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सुषमा स्वराज : बड़ी बहन को श्रद्धांजलि

1977 में पहली बार सुषमा स्वराज ने हरियाणा विधानसभा का चुनाव लड़ा और जीता। उन्हें 25 वर्ष की आयु में चौधरी देवीलाल सरकार में हरियाणा की श्रम मंत्री बनकर सबसे युवा कैबिनेट मंत्री बनने का गौरव हासिल हुआ।

जब तक यह सम्पादकीय आपके हाथ में होगा तब तक देश की पूर्व विदेश मंत्री, कुशल राजनेता और ओजस्वी वक्ता श्रीमती सुषमा स्वराज का पार्थिव शरीर पंचतत्व में विलीन हो चुका होगा।
मृत्यु एक शाश्वत सत्य है।
यही प्रश्न पूछा था यक्ष ने युधिष्ठिर से।
यक्ष ने कहा ‘किमाश्चर्यम्’?
अर्थात् आश्चर्य क्या है,
युधिष्ठिर ने उत्तर दियाः
‘‘हम प्रतिदिन इन नग्न आंखों से देखते हैं कि हजारों लोग काल कवलित होते जा रहे हैं, परन्तु हमें इसकी रंच मात्र भी अनुभूति नहीं होती कि हमारी अन्तिम नियति भी यही है। इससे बड़ा आश्चर्य और क्या होगा।’’जो जन्म लेेता है, उसका भौतिक संसार से जाना तय है लेकिन स्वास्थ्य ठीक होता तो श्रीमती सुषमा स्वराज हमारे बीच लम्बे अर्से तक रहतीं और हमारा मार्गदर्शन करतीं परन्तु नियति को कुछ और ही स्वीकार था।
 भारतीय राजनीति में जो चार या पांच प्रतिशत बेहतरीन इन्सान परमात्मा की कृपा से हैं, श्रीमती सुषमा स्वराज उनमें से एक थीं। अम्बाला छावनी में जन्मी हरियाणा की बेटी ने अपनी प्रतिभा के बल पर एक के बाद एक मुकाम हासिल किए। वह आपातकाल के दौरान जयप्रकाश नारायण के सम्पूर्ण क्रांति आंदोलन से प्रखर होकर निकलीं। आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने के बाद वह तत्कालीन जनता पार्टी की सदस्य बनीं।
 1977 में पहली बार सुषमा स्वराज ने हरियाणा विधानसभा का चुनाव लड़ा और जीता। उन्हें 25 वर्ष की आयु में चौधरी देवीलाल सरकार में हरियाणा की श्रम मंत्री बनकर सबसे युवा कैबिनेट मंत्री बनने का गौरव हासिल हुआ। 1980 के दशक में वह भारतीय जनता पार्टी में शामिल हुईं। तब से लेकर उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। वह 1990 में राज्यसभा की सस्स्य बनीं। 1996 में दक्षिणी दिल्ली से लोकसभा का चुनाव जीतकर अटल बिहारी वाजपेयी की 13 दिनों की सरकार में सूचना प्रसारण मंत्री बनीं। 
लोकसभा में चलने वाली चर्चा का दूरदर्शन पर सीधे प्रसारण का फैसला भी उन्हीं का था। बदलते घटनाक्रम में उन्होंने ​दिल्ली की पहली महिला मुख्यमंत्री बनने का गौरव हासिल किया लेकिन प्याज की बढ़ती कीमतों के चलते भाजपा दिल्ली विधानसभा का चुनाव हार गई थी। फिर उन्होंने राष्ट्रीय राजनीति में वापसी की। वह केन्द्र सरकार में अनेक पदों पर रहीं। नेता प्रतिपक्ष भी रहीं। 2014 में वह विदिशा से जीतकर नरेन्द्र मोदी सरकार में भारत की पहली पूर्णकालिक विदेश मंत्री बनीं। उन्होंने जिस भी विभाग को सम्भाला, उसमें कुशल प्रशासक होने का प्रमाण दिया। वह भारतीय सियासत में अकेली महिला हैं जिन्हें असाधारण सांसद चुना गया। वह किसी भी राजनीतिक दल की पहली महिला प्रवक्ता भी थीं। 
विदेश मंत्रालय बहुत महत्वपूर्ण और संवेदनशील विभाग है। विदेश मंत्री को कूटनीति और शब्दजाल का सहारा लेना पड़ता है लेकिन श्रीमती सुषमा स्वराज ने विदेश मंत्रालय को मानवीय संवेदनाओं के साथ चलाया। यही उनकी कार्यशैली का महत्वपूर्ण अंग था। यद्यपि स्वास्थ्य उन्हें ज्यादा घूमने की अनुमति नहीं देता था लेकिन जिस तरह से उन्होंने सक्रिय होकर काम किया वह अपने आप में उदाहरण है। वह रिश्तों की आत्मीयता को समझती थीं और लोगों की पीड़ा भी। 
उन्होंने विदेश में फंसे लोगों की कई बार मदद की। किसी का विदेश में पासपोर्ट गुम हो गया तो उसकी मदद की। आप सबको याद ही होगा कि पाकिस्तान की जेल में 6 साल गुजारने वाले हामिद अंसारी को भारत लाने में उन्होंने सक्रिय भूमिका निभाई। पाकिस्तान से आई गीता भी सबको याद है। इराक में फंसी भारतीय नर्सें हों या विदेशों में बसे भारतीय नागरिकों को भारत लाने पर भी वह काफी लोकप्रिय हुईं। 
उन्होंने हमेशा पीड़ित परिवारों के आंसू पोंछे और जितनी मदद हो सकी वह की। उनमें मानवीय संवेदनाएं और संस्कार कूट-कूटकर भरे थे। श्रीमती सुषमा स्वराज से हमारे परिवार के सम्बन्ध काफी नजदीकी रहे। रक्षा बन्धन पर वह मुझे राखी बांधकर बड़ी बहन जैसा स्नेह देती थीं। कई वर्षों तक वह करवाचौथ के दिन हमारे घर के आंगन में आती रहीं और मेरी पत्नी किरण चोपड़ा और अन्य महिलाओं के साथ सुहाग का लाल जोड़ा पहनकर अपने सुहाग की दीर्घायु के लिए कामना करती रहीं। वह भारतीय संस्कारों और पारिवारिक मूल्यों का महत्व समझती थीं। जब मैं कैंसर का उपचार कराने अमेरिका में था तब भी वह मुझे देखने आईं और मेरा और मेरी पत्नी का साहस बढ़ाया था। 
आज मेरे कानों में संयुक्त राष्ट्र में दिए गए भाषण के शब्द गूंज रहे हैं। जब उन्होंने पाकिस्तान के आरोपों का अपने तर्कों से मुंहतोड़ जवाब दिया था और पूरी दुनिया के सामने पाकिस्तान की दहशतगर्दी को नग्न किया था। करनाल संसदीय सीट पर मुझे भाजपा की टिकट मिलने पर जिस तरह उन्होंने मेरा मार्गदर्शन किया, वह भी मुझे याद आ रहा है। कभी-कभी राजनीतिक विडम्बनाएं बड़े-बड़े दिग्गजों को भी लपेट लेती हैं लेकिन तमाम मुश्किलों को झेलकर भी उनका मृत्यु के अन्तिम दिन तक सक्रिय रहना हमारे लिए मिसाल रहेगा। उनकी जगह कोई और नहीं ले सकता। ‘पंजाब केसरी’परिवार की बड़ी बहन को श्रद्धांजलि। परमपिता परमात्मा उनकी आत्मा को शांति प्रदान करें और परिवार को दुःख सहने की शक्ति दें।

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