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किसान आंदोलन का खामियाजा

लोकतंत्र में हर किसी को आंदोलन का अधिकार है। सरकार के नीतिगत फैसलों के विरोध में आंदोलन पहले भी होते आए हैं।

लोकतंत्र में हर किसी को आंदोलन का अधिकार है। सरकार के नीतिगत फैसलों के विरोध में आंदोलन पहले भी होते आए हैं। शांतिपूर्ण अनशन, धरने-प्रदर्शन का रास्ता हमें राष्ट्रपति महात्मा गांधी ने ही दिखाया था। कोरोना संकट के बीच देश की अर्थव्यवस्था को पहले ही काफी नुक्सान हो चुका है। आम लोगों की रोजी-रोटी पर असर पड़ा है। पंजाब और हरियाणा के किसान केन्द्र सरकार द्वारा लागू किए गए तीन कृषि कानूनों के खिलाफ रेल रोको आंदोलन चला रहे हैं। ट्रेनें और मालगाड़ियां बंद हैं। रेलवे की आर्थिक हालत पहले से ही खस्ता है। लॉकडाउन के दौरान पूरे देश में ट्रेन यातायात ठप्प रहा, जिसके चलते रेलवे का ​काफी वित्तीय नुक्सान हो चुका है। कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन के चलते अकेले पंजाब में रेलवे को करीब 1200 करोड़ का नुक्सान हो चुका है। किसान आंदोलन के चलते पंजाब-हरियाणा में यूरिया का भारी संकट पैदा हो गया है। इससे रबी की फसल की बुवाई प्रभावित हो रही है। किसानों को रबी फसलों की बुवाई के ​िलए यूरिया और डीएपी की जरूरत होती है। पंजाब में रबी सत्र के लिए 14.50 लाख टन यूरिया की जरूरत है लेकिन राज्य में केवल 7 हजार टन यूरिया ही उपलब्ध है। चार लाख टन यूरिया की खेप अक्तूबर में आने वाली थी लेकिन एक-एक लाख टन यूरिया ही पहुंचा। इस माह के लिए चार लाख टन यूरिया का ही आवंटन किया गया है।
पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने माल ढुलाई सेवाओं को बहाल करने के लिए रेल मंत्री पीयूष गोयल से हस्तक्षेप करने के लिए कहा था और दिल्ली आकर धरना भी ​दिया था। लेकिन रेल मंत्री पीयूष गोयल का कहना है कि  पंजाब सरकार किसानों को रेल पटरियों से हटाए और ट्रेन और चालक दल के सदस्यों की सुरक्षा का आश्वासन मांगा था। गतिरोध कायम है। रेल यातायात प्रभावित होने के कारण कोयले की सप्लाई भी ठीक से नहीं हो पा रही। ऐसे में कोयला आधारित बिजली संयंत्रों में उत्पादन प्रभावित हुआ है। ईंधन भंडार न के बराबर बचा हुआ है। पंजाब के पांच थर्मल पावर प्लांट हैं जिनमें से एक ही चल रहा है। राज्य में बिजली संकट गहरा गया है। पंजाब स्टेट पावर कार्पोरेशन लिमिटेड को रोजाना दूसरे माध्यमों से बिजली खरीदने पर पांच से दस करोड़ खर्च करने पड़ रहे हैं। मालगाड़ियों की आवाजाही रुक जाने से अब राज्य में बारदाने (जूट की बोरियों) का संकट हो गया है। राज्य में धान की फसल खरीद चल रही है लेकिन बारदाने की कमी के चलते कई जगहों पर खरीद प्रभावित हो रही है। राज्य में बारदाने की कुल खपत का 30 फीसदी हिस्सा सरकार और 70 फीसदी हिस्सा राइस सैलर उपलब्ध कराते हैं। पंजाब की अधिकतर जूट की बोरियां पश्चिम बंगाल से आती हैं लेकिन मालगाड़ियां रद्द होने से बारदाने की सप्लाई ठप्प है। इससे गोदामों में पड़े गेहूं का स्टॉक भी दूसरी जगह पर भेजने में दिक्कत हो रही है।
राज्य में बिजली संकट गहरा गया है। अब राजस्थान में गुर्जर आरक्षण आंदोलन शुरू हो गया है। गुर्जर रेल लाइनों पर बैठे हुए हैं, जिसके चलते या तो ट्रेनें रोकनी पड़ी हैं या फिर उनके रूट परिवर्तित किए गए हैं। पहले भी गुुर्जर आरक्षण आंदोलन के दौरान कई जगह पटरियां उखाड़ दी गई थीं और सार्वजनिक सम्पत्ति को नुक्सान पहुंचाया गया था। आंदोलनों के दौरान रेल पटरियां उखाड़ना, बसाें को जला देने और सार्वजनिक सम्पत्ति को नुक्सान पहुंचाने की प्रवृति देशभर में देखी जा रही है। आंदोलनों के दौरान सार्वजनिक सम्पत्ति​ को नुक्सान के दृष्टिगत कई बार अदालतें राजनीतिक दलों को लोकतांत्रिक मर्यादाओं का सबक दे चुकी हैं। आंदोलनों के दौरान हुए नुक्सान की भरपाई राजनीतिक दलों से कराई जानी चाहिए, इस संबंध में कोलकाता हाईकोर्ट आदेश भी दे चुका है। शाहीन बाग धरने को लेकर सुप्रीम कोर्ट कह चुका है कि सार्वजनिक स्थानों पर धरने-प्रदर्शन की अनुमति किसी को नहीं दी जा सकती।
राजनीतिक दल आंदोलनों को हवा तो दे देते हैं लेकिन जब आंदोलन हिंसक हो जाते हैं तो फिर उन पर काबू पाना मुश्किल हो जाता है। विरोध का अधिकार होने का अर्थ यह नहीं कि दूसरों के अधिकारों को कुचल दिया जाए, लोगों के कारोबार को नुकसान पहुंचाया जाए। उन्हें काम पर जाने से रोका जाए और सार्वजनिक सम्पत्ति की तोड़फोड़ की जाए। हर मसले पर संगठन बंद का ऐलान कर देते हैं। जबरन दुकानें बंद करा दी जाती हैं। कोई महसूस नहीं करता कि दिहाड़ीदार श्रमिक शाम तक रोटी का प्रबंध कैसे करता है। बंद से कामकाज ठप्प होने के कारण असुरक्षा के वातावरण में कामकाज ठप्प हो जाता है। श्रमिकों को काम नहीं मिलता। पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिन्दर सिंह और दूसरे नेताओं की अपील के बावजूद कई किसान आंदोलनकारी अभी भी रेलवे ट्रैक पर जमे हुए हैं। पंजाब के चार प्रमुख रेल मार्गों सहित रेलवे की लगभग 20 सम्पत्तियों पर प्रदर्शनकारियों का कब्जा है।  किसान आंदोलन सबसे बड़ा खा​मियाजा किसानों को ही भुगतान पड़ रहा है। रबी की फसल की बुवाई में विलम्ब हो रहा है। किसान संगठनों और राजनीतिक दलों को ऐसी व्यवस्था करनी होगी कि असहमति के स्वर भी बुलंद होते रहे लेकिन सार्वजनिक सम्पत्ति और रेल पटरियों को नुक्सान न पहुंचाया जाए। आंदोलन शांतिपूर्ण और अनुशासित होने चाहिए ताकि आम ​जनता इससे प्रभावित न हो।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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