टाटा, शांतनु नायडू और नोबेल ‘हान कांग’

टाटा, शांतनु नायडू और नोबेल ‘हान कांग’
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वर्तमान में सदी में शायद ऐसा शख्स नहीं आया। 'टाटा' की बातें करेंगे तो कभी समाप्त होने में नहीं आएंगी। वह शख्स दरअसल भारतीय जि़ंदगी का एक ऐसा अभिन्न अंग बन चुका था कि उसे उसके जाने के बाद भी अलग नहीं जा सकता। सन् 1962 में उसके टाटा समूह में शामिल होने के बाद से कुछ दिनों पहले कंपनी के कामकाज में अपनी सक्रियता छोड़ने तक उन्होंने 'टाटा' की आमदनी की 40 गुना और मुनाफा 50 गुना बढ़ा दिया था। टाटा आज 100 से अधिक देशों में काम कर रही है और 165 अरब डॉलर की कंपनी बन चुकी है।
यह भी विश्व का एक अनूठा कीर्तिमान ही है कि जिस शख्स का कारोबार विश्व के सौ देशों में फैला है उसके अपने नाम पर अपनी कंपनी का एक प्रतिशत शेयर भी नहीं है। वह शैक्षिक संस्थानों और नीति-निर्माताओं के बीच सहजीवी संबंध की वकालत करते थे। लंदन स्कूल आफ इकोनॉमिक्स के भारत सलाहकार बोर्ड के सदस्य बनकर वह काफी खुश थे। वह और लॉर्ड निकोलस स्टर्न इस बोर्ड के सह-अध्यक्ष थे। किसी अन्य सदस्य ने बोर्ड की बैठकों में इतनी रुचि नहीं दिखाई जितनी रतन टाटा ने। वह सभी बैठकों में बिना नागा मौजूद रहे। इसको ध्यान में रखते हुए लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स ऐंड पॉलिटिकल साइंस ने उन्हें मानद फैलाशिप से भी नवाजा था।
धरातल पर पांव जमाए हुए भी वह शख्स सपने देखता रहा। एक लाख की टाटा कार 'नैनो' इन्हीं सपनों का एक मूर्त रूप थी। एक दिन श्रीमान जी अपनी गाड़ी में सवार हो बारिश के दौरान जा रहे थे तो रास्ते में देखा कि एक छोटा परिवार मोटर साइ​िकल पर भीगता जा रहा था। बस वहीं से ठान लिया था कि एक दिन आम जनमानस की पहुंच के लिए एक छोटी कार अवश्य बनाएंगे और फिर इन्होंने 'नैनो' कार सड़कों पर उतारी।
वह अक्सर कहते थे- 'अगर आप तेज़ चलना' चाहते हैं तो अकेले चलिए और अगर बहुत आगे जाना चाहते हैं तो साथ चलिए, 'जिस दिन मैं उड़ने में सक्षम नहीं रहूंगा, वह टाटा के साथ एक सामान्य व्यक्ति शांतनु का नाम भी जुड़ा रहेगा।'
आवारा कुत्तों के प्रति आपसी प्रेम और रतन टाटा और नायडू (पुणे निवासी नायडू, जो टाटा समूह की एक कंपनी में काम कर रहे थे) को करीब ले आई। नायडू ने एक आवारा कुत्ते की मौत से परेशान होकर हारिफ्लेक्टिव कॉलर बनाया था जिससे वाहन चालक कुत्तों को जल्दी पहचान कर सकें। उसने रतन टाटा को इस बारे में पत्र लिखा। इसके बाद रतन टाटा ने शांतनु को मुंबई बुलाया था और यहीं से इन दोनों के बीच दोस्ती का सिलसिला शुरू हुआ। यह सिलसिला रतन टाटा की आखिरी सांस तक बना रहा। रतन टाटा ने नायडू को इस उद्यम के लिए निवेश और एक स्थायी बांड भी दिया था।
