किसी भी व्यक्ति के जीवन, स्वतंत्रता, समानता आैर सम्मान का अधिकार ही मानव अधिकार है। मनुष्य योनि में जन्म लेने के साथ मिलने वाला प्रत्येक अधिकार मानवाधिकार की श्रेणी में आता है। संविधान में बनाए गए अधिकारों से बढ़कर महत्व मानवाधिकारों का माना जा सकता है। इसका कारण यह है कि ये ऐसे अधिकार हैं जो सीधे प्रकृति से सम्बन्ध रखते हैं, जैसे जीने का अधिकार केवल कानून सम्मत अधिकार नहीं है बल्कि इसे प्रकृति ने प्रदान किया है। मानवाधिकारों में आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक अधिकारों के समक्ष समानता का अधिकार एवं शिक्षा का अधिकार आदि नागरिक और राजनीतिक अधिकार भी शामिल हैं। सम्राट अशोक के आदेश पत्र आदि अनेक प्राचीन दस्तावेजों एवं विभिन्न धार्मिक और दार्शनिक पुस्तकों में ऐसी अवधारणाएं हैं जिन्हें मानवअधिकार के रूप में चिन्हित किया जा सकता है।
भारतीय संविधान में न केवल मानवाधिकारों की गारंटी दी गई है बल्कि इसका उल्लंघन करने पर सजा का भी प्रावधान किया गया है। भारतीय संविधान का उद्देश्य एक ऐसे समाज की स्थापना था जो विधिसम्मत होने के साथ ही मानवहित में भी हो, जिसके अंतर्गत समस्त देशवासियों को बिना किसी भेदभाव के समान अवसर, शांति और सुरक्षा के वातावरण में गरिमामयी रूप से जीने का अधिकार मिल सके। भारत में मानवाधिकारों की स्थिति में जटिलता देखी जा रही है।
मानवाधिकारों की बड़ी समस्या यह है कि इसका हनन राजनीतिक कारणों के अतिरिक्त धार्मिक मुद्दों पर भी किया जा रहा है। मानवाधिकार एक ऐसा विषय है जो सभी सामाजिक विषयों में सबसे गम्भीर है, जिस पर हम एकपक्षीय विचार नहीं कर सकते लेकिन दुर्भाग्य से ऐसा हो रहा है। जम्मू-कश्मीर में शोपियां फायरिंग के मामले में मानवाधिकारों का मसला बहुत बड़ा सवाल बनकर खड़ा है। पत्थरबाजों पर सेना के जवानों की फायरिंग में दो लोगों की मौत के बाद जम्मू-कश्मीर की महबूबा सरकार ने सैनिकों के विरुद्ध तो प्राथमिकी दर्ज कर ली लेकिन हजारों पत्थरबाजों पर से केस वापस ले लिए। जम्मू-कश्मीर में सेना द्वारा मानवाधिकारों के हनन का मामला उछाला गया। तथाकथित कुलजमाती हुर्रियत की पत्थरबाजों को मुआवजे की मांग और सैनिकों को जेल भेजने की मांग के बीच सब बुद्धिजीवी खामोश थे तब भारतीय सैनिकों के तीन बच्चों- प्रीति, काजल आैर वैभव मानवाधिकार आयोग पहुंचे और बोले ‘‘अंकल हमारे पापा को पत्थरों से मारा जा रहा है, प्लीज उन्हें बचा लीजिए, आप लोग उनके लिए कुछ क्यों नहीं करते। प्लीज अंकल बचा लीजिए मेरे पापा को।’’ इन बच्चों की गुहार पर भारत रोये नहीं तो क्या करे? इस गुहार ने तो आम आदमी को भी झकझोर कर रख दिया। उनके सोने से जागने जैसी चेतना आई है। बच्चों ने सवाल किया है कि सैनिकों द्वारा आत्मरक्षार्थ गोली चलाए जाने पर तो एफआईआर दर्ज की गई लेकिन उन पत्थरबाजों पर कार्रवाई क्यों नहीं हुई जो उन पर पत्थरों से हमला कर रहे थे। क्या आयोग की जवानों के मानवाधिकारों के प्रति कोई जिम्मेदारी या सहानुभूति नहीं है। बच्चों ने सवाल किया कि जवानों पर रोज पत्थरबाजों के हमले को लेकर आखिर क्यों आंखें मूंद ली जाती हैं।
