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तालिबान के ‘मीठे’ स्वर

काबुल हवाई अड्डे पर ताजा राकेट हमलों के बीच यह खबर फौरी तौर पर सुकून देने वाली है कि तालिबान संगठन के कतर (दोहा) में बैठे शीर्षस्थ नेताओं में से एक मोहम्मद अब्बास स्तेनेकजई ने एक विशेष वीडियो सन्देश जारी

काबुल हवाई अड्डे पर ताजा राकेट हमलों के बीच यह खबर फौरी तौर पर सुकून देने वाली है कि तालिबान संगठन के कतर (दोहा) में बैठे शीर्षस्थ नेताओं में से एक मोहम्मद अब्बास स्तेनेकजई ने एक विशेष वीडियो सन्देश जारी कर कहा है कि भारत अफगानिस्तान के लिए बहुत महत्वपूर्ण देश है और इसके साथ अफगानिस्तान पूर्व की भांति सांस्कृतिक, राजनैतिक, आर्थिक और व्यापारिक सम्बन्ध रखना चाहेगा। दूसरी तरफ यह भी हकीकत है कि विगत 15 अगस्त से अफगानिस्तान में तालिबान ही काबिज हैं और अमेरिका की मदद से वे ही वहां हुकूमत के सारे काम देख रहे हैं। हालांकि काबुल में अभी तक कोई बाजब्ता तौर पर हुकूमत काबिज नहीं हुई है मगर अमेरिका ने इस मुल्क से अपनी फौजों को वापस लाने के साथ ही बराये नाम ही सही हुकूमत तालिबानियों को सौंप जैसी दी है। इस वास्तविकता की रोशनी में भारत के लिए मोहम्मद अब्बास का यह बयान इस हकीकत को रोशन करता है कि तालिबान भी यह समझते हैं कि भारतीय उपमहाद्वीप में भारत को साथ लिये बगैर वह अपने मुल्क में जायज तौर पर हुकूमत की सरपरस्ती नहीं कर सकते।
इसके साथ ही मोहम्मद अब्बास का यह कहना कि भारत के साथ सभी तरीके के तिजारती सम्बन्ध बारास्ता पाकिस्तान होकर या सीधे हवाई मार्गों द्वारा जारी रहने चाहिए क्योंकि उपहमाद्वीप में भारत की हैसियत को अनदेखा नहीं किया जा सकता। तालिबान नेता का इस सन्दर्भ में तुर्कमेनिस्तान से अफगानिस्तान व पाकिस्तान होते हुए भारत तक गैस पाइपलाइन परियोजना का जिक्र करना भी यह बताता है कि तालिबानी हुकूमत का नजरिया भारत के बारे में कैसा रह सकता है। साथ ही किसी तालिबानी नेता द्वारा भारत के साथ सांस्कृतिक सम्बन्धों का जिक्र करना किसी ‘पुरवाई झोंके’ से कम नहीं आंका जा सकता, क्योंकि तालिबान वह संगठन है जिसने 1996 के 2001 तक के अपने शासन में अफगानिस्तान से एेसे सभी सांस्कृतिक व ऐतिहासिक अवेशेषों को जमींदोज करने में कोई हिचक नहीं दिखाई थी जिनमें भारतीय पुरातन सभ्यता के पद चिन्ह मौजूद थे।
अफगानिस्तान का इतिहास बताता है कि यहां सिकन्दर से लेकर कुषाण राजाओं तक का शासन रहा और सबसे अन्त में सिख सम्राट रणजीत सिंह ने इसे अपनी विशाल रियासत का हिस्सा बनाया। तालिबानी नेताओं को अल्लाह के फजल से यदि यह अक्ल आती है कि भारत और उनके देश के रिश्ते सदियों से इस प्रकार गुथे रहे हैं कि दोनों मुल्कों की अवाम एक-दूसरे को दोस्त की तरह देखती रही है तो यह परिवर्तन सुख का अनुभव तो देता ही है परन्तु वर्तमान सन्दर्भों में यह देखना होगा कि सकल स्तर पर तालिबान संगठन का भारत के बारे में नजरिया क्या वाकई में श्री अब्बास के नजरिये से मेल खाता है? अब्बास स्वयं 80 के दशक में अफगानिस्तान की सरकार द्वारा भारत में भेजे गये उस प्रशिक्षु दल के सदस्य थे जिन्होंने देहरादून की सैनिक अकादमी में प्रशिक्षण प्राप्त किया था। सवाल यही है कि कहीं इस राय को भविष्य में तालिबान उनकी निजी राय के रूप में  निरूपित करने का प्रयास तो नहीं कर सकते ? बेशक अब्बास के बयान से यह साबित करने की कोशिश की जा रही है कि आज के तालिबान बदले हुए हैं मगर इस बात की गारंटी कोई नहीं दे सकता कि ये भविष्य में भी एेसे रहेंगे। क्योंकि तालिबान का शासन में आना और उनकी सरकार को मान्यता मिलना इस बात पर निर्भर करता है कि विश्व समुदाय उन्हें किस नजरिये से देखता है।
अमेरिका समेत पश्चिम के देशों का नजरिया उनके प्रति नरम दिखाई पड़ रहा है और ये शक्तियां सोचती हैं कि अफगानिस्तान में आतंक फैलाने का काम फिलहाल दूसरे आतंकवादी संगठन जैसे ‘आईएसआईएस-के’ आदि कर रहे हैं मगर इस बात की गारंटी कौन देगा कि अमेरिका सेना जिस 84 अरब डालर मूल्य की सैन्य सामग्री अफगानिस्तान में छोड़ कर जा रही है उसका उपयोग आतंकवादी गतिविधियों में नहीं होगा ? अब यह निकल कर बाहर आ रहा है कि भारतीय दूतावास खाली करने और भारत के साथ काम करने वाले अफगानियों को बाहर निकालने में तालिबानियों ने मदद की है। तालिबानियों को इस रास्ते पर लाने में पूर्व राष्ट्रपति हामिद करजई व विदेश मन्त्री रहे अब्दुल्ला अब्दुल्ला ने भी मदद की। इसका तात्पर्य यह भी निकाला जा सकता है कि अगर तालिबानों को सही नेतृत्व मिले तो वे इंसानों के चोले में आ सकते हैं। मगर इसके साथ हकीकत यह भी है कि मौजूदा अफगानिस्तान पूरी तरह कंगाल हो चुका है उसके बैंक खजानों से खाली हैं और अवाम बीस गुना तक महंगाई से परेशान है। ऐसी स्थिति में तालिबान अपनी हुकूमत  जायज बनाने के लिए किसी भी सीमा तक जा सकते हैं और खुद को सभ्य दिखाने की चेष्टा कर सकते हैं। 
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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