जम्मू-कश्मीर के नियन्त्रण रेखा के निकट गुलमर्ग संभाग में सप्ताह भर में आतंकवाद की हुई चौथी घटना बताती है कि सूबे में सक्रिय अलगाववादी तत्व राज्य में हुई लोकतान्त्रिक प्रक्रिया को सहन नहीं कर पा रहे हैं और खिझियाहट में खूनी खेल खेल रहे हैं। इससे यह भी स्पष्ट है कि पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित आतंकवादी तंजीमें और कश्मीर में बैठे उनके गुर्गे सूबे में अपना वजूद दिखाने के फेर में सीधे भारतीय फौजों को निशाने पर ले रहे हैं। ताजा आतंकवादी घटना में सेना के दो जवानों सहित फौज में पल्लेदारी कर रहे दो कश्मीरी मुस्लिम मजदूरों की हत्या करना यह बताता है कि आतंकवादी दहशत फैला कर राज्य की नई उमर अब्दुल्ला सरकार को असफल कर देना चाहते हैं। वास्तव में यह लोगों द्वारा चुनी गई नई लोकतान्त्रिक सरकार के लिए गंभीर चुनौती है कि वह लोगों की भावनाओं के अनुसार कार्य करके दिखाये।
यह घटना तब हुई है जब नये मुख्यमन्त्री उमर अब्दुल्ला देश की राजधानी नई दिल्ली आये हुए हैं और प्रधानमन्त्री व रक्षामन्त्री से भेंट कर रहे हैं। उमर अब्दुल्ला ने केन्द्र सरकार से जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा देने के बारे में गुहार लगा रखी है। इस बारे में उन्होंने अपने मन्त्रिमंडल की पहली बैठक में ही प्रस्ताव पारित करके उसे उपराज्यपाल के पास भेज दिया था और उपराज्यपाल श्री मनोज सिन्हा ने उस पर अपनी स्वीकृति की मुहर लगा कर केन्द्र को प्रेषित कर दिया था। आतंकवादियों से यह सहन नहीं हो रहा है और वे अपने आकाओं के इशारे पर ऐसी बुजदिली की घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं। मगर कश्मीर में जितने भी अलगाववादी तत्व थे लगभग सभी पर 2019 के बाद से राष्ट्रपति शासन के दौरान नकेल डालने का काम मुस्तैदी के साथ हो चुका है। फिर भी कुछ तत्व ऐसे बचे हुए हैं जो सीमा पार की शह पर ऐसी घटनाओं को अंजाम देते रहते हैं। भारत की फौजों ने सीमा पार से होने वाली घुसपैठ पर हालांकि लगाम लगा रखी है फिर भी पाकिस्तान से आने वाले दहशतगर्द कोई रास्ता निकाल लेते हैं।
कश्मीर घाटी में जब इनकी दाल गलनी बन्द हो गई तो इन्होंने जम्मू इलाके में घुसपैठ करनी शुरू कर दी, जिसकी वजह से हमने देखा कि किस प्रकार जम्मू क्षेत्र में दहशतगर्द सक्रिय हुए और उन्होंने भारतीय फौजियों को अपना निशाना बनाना शुरू किया। मगर राज्य में चुनाव होने के बाद अब कश्मीर घाटी में भी आतंकवाद की घटनाएं होने लगी हैं। ऐसा इसलिए हो रहा है जिससे घाटी के लोगों में दहशत फिर से पनपाई जा सके। मगर इसके कुछ राजनैतिक आयाम भी हैं। जब राज्य में कांग्रेसी नेता रहे गुलाम नबी आजाद की सरकार थी तो उन्होंने यह कहकर एकबारगी सभी को चौंका दिया था कि राज्य के कुछ राजनैतिक दलों के नेताओं के आतंकवादियों के साथ सम्बन्ध हैं। उनके इस बयान के उस समय भी गंभीर अर्थ निकाले गये थे। आजाद ने राजनैतिक दलों के नेताओं के नाम नहीं बताये थे मगर इशारों में ही साफ कर दिया था कि घाटी में अलगाववाद के पनपने के क्या मायने हो सकते हैं। हमें इस तरफ भी ध्यान देना होगा कि पिछले महीने जम्मू-कश्मीर में सम्पन्न हुए विधानसभा चुनावों में कुछ कट्टरपंथी तत्वों ने भेष बदल कर हिस्सा लिया था। मगर कश्मीर की जनता ने इन सबको खारिज करके मुख्य क्षेत्रीय दलों को चुना जिसमें उमर अब्दुल्ला की पार्टी नेशनल कॉन्फ्रेंस अव्वल रही।
नेशनल कॉन्फ्रेंस जम्मू-कश्मीर की सबसे पुरानी पार्टी है और यह पूर्णतः लोकतन्त्रवादी है। राज्य को राजशाही से निकाल कर प्रजातन्त्र की स्थापना करने में इस पार्टी का जबर्दस्त योगदान रहा है । अतः आतंकवादी एक मायने में इस पार्टी के शासन को ही चुनौती दे रहे हैं। उमर अब्दुल्ला को अलगाववादियों की यह चुनौती स्वीकार करनी पड़ेगी और लोगों की इच्छा के अनुसार शासन देना पड़ेगा। इस काम में केन्द्र की सरकार उनके साथ है क्योंकि केन्द्र की सरकार की तरफ से संकेत दे दिया गया है कि वह सूबे को पूर्ण राज्य का दर्जा देने पर विचार कर रही है। केन्द्र में भाजपा की सरकार है और भाजपा ने हाल में हुए चुनावों में राज्यवासियों को यकीन दिलाया था कि वह उन्हें पूर्ण राज्य का नागरिक बनायेगी। अतः नेशनल कॉन्फ्रेंस की सरकार को भाजपा का समर्थन लोकतान्त्रिक तरीके से प्राप्त होगा और संविधान के अनुसार सूबे की सरकार चलेगी। हमारा संविधान कहता है कि भारत के राज्यों में किसी भी राजनैतिक दल की सरकार हो सकती है और केन्द्र में पृथक दलों या किसी एक दल की सरकार हो सकती है। केन्द्र की सरकार का रवैया सभी राज्य सरकारों के प्रति एक समान होगा। अतः जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा मिलने में कोई कठिनाई पेश नहीं आयेगी। उस स्थिति में फौज व नागरिक सरकार की संयुक्त कमान के मुखिया राज्य के मुख्यमन्त्री उमर अब्दुल्ला होंगे। फिलहाल उपराज्यपाल इस कमान के मुखिया हैं।
वैसी स्थिति में मुख्यमन्त्री का दायित्व बढ़ जायेगा। अतः बहुत साफ है कि घाटी में पनप रहे आतंकवाद से निजात पाने के लिए उमर अब्दुल्ला सभी क्षेत्रों में इसकी उपस्थिति को अस्तित्वहीन करने का प्रयास करेंगे। मगर फिलहाल उपराज्यपाल ने संयुक्त कमान की बैठक कर साफ कर दिया है कि आतंकवादियों को मुंहतोड़ जवाब दिया जायेगा और इन्हें दर-बदर करने में कोई कमी नहीं रखी जायेगी। हालांकि गुलमर्ग में जो वारदात हुई है वह संयुक्त कमान की बैठक के बाद ही हुई है मगर उपराज्यपाल का फैसला आ चुका है अतः अब दहशतगर्दों को अपनी करनी का फल न भुगतना पड़े, ऐसा नहीं हो सकता क्योंकि भारत की फौज मुंहतोड़ जवाब देने के लिए भी जानी जाती है। पूर्व में ऐसा करतब वह दिखा चुकी है।