कहा जाता है कि एक बार टाटा ने 'बांबे हाउस' के बाहर बारिश में एक आवारा कुत्ते को बारिश से बचने के लिए संघर्ष करते देखा था। इसी के बाद उन्होंने परिसर के अंदर कुत्तों के प्रवेश के संबंध में विशेष निर्देश दिए। बेजुबान जीवन के प्रति उनकी सहानुभूति इतनी गहरी थी कि जब समूह ने कुछ साल पहले 'बांबे हाउस' का नवीनीकरण किया तो 2018 में उसने परिसर के भूतल पर विशेष तौर पर आवारा कुत्तों के लिए समर्पित एक हिस्से का निर्माण कराया।
एक बड़े कमरे को कुत्तों के निवास स्थान के रूप में बनाया गया है जो कई सुविधाओं से लैस है और यह एक आम इंसान को भी उनसे (कुत्तों से) ईर्ष्या करने पर मजबूर कर देगा। कमरे में खाने-पीने के लिए एक अलग स्थान है। उन्हें एक कर्मी द्वारा नहलाया जाता है। कमरे में कुत्तों के सोने के लिए भी जग है। वे आराम की नींद ले सकते हंै।
कहते हैं कि उन्हें एक बार फैज़ अहमद फैज़ की नज़्म 'कुत्ते' का एक अंग्रेजी अनुवाद किसी ने भेज दिया था। रतन टाटा ने उसे बार-बार पढ़ा और 'फ्रेम' में मढ़वा कर रख लिया। वह नज़्म थी-
ये गलियों के आवारा बे-कार कुत्ते
कि बख्शा गया जिन को ज़ौक़-ए-गदाई
ज़माने की फटकार सरमाया इन का
जहां भर की धुत्कार इन की कमाई
न आराम शब को न राहत सवेरे
ग़लाज़त में घर नालियों में बसेरे
जो बिगड़ें तो इक दूसरे को लड़ा दो
जऱा एक रोटी का टुकड़ा दिखा दो
ये हर एक की ठोकरें खाने वाले
ये फाक़ों से उकता के मर जाने वाले
ये चाहें तो दुनिया को अपना बना लें ये आक़ाओं की हड्डियां तक चबा लें
कोई इन को एहसास-ए-जि़ल्लत दिला दे
कोई इन की सोई हुई दुम हिला दे
यह भी ज़रूरी है कि रतन टाटा की अविस्मरणीय यादों के साथ-साथ ही इस बार की नोबेल पुरस्कार विजेता साहित्यकार को भी याद किया जाए। इस वर्ष साहित्य के नोबेल पुरस्कार के लिए दक्षिण कोरियाई लेखिका हान कांग को चुना गया है। उन्हें यह सम्मान उनके गहन काव्यात्मक गद्य के लिए दिया गया है जिसमें ऐतिहासिक आघातों और मानव जीवन की नाज़ुकता को रेखांकित किया गया है। वह यह पुरस्कार पाने वाली 17वीं महिला हैं।
उन्हें देश के पिछले सैन्य शासन के दौरान दक्षिण कोरिया में लोकतंत्र बहाल करने और संबंधों में सुधार के प्रयासों के लिए यह सम्मान दिया गया है। हान कांग ने वर्ष 1993 में एक कवि के रूप में प्रकाशन की शुरुआत की। उनका पहला लघु कहानी संग्रह 1994 में प्रकाशित हुआ, जबकि उनका पहला उपन्यास 'ब्लैक डियर' 1998 में प्रकाशित हुआ। काव्यात्मक उपन्यास हान के जन्म के तुरंत बाद उनकी बड़ी बहन की मृत्यु पर आधारित है। उनका सबसे हालिया उपन्यास 'वी डू नाट पार्ट' इसी साल अंग्रेजी में प्रकाशित होने वाला है। अब तक 119 लेखकों को साहित्य का नोबेल पुरस्कार दिया गया है जिसमें महिलाओं की संख्या सिर्फ 17 है।

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