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ट्रंप के सीने में उतारेंगे तीर-ए-कश्मीर

शक्तिशाली होने का मतलब यह तो नहीं कि आप मनमानी कर लें। ठीक है ​आप पूरे विश्व में सुपर पावर के रूप में जो कुछ भी आप कहेंगे क्या उसे हर कोई मान लेगा।

सब जानते हैं कि अमरीका एक शक्तिशाली राष्ट्र है। शक्तिशाली होने का मतलब यह तो नहीं कि आप मनमानी कर लें। ठीक है ​आप पूरे विश्व में सुपर पावर के रूप में जो कुछ भी आप कहेंगे क्या उसे हर कोई मान लेगा। दो राष्ट्रों के आपसी मुद्दे हो सकते हैं। उनमें आपसी बैर हो सकता है लेकिन ​इसका यह मतलब तो नहीं कि आप उसे अपनी सियासत की नजर से देखकर कुछ भी उजूल-फजूल बोलने लगें। राष्ट्रपति ट्रंप इस समय राजनीतिक दृष्टिकोण से बौखलाहट के दौर से गुजर रहे हैं। इसीलिए वह पाकिस्तान जैसे गये गुजरे और फटेहाल मुल्क के पीएम इमरान खान से एक मीटिंग के दौरान कश्मीर का राग अलापने लगते हैं। 
पाकिस्तान इसी कश्मीर को लेकर इसी यूएन काउंसिल में बेनकाब हो चुका है। अब कश्मीर को लेकर खुद ट्रंप मध्यस्थ बनकर यह मसला सुलझाने का ड्रामा सार्वजनिक बयान देकर करने लगे हैं। कश्मीर भारत और पाकिस्तान का आपसी मसला है और सब जानते हैं कि कश्मीर भारत का है। लेकिन पिछले दिनों ट्रंप ने इस कश्मीर को लेकर अपने बयान में बहुत ही गैर जिम्मेदाराना ढंग से यह कह दिया कि खुद प्रधानमंत्री मोदी ने मुझसे कश्मीर के मामले पर मध्यस्थता करने की बात कही थी। देश जानता है कि पीएम मोदी ऐसी बात कहना तो दूर, सोच भी नहीं सकते। 
श्री मोदी को पाकिस्तान से निपटना आता है और अनेक बार पाकिस्तान द्वारा प्रमोट किए गए आतंक तथा आतंकवादियों को मोदी जी ने इतने अच्छे से निपटाया है कि पाकिस्तान दोबारा सिर उठाने की हिमाकत नहीं कर सकता। भारत ने ट्रंप के इस बयान का करारा जवाब पलटवार के रूप में दिया है। पिछले हफ्ते ट्रंप को  भारत का करारा जवाब समझ नहीं आया तो आज उन्होंने दोबारा नए सिरे से यह कह डाला कि अगर भारत और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री चाहें तो वे कश्मीर मुद्दे को लेकर इन दोनों के बीच मध्यस्थ बन सकते हैं। इस बार भी भारत की ओर से विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने पलटवार करते हुए कहा कि बातचीत होगी तो सिर्फ पाकिस्तान के साथ होगी। 
यह दो राष्ट्रों का मुद्दा और ​इसे द्विपक्षीय ही रहने दिया जाए। सच बात तो यह है कि कश्मीर मामले पर पाकिस्तान जिस तरह से मोदी सरकार आने के बाद अब इस कदर अलग-थलग पड़ चुका कि कोई उसके साथ नहीं है। भारत के एक मजबूत प्रधानमंत्री मोदी जी ने जिस तरह से आतंक पूरी दुनिया के लिए खतरा है यह कहकर एक अभियान चलाया, हर राष्ट्र उसके साथ है। आतंक के ​खिलाफ पूरी दुनिया को एकजुट होने का मोदी जी ने जो आह्वान किया और आतंक की फैक्ट्री पाकिस्तान में है और वहीं से यह जहर पूरी दुनिया के लिए फैलता है और आतंक का खूनी खेल खेलने वाले अब भारतीय फौज की बंदूकों से मारे जा रहे हैं तो पाकिस्तान की बौखलाहट स्वाभाविक है लेकिन पाकिस्तान के फटे में कश्मीर को लेकर टांग फंसाते ही ट्रंप भी बेनकाब हो गए। 
जिस अमरीका के वर्ल्ड टावर पर हमला करवाने वाले कुख्यात आतंकी ओसामा बिन लादेन को ढूंढने और मार डालने में वर्षों लग गए उसी आतंक के सरपरस्तों को बेनकाब करने और भारत में आतंकियों को मार गिराने में हमारी फौज को ज्यादा वक्त नहीं लगा। उड़ी अटैक हो या पुलवामा अटैक इन हमलों में शामिल रहे आतंकवादी उड़ी सर्जिकल स्ट्राइक और बालाकोट सर्जिकल स्ट्राइक में मारे गए। पीएम मोदी का एक ही उसूल है कि भारत किसी को छेड़ता नहीं और जो उसे छेड़ता है भारत उसे छोड़ता नहीं। मोदी जी की इस नीति को अब ट्रंप को भी समझ लेना चाहिए। अमरीका में चुनाव होने हैं और मोदी जी जिस तरह से भाजपा को सत्ता में रिपीट करके लाए हैं तो ट्रंप भी सोच रहे हैं कि मैं भी मोदी बन जाऊं तो यह उनकी भूल है। 
मोदी जी पूरी दुनिया को अपने साथ जोड़कर लोकप्रिय हो रहे हैं और जबकि ट्रंप पाकिस्तान जैसे मुल्क के साथ ताल्लुक बढ़ाकर लोकप्रिय होना चाहते हैं जो इमरान अपने मुल्क में सबसे ज्यादा नापसंद किए जा रहे हैं, वह राजनीतिक रूप से अपनी जमीन तलाश रहे हैं। ट्रंप भी कुछ ऐसा ही सोचकर आगे बढ़ रहे हैं। अमरीकी फितरत यही रही है चाहे वो बिल क्लिंटन हों, जॉर्ज बुश हों या फिर बराक ओबामा और अब इस कड़ी में ट्रंप को भी जोड़ दिया जाए तो बड़ी बात यही उभर कर आती है कि आतंक के नाम पर पाकिस्तान को इस्तेमाल करो और भारत के खिलाफ उसे खड़ा करके रखो लेकिन भारत ने पाकिस्तान के आका चीन को भी सबक सिखा दिया है। 
अमरीका के ‘दुश्मन’ रूस के साथ मोदी जी ने अच्छे संबंध बना लिए हैं और वहीं फ्रांस, ब्रिटेन, जापान के साथ भी हमारे रिश्ते मधुर हैं तो बौखलाहट में यह सोचकर कि अब भारत को फांस लिया जाए तो ट्रंप ने कश्मीर राग छेड़ दिया लेकिन अमरीका को करारा जवाब मिल गया है और उम्मीद है भविष्य में वह जो भी बोलेगा तोल-तोलकर बोलेगा।

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