काम उत्तर प्रदेश सरकार को करना होगा। जनता को उसकी मेहनत की कमाई उसे लौटानी होगी।

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