शोपियां फायरिंग में अपने सैनिक बेटे के विरुद्ध एफआईआर रद्द कराने की मांग को लेकर एक पिता ने भी सुप्रीम कोर्ट का द्वार खटखटाया है। शोपियां फायरिंग एक अकेला ऐसा मामला नहीं है। राज्य में पहले भी ऐसी घटनाएं हुईं जहां आतंकियों या पत्थरबाजों से क्षेत्र को सुरक्षित करने पहुंचे सैनिकों पर हमला किया गया, लेकिन जवाबी कार्रवाई करने पर उल्टा उन पर ही मामला दर्ज कर लिया गया। न तो राज्य और न ही केन्द्र सरकार ने उन्हें बचाने के लिए कोई कदम उठाया। आतंकी हमलों में जवान शहीद हो रहे हैं, छुट्टी पर घर लौटे सैनिकों की हत्याएं की जाती हैं, मस्जिद के बाहर पीट-पीटकर पुलिस अधिकारी की हत्या होती है तो सब बुद्धिजीवी और संगठन खामोश हो जाते हैं। उन्हें सैनिकों के मानवाधिकार का ध्यान क्यों नहीं आता? यह सही है कि रक्षा मंत्रालय की स्वीकृति के बिना सैनिकों पर केस नहीं चलता। केन्द्र में भाजपा की सरकार है और राज्य में वह पीडीपी के साथ सत्ता में भागीदार है फिर एक हाथ दूसरे हाथ को काटता क्यों है? क्या किसी हत्यारे या आतंकवादी का कोई मानवाधिकार है जो हजारों लोगों की जिन्दगी तबाह करने के दोषी हैं। अगर ऐसे आतंकवादी या पत्थरबाजों का मानवाधिकार है तो क्या उन लोगों के मानवाधिकारों का कोई अस्तित्व है जो इन तत्वों का शिकार होते हैं। भारत जैसे विशाल देश में अपवादस्वरूप मानवाधिकार हनन की घटनाएं होती रहती हैं।
फर्जी मुठभेड़ों की संख्या में वृद्धि होना शक्ति के दुरुपयोग का मामला है। जम्मू-कश्मीर का आतंकवाद आैर पूर्वोत्तर का आतंकवाद भारत की प्रमुख समस्याएं हैं। कश्मीर में आतंकवादियों को पाकिस्तान का पूर्ण संरक्षण प्राप्त है। भाड़े के आतंकवादियों को कश्मीर भेजा जा रहा है जाे वहां मानवता की हत्या कर मानवाधिकारों का खुला उल्लंघन करने में लगे हैं। हमारी सेना और अन्य सुरक्षा बल स्थिति को सामान्य बनाने के लिए दिन-रात लगे हुए हैं लेकिन मानवाधिकार का शोर मचाने वालों की आत्मा आतंकवादियों द्वारा निर्दोषों की हत्या पर क्यों नहीं जागती। नक्सली हिंसा पर भी तथाकथित मानवाधिकारवादियों ने बहुत ढिंढोरा पीटा था। मानवाधिकारों के मुद्दे पर अमेरिका और पाक ने भारत को लगातार बदनाम करने की कुचेष्टा की है और इस मुद्दे पर भारत पर दबाव बनाए रखने के लिए अपनी विदेश नीति के अस्त्र के रूप में इस्तेमाल किया। भारत को बदनाम करने वाले लोगों को पाकिस्तान के सिंध, ब्लूचिस्तान और पाक अधिकृत कश्मीर में मानवाधिकारों का खुला उल्लंघन नजर क्यों नहीं आता? भारत की रणनीति आतंकवादियों द्वारा उत्पन्न मानवाधिकारों के हनन की समस्या की जड़ का ही समूल नाश करने की होनी चाहिए। जम्मू-कश्मीर में पीडीपी-भाजपा गठबंधन सरकार काे आतंकवादियों और पत्थरबाजों की हिंसक काली करतूतें भी नजर आनी चाहिएं। यदि ऐसा नहीं किया गया तो भारतवासी आंसू बहाने को मजबूर होंगे।