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भारतीय रेलवे का बदलता चेहरा

रेलवे इस देश के लोगों की जीवन रेखा है। इसकी भूमिका देश के एक हिस्से को दूसरे से जोड़ने में कम करके आंका नहीं जा सकती।

रेलवे इस देश के लोगों की जीवन रेखा है। इसकी भूमिका देश के एक हिस्से को दूसरे से जोड़ने में कम करके आंका नहीं जा सकती। इसका देशभर में फैला विशाल नेटवर्क राष्ट्रीय एकता को कायम रखने में परोक्ष रूप से महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और भारत की विविधता से उत्तर-दक्षिण और पूर्व-पश्चिम के नागरिकों का परिचय अद्भुत अंदाज में कराता है। हालांकि अंग्रेजों ने इस नेटवर्क का निर्माण पूरी तरह से वाणिज्यिक एवं व्यापारिक दृष्टि से किया था मगर इसमें मानवीय व सामाजिक पक्ष का समावेश हो चुका है। 
रेलवे को भारत की स्वतंत्रता के बाद से कभी मुनाफा कमाने वाले संस्थान के रूप में नहीं देखा गया और इसकी राष्ट्रीय व सामाजिक भूमिका ही केन्द्र में रही। अर्थव्यवस्था के उदारीकरण और वैश्वीकरण के बाद रेलवे की भूमिका में परिवर्तन आना लाजिमी था और यह परिवर्तन दिखाई भी दे रहा है। भारतीय रेल एक मुनाफा देने वाली कंपनी के रूप में देखी जा रही है तो उसके पीछे असली कारण यही है कि रेलवे में लाभ हो, इसका कारण भी अर्थव्यवस्था के बदलाव में छिपा हुआ है। भारत में गठबन्धन सरकारों के दौर में राजनीतिज्ञों ने रेलवे का इस्तेमाल दूध देने वाली गाय की तरह किया और इसके सहारे अपने राजनीतिक जनाधार को मजबूत बनाने के लिये किया। 
जो भी रेल मंत्री बना, उसने रेलवे को अपनी जागीर बना डाला। अपने-अपने राज्यों के लिये ट्रेनें चलवाई, रेलवे लाइनों का विस्तार भी उन्होंने अपने राज्यों में किया ताकि उनका जनाधार मजबूत किया जा सके। न तो किसी ने सुरक्षा की ओर ध्यान दिया और न ही यात्रियों की सुविधा पर। ट्रेनें कई-कई घण्टे देरी से पहुंचती थी। हर वर्ष नई ट्रेनों की घोषणा की जाती, यात्री किराया बढ़ाया नहीं जाता तो माल भाड़े में बढ़ोतरी कर दी जाती। 
गठबन्धन सरकारों के दौर में रेल मन्त्रालय का जिस तरह से राजनीतिकरण हुआ उससे एशिया में सबसे बड़े रेलवे तन्त्र में से एक हमारे रेल तन्त्र को जर्जरता की स्थिति में ला दिया था। भारतीय रेलवे घाटे की कंपनी बन चुकी थी। जब भी रेल बजट में नई घोषणायें की जाती फिर भी हम लोग खुश हो जाते-

बादलों का काफिला आता हुआ अच्छा लगा,
प्यास की धरती को हर सावन बड़ा अच्छा लगा,
जिन बातों का सच होना किसी हालत में मुमकिन न था,
ऐसी बातें हर दम सोचना अच्छा लगा।
जब भी मैं विदेश गया, वहां का रेलवे नेटवर्क देखकर सोचता था कि क्या कभी भारत में भी ऐसी आधुनिकतम ट्रेनें चलेंगी। क्या हमारी ट्रेनों में भी विदेशी ट्रेनों जैसी सुविधा होगी? क्या भारतीय भी हाई स्पीड ट्रेनों में सफर कर सकेंगे? यकीन मानिये मैं निराशावादी कभी नहीं रहा। समय के साथ ट्रेनों का विस्तार हुआ, विद्युतीकरण हुआ। नये आयाम खोले गये। दिल्ली में मेट्रो परियोजना की सफलता ने नये द्वार खोले। आज मैट्रो नेटवर्क का निर्माण देश के कई बड़े शहरों में हो चुका है और अनेक में किया जा रहा है। 
2014 में केन्द्र में नरेन्द्र मोदी सरकार बनने के बाद रेलवे मन्त्रालय सत्तारूढ़ भाजपा के खाते में आया। एनडीए सरकार की पिछली अवधि में भारत की सबसे तीव्र गति की ट्रेन, सबसे लम्बा पुल चालू करना, पहली बार डीजल से चलने वाले इंजन को इलै​क्ट्रिक इंजन में बदलना, पहला परिवहन विश्वविद्यालय बनाना, पहली एयर कंडीशन लोकल ट्रेन चलाना और सबसे कम दुर्घटनाओं का श्रेय रेल मन्त्रालय और मन्त्री पीयूष गोयल को इसका क्रेडिट दिया जाना चाहिये। रेलवे पहली बार टिकटिंग, शिकायतों के समाधान, फूड मैप और ट्रेनों का पता लगाने के लिये कई एप लेकर आया। 
गुरुवार को गृहमन्त्री अमित शाह ने दिल्ली से कटरा जाने वाली वन्दे भारत एक्सप्रैस को हरी झंडी दिखाई। ट्रेन में विमान जैसी सुविधायें दी गई हैं। यह ट्रेन 8 घण्टे में दिल्ली से कटरा पहुंचेगी। शुक्रवार को देश की कार्पोरेट सैक्टर की पहली प्राइवेट ट्रेन तेजस को लखनऊ जंक्शन से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हरी झंडी दिखाकर दिल्ली के लिये रवाना किया। यह ट्रेन केवल 6 घण्टे में लखनऊ से दिल्ली पहुंचेगी। पहली बार ट्रेन के विलम्ब होने पर यात्रियों को मुआवजा भी दिया जायेगा। 
रेलवे की सहायक कंपनी आईआरसीटीसी की इस पहली ट्रेन के यात्रियों का 25 लाख का निशुल्क बीमा भी दिया जायेगा। यात्रा के दौरान लूटपाट या सामान चोरी होने की स्थिति में भी एक लाख के मुआवजे की व्यवस्था है। तेजस की शुरूआत के साथ ही प्राइवेट कंपनियों द्वारा ट्रेनें चलाने का मार्ग प्रशस्त हो गया। देश में बुलेट ट्रेन परियोजना पर भी काम चल रहा है। 
आज लोग पैसा खर्च करने को तैयार हैं लेकिन इसकी एवज में उन्हें सुविधायें तो मिलनी ही चाहिये। दूसरी तरफ जो लोग अमीरों की तरह धन नहीं खर्च कर सकते, उनके लिये भी सुविधाओं का विस्तार करना रेलवे की जिम्मेदारी है। अंधाधुंध निजीकरण भी खतरनाक हो सकता है। भारतीय रेलवे बदल रही है। उम्मीद है कि हम एक दिन विश्वस्तरीय मुकाम हासिल कर लेंगे।

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