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सू की को सजाः क्रूर फैसला

म्यांमार की एक अदालत ने अपदस्थ नेता आंग सान सू की को अवैध रूप से ‘वॉकी टॉकी’ आयात करने, रखने और कोरोना वायरस संबंधी पाबंदियों का उल्लंघन करने के​ लिए दोषी पाए जाने के बाद सोमवार को चार साल कैद की सजा सुनाई गई है।

म्यांमार की एक अदालत ने अपदस्थ नेता आंग सान सू की को अवैध रूप से ‘वॉकी टॉकी’ आयात करने, रखने और कोरोना वायरस संबंधी पाबंदियों का उल्लंघन करने के​ लिए दोषी पाए जाने के बाद सोमवार को चार साल कैद की सजा सुनाई गई है। सू की को​ पिछले महीने दो अन्य मामलों में दोषी ठहराया गया था और चार वर्ष की कैद की सजा सुनाई गई, जिसे बाद में देश की सैन्य सरकार के प्रमुख ने आधा कर दिया था। सेना द्वारा पिछले वर्ष फरवरी में म्यांमार में सू की की सरकार को बेदखल करने और सत्ता की बागडोर अपने हाथ में लेने के बाद 76 वर्षीय नोबेल शांति पुरस्कार विजेता के​ खिलाफ दायर किए गए एक दर्जन मामलों में ये मामले भी शामिल हैं। सू की समर्थकों ने अदालत के फैसले को एक और क्रूर फैसला बताया और कहा कि उनके खिलाफ आरोप सेना के कार्यों को वैध बताने और उन्हें राजनीति में लौटने से रोकने के लिए लगाए गए हैं। सैन्य अदालत का फैसला सत्ता पर काबिज सैन्य शासकों की उस इच्छा के अनुरूप ही है, जिसके तहत वो 2023 में बहुदलीय चुनाव कराने से पहले ताकतवर विपक्षी दल के नेताओं का सफाया करना चाहते हैं। सैन्य शासकों द्वारा झूठे और अन्यायपूर्ण आरोपों में कैद किए जाने का अनुभव सू की के​ लिए नया नहीं है, वो पहले ही 15 वर्ष तक घर में नजरबंद रह चुकी हैं। सैन्य शासकों ने अब पूरी तरह तानाशाही सरकार का चोला पहन लिया है। सैन्य शासकों ने म्यांमार को फिर से उन्हीं हालातों में पहुंचा दिया है, जहां वो एक दशक पहले था। 
वर्ष 2011 में म्यांमार के सैन्य शासकों ने अपनी नीतियों में कुछ बदलाव करके सू की की पार्टी के लिए कुछ सम्भावनाएं बनाई थीं, जिसमें बहुत जरूरी हो चुका लोकतांत्रिक बदलाव लाया जा सके। तब सैन्य शासकों या अन्तर्राष्ट्रीय दबाव बहुत ज्यादा था, फिर देश के नागरिक लगातार लोकतंत्र के लिए प्रदर्शन कर रहे थे। उस समय सैन्य शासकों ने जनता की आवाज सुनी क्योंकि वो 2007 की केसरिया क्रांति जैसी कोई क्रांति नहीं चाहते थे। तब म्यांमार की सेना ने राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी बेहतर छवि बनाने का प्रयास किया था। इसलिए 2008 के संविधान के तहत सेना ने जिन बदलावों की अनुमति दी, उस दौरान ये भी सुनिश्चित बनाया गया कि सभी महत्वपूर्ण अधिकार सेना के पास ही रहें। 2020 के चुनाव में आंग सान सू की के नेतृत्व वाली पार्टी एनएलडी की भारी जीत से सरकार के विधायी अंग पर सेना की पकड़ को कमजोर होने का भय हो गया था। एनएलडी के पास शासन करने लायक जनादेश भी था। म्यांमार के तब सैन्य शासकों ने चुनाव में धांधली के आरोप लगाते हुए फिर तख्ता पलट कर दिया।  म्यांमार में सू की को सजा सुनाए जाने के बाद से ही भारत काफी परेशान है। भारत का स्टैंड यह है ​कि म्यांमार में कानून का शासन और लोकतांत्रिक प्रक्रिया को बरकरार रखना चाहिए। पड़ोसी लोकतंत्र के रूप में भारत म्यांमार में लोकतांत्रिक परिवर्तन का लगातार समर्थन करता रहा है।
इसमें कोई संदेह नहीं कि सैन्य अदालत के फैसलों ने देश भर में जारी लोकतांत्रिक आंदोलनों को एक नया मकसद देने का काम किया है। देश का युवा वर्ग बेखौफ होकर आंदोलन चला रहा है। अब तक सेना 1500 से ज्यादा लोगों की हत्या कर चुकी है। गांव के गांव जलाकर मरघट में तब्दील कर दिए गए हैं। हाल ही में एनएलडी के पूर्व नेताओं वाले राष्ट्रीय एकता दल ने अराकान नेशनल लीग  से हाथ मिलाने का प्रस्ताव रखा है ताकि सैन्य सरकार को बेदखल कर सकें। भविष्य में राजनीतिक दलों और जनता के एक झंडे के नीचे इकट्ठे होने और लोकतांत्रिक बहाली के लिए  बड़ा आंदोलन चलाए जाने की सम्भावनाएं बन सकती हैं।
यूरोपीय संघ, अमेरिका, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने सू की को सजा देने की निंदा की है। सैन्य शासकों पर अपने रवैये में बदलाव लाने का दबाव बनाने के लिए अमेरिका और यूपीय संघ और कड़े प्रतिबंध लगाने पर विचार कर रहा है। चीन अभी तक म्यांमार के सैन्य शासकों की खुली आलोचना से बचता रहा है क्योंकि सैन्य शासक चीन के ज्यादा करीब हैं। क्षेत्रीय संगठन आसियान के मानव अधिकारों पर संसदीय दल के अध्यक्ष चार्ल्स ने सू की को सजा सुनाने को ‘इंसाफ का मजाक’ बताया है।  म्यांमार की हालत को देखते हुए पूरी दुनिया को अब चुप नहीं रहना चाहिए। यह खामोशी म्यांमार के लोगों के लिए घातक हो सकती है। भारत अभी देखो और इंतजार करें की नीति पर चल रहा है। भारत हस्तक्षेप करता है तो म्यांमार पूरी तरह चीन के साथ जा सकता है। म्यांमार के लोगों की रक्षा के​ लिए वैश्विक शक्तियों को आगे आना होगा।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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