69 हजार करोड़ से ज्यादा कर्ज के जाल में फंसी भारत की फ्लैगशिप कम्पनी एयर इंडिया को बचाने के लिए बहुत से लोग सामने आए हैं। एयर इंडिया को खरीदने के लिए टाटा संस समेत चार कम्पनियों ने रूचि पत्र जमा कर दिया है। इन कम्पनियों में एस्सार समूह, स्पाइस जेट लिमिटेड और एयर इंडिया के कर्मचारियों और इंटरअप्स इंक का कर्सोशियम शामिल है। एयर इंडिया की सवारी वही कर पाएगा जो इसके कर्ज को वहन करेगा। हैरानी की बात तो यह है कि एयर इंडिया के 209 कर्मचारियों के एक समूह ने अमेरिका स्थित एक निजी इक्विटी फर्म इंटरअप्स इंक के साथ 50 फीसदी हिस्सेदारी के लिए बोली के लिए रुचि पत्र दिया है। अब बोली की प्रक्रिया दूसरे चरण में जाएगी। सौदा सलाहकार 6 जनवरी को उन बोलीदाताओं को सूचित करेंगे जो बोलियां पात्र पाई जाएंगी। एयर इंडिया का लोगो याित्रयों का अभिनन्दन करता महाराजा है इसलिए इस कंपनी को महाराजा भी कहा जाता है।
टाटा का एयर इंडिया से भावनात्मक संबंध है। एयर इंडिया टाटा एयर लाइन्स से ही बनी कम्पनी है। उद्योगपति जेआरडी टाटा ने टाटा एयर लाइंस की स्थापना 1932 में की गई थी। भारत सरकार ने 1953 में इस कम्पनी को अपने अधिकार क्षेत्र में ले लिया था। जेआरडी टाटा ने वर्ष 1919 में ही पहली बार हवाई जहाज तब शौकिया तौर पर उड़ाया था जब वह सिर्फ 15 साल के थे। उन्होंने अपना पायलट का लाइसैंस लिया, मगर पहली व्यावसायिक उड़ान में वह सिंगल इंजन वाले हैैवीलैंड पस मोथ हवाई जहाज को अहमदाबाद से होते हुए कराची से मुम्बई ले गए थे। उस उड़ान में यात्री नहीं थे बल्कि 25 किलो चिट्ठियां थीं।
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जब विमान सेवाओं को बहाल किया गया तब 29 जुलाई, 1946 को टाटा एयरलाइन्स पब्लिक लिमिटेड कम्पनी बन गई और उसका नाम एयर इंडिया लिमिटेड रखा गया। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद 1947 में भारत सरकार ने एयर इंडिया में 49 प्रतिशत की भागीदारी ले ली थी। एयर इंडिया के विनिवेश की कोशिश 2018 में भी की गई थी लेकिन तब कोई कम्पनी बोली लगाने नहीं आई थी।
यह सब जानते हैं कि सरकार की यह कम्पनी कुप्रबंधन, भ्रष्टाचार के चलते घाटे का शिकार होती गई। विमानन क्षेत्र में निजी कम्पनियों के उतर जाने से एयर इंडिया को प्रतिस्पर्धा के लिए सक्षम बनाने का प्रयास ही नहीं किया। निजी विमानन कम्पनियों ने महत्वपूर्ण रूटों पर कब्जा कर लिया। फिर यात्रियों को आकर्षित करने के लिए गला काट स्पर्धा शुरू हुई। विमान यात्रा के लिए सस्ती टिकटों की आकर्षक योजनाएं शुरू की गईं। एयर इंडिया प्रतिस्पर्धा में ठहर ही नहीं सकी। सरकार को मजबूरीवश कम्पनी में अपना हिस्सा बेचने का फैसला लेना पड़ा। कोरोना महामारी के फैसने से विमानन सेवाएं ठप्प होने से भी एयर इंडिया को जबरदस्त आर्थिक आघात लगा अप्रैल-जून की तिमाही में, एयर इंडिया के 2,570 करोड़ का घाटा हुआ। जून के बाद अब तक के घाटे का अनुमान लगाया जा सकता है।
केन्द्र सरकार एयर इंडिया के साथ ही उसकी ला कॉस्ट सब्सिडियरी एयर इंडिया एक्सप्रैस की सौ फीसदी हिस्सेदारी भी बेच रही है। अब सवाल यह है कि क्या एयर इंडिया और एयर इंडिया एक्सप्रैस के अलग-अलग खरीदार हो सकते हैं। विमानन एविएशन विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसा सम्भव नहीं है। ऐसे नहीं हो सकता कि एयर इंडिया को एक कम्पनी खरीदे और एयर इंडिया एक्सप्रैस को दूसरी कम्पनी। सरकार ने अपनी शर्तों में स्पष्ट कहा है कि दोनों एयर लाइन्स के लिए एक ही खरीदार होगा। एयर इंडिया की तरह एयर इंडिया एम्सप्रैस घाटे में नहीं है। यह लो कॉस्ट एयरलाइन भारत के दक्षिण भारतीय शहरों से मध्य-पूर्व और खाड़ी देशों में अपनी सेवाओं के लिए जानी जाती है।
कहते हैं इतिहास खुद को दोहराता है। यदि इतिहास दोहराया जाएगा तो 88 वर्षों के बाद यह कम्पनी एक बार फिर अपने पुराने मालिक के पास चली जाएगी। मौजूदा वक्त में टाटा सन्स प्राइवेट लिमिटेड सिंगापुर एयर लाइन्स के साथ मिलकर विस्तारा एयर लाइन चलाते हैं। इसके अलावा एयर एशिया इंडिया में भी टाटा संस की 51 फीसदी हिस्सेदारी है। अगर टाटा समूह को एयरलाइन्स ने कारोबार को आगे बढ़ाना है तो एयर इंडिया उसके लिए अच्छा विकल्प हो सकता है। एयर इंडिया के कई पक्ष काफी मजबूत हैं। उसके पास अच्छी एयरोनॉटिकल सम्पत्ति है, इंजीनियर और स्टाफ है। इसके अलावा अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में एयर इंडिया की लगभग 18 फीसदी हिस्सेदारी है। जहां तक एयर इंडिया के कर्मचारी समूह द्वारा बोली लगाने का सवाल है। देखना होगा कि यह समूह कितना पात्र है। अगर उसकी बात बनती है तो देश के कार्पोरेट इतिहास का यह पहला मामला होगा, जब किसी सरकारी कम्पनी को उसके ही कर्मचारी खरीदेंगे। अगर पात्रता के हिसाब से देखा जाए तो वही कम्पनी एयर इंडिया की पायलट सीट पर बैठेगी जो जितना ज्यादा कर्ज चुकाने में तैयार होगी। हो सकता है भावनात्मक संबंधों के चलते टाटा संस तैयार हो तो महाराजा की सवारी वह कर सकती है।