लोकसभा चुनाव 2024

पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

तीसरा चरण - 7 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

94 सीट

चौथा चरण - 13 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

96 सीट

पांचवां चरण - 20 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

49 सीट

छठा चरण - 25 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

सातवां चरण - 1 जून

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

लोकसभा चुनाव पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

तारीख पे तारीख और सी जे आई

अमेरिकी विचारक एलेक्जेंडर हैमिल्टन ने कहा था ‘‘न्यायपालिका राज्य का सबसे कमजोर तन्त्र होता है। उसके पास न धन होता है और न ही हथियार।

अमेरिकी विचारक एलेक्जेंडर हैमिल्टन ने कहा था ‘‘न्यायपालिका राज्य का सबसे कमजोर तन्त्र होता है। उसके पास न धन होता है और न ही हथियार। धन के लिये न्यायपालिका को सरकार पर आश्रित होना पड़ता है और अपने दिये गये फैसलों को लागू कराने के लिये उसे कार्यपालिका पर निर्भर रहना पड़ता है।’’ हमारे देश में अदालतों से निकलने वाला हर व्यक्ति एक ही संवाद दोहराता नजर आता है- तारीख पे तारीख, तारीख पे तारीख। यह संवाद केवल फिल्मी नहीं है बल्कि इन शब्दों में न्याय व्यवस्था के प्रति आम आदमी की पीड़ा और असंतोष झलकता है। 
हालात ऐसे हैं कि कई बार तो अन्तिम सुनवाई के लिये निर्धारित मुकदमों में भी किसी छोटे-मोटे कारणों को आधार बनाकर तारीख डाल दी जाती है। ऐसे में लोगों को सबसे बड़ा दोषी सामने बैठा न्यायाधीश ही दिखाई देता है। इसमें कोई संदेह नहीं कि न्यायपालिका मुकदमों के बोझ तले दबी हुई है। मुकदमों की सुनवाई की रफ्तार बहुत धीमी है। इस स्थिति में देरी से मिलने वाला न्याय भी अन्याय के समान हो चुका है। क्या कोई सोचता है कि न्यायाधीश की रोजमर्रा की दिनचर्या क्या होती है। न्यायाधीश सरकारी अधिकारी या कर्मचारी की तरह दस से सायं पांच बजे तक नौकरी नहीं करता। 
अदालतों में देखा जाता है कि न्यायाधीश के सामने 50-50  मुकदमों की सूची प्रस्तुत होती है। कभी-कभी तो यह संख्या काफी बढ़ जाती है। ऐसे में यह उम्मीद नहीं की जा सकती कि वह प्रत्येक मुकदमें की फाइल के एक-एक शब्द को पढ़ें और शीघ्र सुनवाई का प्रयास करें। एक दिन में दस-बीस पृष्ठों तक फैले फैसले भी लिखवायें। आखिर न्यायाधीश भी इन्सान ही है। कई बार तो अगले दिन की सूचीबद्ध फाइलें उनके साथ ही उनके निवास पर पहुंच जाती हैं। दूसरी तरफ वकीलों को ईमानदारी का पाठ कैसे पढ़ाया जा सकता है। उनकी रोजी-रोटी का आधार ही तारीख है। जितनी तारीखें पड़ेंगी, उससे उनको ही फायदा है। 
नामी-गिरामी वकीलों की हर सुनवाई के लिये फीस हजारों में नहीं बल्कि लाखों में है। भारतीय न्यायपालिका के पास संसाधन भी पर्याप्त नहीं हैं। केन्द्र और राज्य सरकारें न्यायपालिका के सम्बन्ध में खर्च बढ़ाने में रुचि नहीं रखतीं। वहीं पूरी न्यायपालिका के लिये बजटीय आवंटन पूरे बजट का 0.1 फीसदी से 0.4 फीसदी है। निचली अदालतों में न्यायिक गुणवत्ता किसी से छिपी नहीं है। क्योंकि निचली अदालतों में न्यायाधीशों के फैसले से लोग संतुष्ट नहीं होते, इसलिये वह उच्च अदालतों में फैसलों के खिलाफ अपील दायर करते हैं जिससे मुकदमों की संख्या बढ़ती जाती है। सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश (सी जे आई) रंजन गोगोई ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को तीन प​त्र लिखे हैं। 
