आजकल हर तरफ जय माता दी हो रही है। पवित्र नवरात्रे चल रहे हैं और लोग बहुत मर्यादित एवं अनुशासित होकर माता की पूजा में लगे हुए हैं। जीवन में अनुशासन का महत्व बहुत ज्यादा है। मां दुर्गा की नौ दिन तक पूजा चलती है। इसी संदर्भ में एक और विषय नारी सुरक्षा से भी जुड़ा है। खुद मां दुर्गा ने अपनी शक्तियां दिखाते हुए नारी की सुरक्षा की थी। मेरा व्यक्तिगत तौर पर मानना है कि सामाजिक जीवन में नारी की सुरक्षा होनी ही चाहिए। नारी की सुरक्षा नारी ही करें ये जरूरी नहीं, बल्कि समाज में रहने वाले हर वर्ग का नारी सुरक्षा सुनिश्चित करने का परम कर्त्तव्य होना चाहिए। कहा भी गया है –
यत्र नार्यस्तु पूज्यंते
रमन्ते तत्र देवताः
अर्थात जहां नारी की पूजा की जाती है वहां देवताओं का वास होता है। पिछले दिनों मैं एक जैन शिष्टमंडल के साथ तेरा पंथ के महान जैन संत आचार्य महाश्रमण जी के दर्शन के लिए गुजरात के शहर सूरत गई थी। जैन समाज का अनुरोध आचार्य महाश्रमण जी के दिल्ली चातुर्मास को लेकर था। दरअसल 2027 का चातुर्मास दिल्ली में हो यह अर्ज करने के लिए जैन समाज के वरिष्ठों और प्रतिष्ठित प्रतिनिधि मुझे भी विशेष रूप से अपने साथ लेकर गए थे। मैंने जैन प्रतिनिधियों के स्नेहपूर्ण व्यवहार को देखते हुए उनके साथ चलना स्वीकार किया था और स्लोगन दिया 'दिल्ली से आए हैं दिल्ली लेकर जाएंगे'। आचार्य महाश्रमण जी ने 2027 का दिल्ली चातुर्मास स्वीकार कर लिया। मैंने इस बात का उल्लेख इसलिए किया है कि सूरत में जीवन बहुत ही अनुशासित, मर्यादित और उस संयम एवं धैर्यशीलता के साथ था जिसके लिए जैन समाज जाना जाता है। जिओ और जीने दो एवं अहिंसा परमो धर्म:। सही मायनों में जैन धर्म का एक सबसे बड़ा मंत्र है जिसे वह जीवन में निभाते हैं। सामाजिक सुरक्षा को लेकर मेरी जहां कई जैन हस्तियों से बातचीत हुई तो वहीं सब ने सूरत का उदाहरण दिया कि यहां रात के दो बजे भी महिलाएं सुरक्षित हैं। वे कहीं भी आ और जा सकती हैं। लोग भी बहुत मर्यादित हैं और महिलाओं की सबसे ज्यादा इज्जत करने वाले हैं। आज के जमाने में जब दिल्ली जैसे शहर में या देश के किसी भी हिस्से से महिलाओं के यौन शोषण या बलात्कार संबंधी खबरें सुनते हैं तो मन विचलित हो जाता है लेकिन हर किसी ने सूरत में नारी और सामाजिक सुरक्षा के मामले में दिल खोलकर नारी सुरक्षा और उसके सम्मान को प्राथमिकता की बात कही। लोगों ने बताया कि आजकल नवरात्रों में सूरत शहर में अनेकों स्थानों पर गरबा चल रहा है आैर ढाई-ढाई, तीन-तीन बजे तक डांडिया चलता है। लड़कियां और महिलाएं बेरोकटोक और बिना खौफ रात में आती-जाती हैं, इसे कहते हैं सुरक्षा। बिना किसी डर के वह कहीं भी आ-जा सकती हैं। नारी सुरक्षा के प्रति वहां लोगों के दिलों में सम्मान है। वहां पुलिस और अन्य सामाजिक संगठन हर कोई महिलाओं की बात सुनता है और उनकी सुरक्षा के लिए तत्पर रहता है। काश, यह सामाजिक सुरक्षा का मॉडल पूरे देश में सूरत जैसा हो जाए तो देश के सामाजिक रिश्तों और तानेबाने की सूरत भी बदल जायेगी। नारी अपराधों के मामलों में फास्ट ट्रैक व्यवस्था के बावजूद तारीख पर तारीख भी चलती है तथा इंसाफ सही वक्त पर नहीं मिल पाता और जल्दी न्याय दिलाने की व्यवस्था भी जरूरी है।
मूल रूप से हम आर्य समाजी लोग हैं लेकिन मैं विशेष रूप से जैन समाज के समारोहों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेती हूं। आचार्य महाश्रमण जी स्वयं में एक बहुत ही सम्मानित, परमश्रध्येय और सामाजिक सुरक्षा के साथ-साथ परोपकार की मूर्ति हैं। बहुत ही संवेदनशील हैं। कुछ वर्ष पहले दिल्ली में एक जैन साध्वी कनक जी अस्पताल में भर्ती थीं और जैन संत आचार्य महाश्रमण जी भ्रमण पर थे लेकिन उन्होंने अपनी पैदल यात्रा का रूप बदला और जैन साध्वी कनक जी से उनकी कुशलक्षेम पूछने के लिए अस्पताल पहुंच गए। महिलाओं के प्रति सम्मान की यह भावना हर संत में नहीं है और अन्य बाबाओं के बारे में किस्से लोग अवश्य जानते होंगे। सच्चा संत वही है जो नारी सम्मान और सुरक्षा की बात करे और जैन समाज के संत विशेष रूप से आचार्य महाश्रमण जी अनुशासन, विनम्रता का एक बड़ा उदाहरण हैं जो राष्ट्र के दर्पण के रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है। इसे कहते हैं नारी का सम्मान लेकिन इस मामले में देश में नारी के प्रित पुरुषों की मानसिकता ही विकृत है जिसे बदलना होगा। सूरत से इस भावना को एक रोल माॅडल के रूप में परिभाषित करना होगा।
सामाजिक सुरक्षा का सूरत एक सचमुच उदाहरणीय मॉडल है जिसे पूरे देश को आत्मसात करना चाहिए। धर्म सभी अच्छे हैं और करोड़ों लोगों की अपने-अपने धर्म में आस्था है। सभी धर्म अनुसरणीय हैं लेकिन जैन धर्म तो अपने आप में उदाहरणीय है। जो िजओ और जीने दो के सिद्धांतों के साथ-साथ अहिंसा से दूर रहने और क्षमा की बात करते हुए इसे जीवन में उतारने का आह्वान करता है। इस दृष्टिकोण से नवरात्रे हों या अन्य धार्मिक पर्व सामाजिक सुरक्षा तो जीवन में होनी ही चाहिए और उसके लिए हर किसी को अपना योगदान ठीक ऐसे देना चाहिए जैसे आचार्य महाश्रमण जी दे रहे हैं।