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तीस्ता सीतलवाड़ : जरूरी है जांच

तीस्ता सीतलवाड़ को वर्ष 2007 में तत्कालीन राष्ट्रपति अब्दुल कलाम ने महाराष्ट्र में सार्वजनिक मामलों में पद्मश्री से सम्मानित किया था।

तीस्ता सीतलवाड़ को वर्ष 2007 में तत्कालीन राष्ट्रपति अब्दुल कलाम ने महाराष्ट्र में सार्वजनिक मामलों में पद्मश्री से सम्मानित किया था। उन्हें इससे पहले 2002 में राजीव गांधी राष्ट्रीय सद्भावना पुरस्कार भी मिल चुका है। इसके अलावा उन्हें वर्ष 2000 में प्रिंस क्लॉस अवार्ड, 2003 में नूनबर्ग अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार पुरस्कार भी मिल चुका है। तीस्ता सीतलवाड़ पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में प्रसिद्ध हैं और तीस्ता सिटीजन फार जस्टिस एंड पीस की सचिव हैं। गुजरात एटीएस ने अब तीस्ता सीतलवाड़ को गिरफ्तार कर लिया है। सुप्रीम कोर्ट ने 24 जून को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को गुजरात दंगों में क्लीन चिट देते हुए फैसले में उल्लेख किया कि तीस्ता सीतलवाड़ ने याचिकाकर्ता जकिया जाफरी की भावनाओं के साथ खिलवाड़ किया और उनकी भावनाओं का शोषण करते हुए उसका गलत उद्देश्यों से उपयोग किया। दंगों के बारे में गलत हलफनामे दिए गए। कुछ मानवािधकार संगठन और  एनजीओ उनकी गिरफ्तारी पर सवाल उठा रहे हैं लेकिन क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि को धूमिल करने, दंगों के बारे में सनसनीखेज और झूठे दावे करके अदालतों को गुमराह करने के खिलाफ कार्रवाई नहीं होनी चाहिए? जांच इसलिए भी जरूरी है क्योंकि इस तरह की कार्रवाइयां उद्योग बन चुकी हैं और  देश के कई एनजीओ की भूमिका सवालों के घेरे में हैं। 
तीस्ता पर आरोप है कि उसने और उनके पति ने 2007 से 2014 तक बड़े पैमाने पर धन इकट्ठा करने का अभियान शुरू किया और दंगा पीड़ितों को न्याय दिलाने के नाम पर 6-7 करोड़ रुपए इकट्ठा कर बड़ी धोखाधड़ी को अंजाम दिया। उन्होंने फंड इकट्ठा करने के लिए विज्ञापन दिया और नामी​-गिरामी लोगों से फंड लिया। आरोप यह भी है कि उन्होंने विदेशी मुद्रा कानूनों का उल्लंघन किया और 2009 में अमेरिका आधारित फोर्ड फाउंडेशन द्वारा अपने एनजीओ को दान किये धन का दुरुपयोग किया। तीस्ता पर लगे आरोपों को गंभीरता से लेने की जरूरत है और सत्य सामने आना ही चाहिए। 
भारत में कई एनजीओ की भूमिका पर सवाल उठते रहे हैं। कौन नहीं जानता कि किस तरह लश्कर की आतंकी इशरत जहां को निर्दोष बताकर और मुंबई बम धमाकों के दोषी याकूब मेमन को फांसी की सजा से बचाने की कोशिश की गई। कौन नहीं जानता कि कुडनकुलम परमाणु प्लांट की स्थापना के खिलाफ विदेशी धन से प्रायोजित आंदोलन चलाया गया। कभी मानवाधिकार के नाम पर कभी न्याय के नाम पर बड़े आंदोलन शुरू किए गए। यह आंदोलन विदेशी चंदे के बल पर खड़े किए गए। इस वर्ष जनवरी में गृहमंत्रालय ने देश में लगभग 6000 संस्थाओं को विदेशी चंदा लेने से रोक दिया तो हंगामा उठ खड़ा हुआ। विदेशी चंदा हासिल करने के लिए किसी भी संगठन या गैर सरकारी संस्थान को एफसीआरए के तहत पंजीकरण कराना जरूरी होता है। ग्रीन पीस और एमनेस्टी इंटरनेशनल सहित कई गैर सरकारी संगठनों के एफसीआरए पंजीकरण रद्द किए गए थे। कई एनजीओ पर आरोप लगे कि जो धन उन्हें विदेश से मिलता है उस धन का उपयोग उसी उद्देश्य के लिए जो जिस कार्य के लिए उन्हें यह धन मिला। काला सच यह है कि भारत में एनजीओ की मदद से बहुत सारी ताकतें अपने एजेंडे पर काम करती रही हैं। देश के विकास में अवरोध पैदा करना, राष्ट्रीय एकता अखंडता को चुनौती देना या ऐसा करने वालों की ढाल बनना अनेक एनजीओ का काम रहा है। इन संगठनों ने सेवा के नाम पर चंदा लिया लेकिन मानव सेवा तो दूर की बात इन्होंने भारत विरोधी काम किए। सामाजिक न्याय, महिला सशक्तिकरण, मजहबी सहिष्णुता  की आड़ में जमकर अपनी दुकानें चलाईं।
गुजरात दंगों पर सुप्रीम कोर्ट की ​निगरानी में काम करने वाले विशेष दल की रिपोर्ट को आधारहीन साबित करने का अभियान 16 वर्षों तक जारी रहा क्योंकि इसके पीछे एक पूरा काक्स काम कर रहा था। जो किसी गिरोह से कम नहीं था तीस्ता सीतलवाड़ मामले में जांच इसलिए भी जरूरी है क्योंकि लोकतंत्र में ऐसी साजिशों को सहन नहीं किया जा सकता क्योंकि इससे अंततः लोकतंत्र ही कमजोर होगा। यद्यपि तीस्ता सीतलवाड़ अपने ऊपर लगे आरोपों को गलत करार दे रही है। उसका यह भी कहना है कि भाजपा गुजरात विधानसभा चुनावों से पहले वहां की जनता को भ्रमित करने का प्रयास कर रही है लेकिन क्योंकि अब यह मामला जांच की ओर बढ़ चुका है तो जांच के तार्किक परिणाम आने ही चाहिए। यह दीवार पर लिखा हुआ सत्य है कि  अनेक एनजीओ काले धन को सफेद बनाने वाले कारोबार में संलग्न है। कुछ संचालकों ने एनजीओ को मिले धन का इस्तेमाल अपनी निजी संपत्तियां बनाने में ​किया। पारदर्शिता  के अभाव में बहुत कुछ सामने नहीं आया है। यह सवाल भी बार-बार उठता रहा है कि एनजीओ आतंकवादियों और नक्सलवादियों के मारे जाने पर मानवाधिकार की बात उठाते हैं लेकिन सुरक्षाबलों के जवानों की शहादत पर खामोशी साध लेते हैं। भविष्य में किसी भी राजनीतिज्ञ को बदनाम करने की साजिशों को थामने के लिए निष्पक्ष एवं ईमानदार जांच होनी जरूरी है। तभी देश के लोगों को पता चलेगा कि सच कितना गहरा है। 
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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