इनमें उन्होंने प्रधानमंत्री से सुप्रीम कोर्ट के जजों की संख्या और हाई कोर्ट के जजों की रिटायरमेंट की उम्र बढ़ाने का अनुरोध किया है। इसके लिये उन्होंने प्रधानमंत्री को दो संवैधानिक संशोधन करने का सुझाव दिया है। वहीं उन्होंने सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के रिटायर्ड जजों की कार्यकाल नियुक्ति से जुड़ी पुरानी परम्परा फिर से शुरू करने की अपील की है।
सी जे आई ने प्रधानमं​त्री को लिखा है कि संविधान की धारा 128 और 224ए के तहत ऐसे जजों की नियुक्ति की जाए ताकि   वर्षों से लंबित मामले निपटाये जा सकें। चीफ जस्टिस ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट में इस समय ज्यादा से ज्यादा 31 जज हो सकते हैं, यह स्थिति पिछले एक दशक से भी ज्यादा समय से बनी हुई है, वहीं शीर्ष अदालत में लम्बित मामलों की संख्या 58,669 थी। 
यह संख्या नये मामलों की संख्या के साथ हर रोज बढ़ रही है। सुप्रीम कोर्ट में 26 मामले 25 वर्षों से, 100 मामले 20 वर्षों से, 593 मामले 15 सालों से और 4,977 मामले पिछले दस वर्षों से लम्बित हैं। यह स्थिति ताे देश की शीर्ष अदालत की है। हाई कोर्ट और निचली अदालतों में लम्बित मामलों की संख्या तो लाखों में होगी ही। तीन दशक पहले 1988 में सुप्रीम कोर्ट के जजों की संख्या 18 से 26 की गई थी। फिर 2009 में इसे 31 कर दिया गया ताकि मामलों का निपटारा जल्द हो सके। चीफ जस्टिस का आग्रह है कि सुप्रीम कोर्ट में जजों की संख्या 31 से 37 की जाये। इसी तरह उन्होंने हाई कोर्ट के जजों की संख्या बढ़ाने की भी अपील की है। इस समय हाई कोर्टों में जजों के 399 पद खाली हैं। 
मौजूदा जजों की रिटायरमेंट अवधि तीन साल बढ़ा दी जाये तो इससे लम्बित मामलों को निपटाने में मदद मिलेगी। देश में न्याय की रफ्तार बहुत धीमी है। इतनी धीमी कि आम आदमी न्याय की उम्मीद ही छोड़ चुका है। निचली अदालतों में भ्रष्टाचार इस कदर बढ़ चुका है कि कोई भी काम बिना पैसे के नहीं होता। जनता भी स्थानीय निकायों से जुड़े मुद्दे लेकर अदालतों में पहुंच जाती है। देश की अदालतों में अभी जितने मुकदमें हैं अगर उनकी ढंग से सुनावई की जाये तो निपटारा होने में लगभग 25 वर्ष तो लग ही जायेंगे। आजादी के बाद से ही अदालतों और जजों की संख्या आबादी के बढ़ते अनुपात के मुताबिक कभी भी कदमताल नहीं कर पाई। इसमें कोई संदेह नहीं कि जनता का विश्वास आज भी न्यायपालिका में बना हुआ है। तमाम विसंगतियों के बावजूद न्यायपालिका की साख कायम है। इसलिये जरूरी है कि सरकार चीफ जस्टिस के आग्रह पर ध्यान दे और न्यायिक व्यवस्था में सुधार करे ताकि आम आदमी को राहत मिल सके।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

one + 3 =

पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।