लोकसभा चुनाव 2024

पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

तीसरा चरण - 7 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

94 सीट

चौथा चरण - 13 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

96 सीट

पांचवां चरण - 20 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

49 सीट

छठा चरण - 25 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

सातवां चरण - 1 जून

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

लोकसभा चुनाव पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

तमिलनाडुः लोकतंत्र की तिजारत !

NULL

भारत के प्रमुख दक्षिणी राज्य तमिलनाडु में सुश्री जयललिता की मृत्यु के बाद से जिस प्रकार सत्ता की तिजारत का खुला बाजार चल रहा है वह भारतीय लोकतन्त्र के माथे पर दाग के अलावा और कुछ नहीं कहा जा सकता। सत्तारूढ़ अन्नाद्रमुक पार्टी के भीतर हुकूमत पर काबिज होने के लिए पहले मुख्यमन्त्री इलाडीपडी के. पलानीसामी और पार्टी के एक गुट के नेता ओ. पनीरसेल्वम के बीच युद्ध छिड़ा और बाद में दोनों के बीच जिस तरह सत्ता की बन्दरबांट में उपमुख्यमन्त्री का पद पनीरसेल्वम के हिस्से में गया उससे राज्य की जनता द्वारा बहुमत से चुनी गई अन्नाद्रमुक पार्टी का सारा इकबाल मिट्टी में मिल गया। राज्य में दल-बदल कानून की धज्जियां उड़ाते हुए श्री पलानीसामी की सरकार विधानसभा में विश्वास मत जीतने में सफल रही। वास्तव में विधानसभा अध्यक्ष को तभी श्री पनीरसेल्वम के गुट के 11 विधायकों के खिलाफ दल-बदल कानून के तहत सदस्यता मुअत्तिल करने का फैसला करना चाहिए था क्योंकि उन्होंने अपनी पार्टी अन्नाद्रमुक के भीतर रहते हुए अपनी ही पार्टी की सरकार के हक में मत नहीं दिया था। उस समय सदन में जो हंगामा बरपा हुआ था उसका जिक्र दोबारा करना फिजूल है मगर इसके बाद जिस तरह पार्टी के शशिकला गुट के 18 अन्नाद्रमुक विधायकों को अध्यक्ष श्री धनपाल ने आनन-फानन में केवल इसलिए सदस्यता से वंचित कर दिया कि ये विधायक राज्यपाल विद्यासागर राव से यह मांग करने गये थे कि पलानीसामी सरकार में उनका ​विश्वास नहीं है और सदन का सत्र बुलाकर उन्हें अपना बहुमत सिद्ध करने के ​लिए कहा जाना चाहिए।

संसदीय लोकतन्त्र में सत्ताधारी दल के सदस्यों द्वारा यह मांग की जानी अनुशासनहीनता की किसी धारा में नहीं आती है। हालांकि संसदीय व्यवस्था में यह भी नियम है कि किसी भी पदारूढ़ सरकार के खिलाफ छह महीने में केवल एक बार ही अविश्वास प्रस्ताव रखा जा सकता है मगर सरकार से विश्वास मत प्राप्त करने के लिए राज्यपाल सदन की परिस्थितियों को देखते हुए जब चाहे तब कह सकते हैं। ऐसा भी हुआ है कि राज्यपाल ने तुरन्त आगे-पीछे दो-तीन दिन के अन्तराल में ही पुनः ​विश्वास मत लेने के लिए सरकार से कहा हो। ऐसा कर्नाटक में 2012 के लगभग तब हुआ था जब भाजपा सरकार के मुख्यमन्त्री येदियुरप्पा ने भारी घालमेल करके सदन में ध्वनिमत से विश्वास मत हासिल करने की नौटंकी की थी। इसकी शिकायत होने पर राज्यपाल ने उनसे पुनः विश्वास मत एक सप्ताह के भीतर ही लेने के निर्देश दिये थे। राज्यपाल अपनी इस जिम्मेदारी से बन्धे रहते हैं कि किसी भी सूरत में अल्पमत की सरकार सत्ता में नहीं रह सकती। विशेषकर उस हालत में उनकी स्थिति बहुत संजीदा हो जाती है जब सत्तारूढ़ दल के ही कुछ विधायक उनसे अपनी ही पार्टी की सरकार के अल्पमत में आने की शिकायत करें। भारत का लोकतन्त्र स्थापित स्वस्थ परंपराओं और संविधान की मान्यताओं से चलने वाला लोकतन्त्र है, जिसकी वजह से यह दुनिया का सबसे बड़ा लोकतन्त्र कहलाता है मगर तमिलनाडु में लगता है कि यहां संवैधानिक मर्यादाओं को ताक पर रखकर किसी भी तरह वर्तमान सरकार को खींचने की जिद ठान ली गई है।

यदि टीटीवी. दिनाकरन गुट के विधायकों ने अपनी ही सरकार के खिलाफ विश्वास मत साबित करने की मांग की थी तो यह पक्के तौर पर उनका अपना जोखिम था क्योंकि पार्टी की व्हिप का उल्लंघन करने का खामियाजा दल-बदल कानून के तहत उन्हें भुगतना पड़ता, मगर इसके बिना ही राज्यपाल से मिलने भर की वजह से विधानसभा अध्यक्ष ने उन पर दल-बदल कानून लागू कर दिया। उनके इस फैसले के विरुद्ध मद्रास उच्च न्यायालय में याचिका स्वीकार होने का अर्थ यही निकलता है कि कहीं न कहीं सविधान की पालना में कोताही हुई है मगर सबसे गंभीर बात यह है कि इस राज्य की सत्तारूढ़ पार्टी के तीनों गुट क्रमशः पलानीसामी, पनीरसेल्वम और दिनाकरन एक-दूसरे पर जमकर भ्रष्टाचार के आरोप लगा रहे हैं। अतः यह स्वयं सिद्ध है कि वर्तमान सरकार बेइमानों का राज चला रही है। ऐसी सरकार का रुतबा राज्य की जनता में क्या हो सकता है। बेहतर हो कि भ्रष्टाचार से सनी हुई ऐसी सरकार से राज्य की जनता को निजात दिलाई जाये और विधानसभा को भंग करके पुनः चुनाव कराये जायें। हमारे लोकतन्त्र में पांच साल का बेरोकटोक ठेका छोड़ने की व्यवस्था नहीं है। हम इसीलिए जीवन्त लोकतन्त्र हैं कि जनता को अपनी इच्छा के मुताबिक सरकार चुनने का अधिकार है। जो सरकार संविधान की विभिन्न पीठों से जोड़-तोड़ करके काबिज रहने का जुगाड़ लगाने में मशगूल हो जाये उसका जुगाड़ आम जनता में खत्म हो जाता है। वैसे भी तमिलनाडु की जनता ने स्व. जयललिता के नेतृत्व वाली अन्नाद्रमुक को बहुमत दिया था, उनकी मृत्यु के बाद जिस तरह उनकी पार्टी के नेताओं के बीच जूतों में दाल बंट रही है उसे देखते हुए यही उचित होगा कि पुनः आम जनता से नया जनादेश लिया जाये और रोज लोकतन्त्र को तिल-तिल करके न मारा जाये।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

6 + three =

पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।