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रंगों की सियासत की ‘बदरंगी’

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1947 में हमने अपनी जिस आजादी को हासिल किया उसका अर्थ आत्म निर्णय और स्वराज्य का अधिकार था। इस आजादी की लड़ाई को भारत के सभी लोगों ने मजहब और क्षेत्र की सीमाओं को तोड़कर महात्मा गांधी के नेतृत्व में इस प्रकार लड़ा था कि भारत के उस आम आदमी के गौरव व आत्मसम्मान की रक्षा की जाए जिसे अंग्रेजी शासन ने लगातार दो सौ वर्षों तक अपने पैरों तले रौंदने में किसी प्रकार का गुरेज नहीं किया था। हमारी भाषाएं अलग–अलग होने के साथ–साथ ही क्षेत्रीय सांस्कृतिक पहचान में भी विविधता थी, धर्म भी अलग-अलग थे मगर इस सबके बावजूद हमारी राष्ट्रीय पहचान एक थी जिसे भारतीय या हिन्दोस्तानी कहा जाता था मगर चालाक अंग्रेजों ने इसे बहुत ही होशियारी के साथ इस तरह तोड़ने की साजिश रची कि हम मजहब की दीवारों में कैद हो गए और उन्होंने भारत को दो मुख्य टुकड़ाें हिन्दू और मुसलमान में तक्सीम करने में सफलता प्राप्त कर ली आैर नए मुल्क पाकिस्तान को बनवा दिया। यह मुल्क किस तरह खूनो-गारत का बाजार गर्म करके तामीर हुआ इसका इतिहास मैं कई बार लिख चुका हूं, जिसे पुनः दोहराने की जरूरत नहीं है मगर उस हकीकत को एक बार दोहराना चाहता हूं कि पाकिस्तान के बन जाने के बाद भी हमने खुद को किसी भी मजहब से क्यों नहीं बांधा? इसकी सबसे बड़ी वजह हमारी वह संस्कृति ही थी जिसमें मानवीयता को धर्म से ऊपर रखा गया था और धर्म को इसी का पर्याय बताया गया था।

हमने इसे धर्मनिरपेक्षता का नाम देकर सभी धर्मों का एक समान आदर करने की कसम उठाते हुए अपना आगे का सफर तय करना शुरू किया और आज हम जिस मुकाम पर पहुंचे हैं उसे देखकर पूरी दुनिया दांतों तले अंगुली दबाकर कहती है कि जिस मुल्क को सपेरों और मदारियों व बाजीगरों की बस्ती कहा जाता था वह आज परमाणु शक्ति से लैस होकर अंतरिक्ष खोज तक में लगा हुआ है। उसकी अर्थव्यवस्था के प्रति दुनिया हैरत भरी नजरों से देखकर कहती है वह कौन सा जादू था जिसे पं. नेहरू ने इसके आजाद होते ही चलाकर इसके लोगों को चांद तक पहुंचा दिया और दुनिया का सबसे बहा मध्यम वर्ग का उपभोक्ता बाजार बना दिया! यह जादू केवल यही था कि हमने विविधता में एकता को खोजकर अपनी ताकत में इजाफा किया और हर गरीब इंसान को इस रास्ते पर चलने के लिए प्रेरित किया। हमने कसम उठाई कि हम बीसवीं सदी के आधे से अपना स्वतन्त्र सफर तय करने वाले लोग वैज्ञानिक सोच के रास्ते को अपनाएंगे और मजहब की रवायतों को अपने निजी जीवन तक सीमित रखेंगे। हमारे एक वोट की ताकत से जो भी सरकार चुनी जाएगी वह अपने राजधर्म का पालन इस प्रकार करेगी कि उसकी निगाह में सभी नागरिक एक समान हों। उनके धर्म से हुकूमत को कोई लेना–देना नहीं होगा जबकि इसके ही समानान्तर हमसे अलग होकर वजूद में आए पाकिस्तान ने जो रास्ता अपनाया वह पूरी तरह उलट था। उसने तय किया कि वह मजहब के आधार पर अपने नागरिकों के हक तय करेगा और हुकूमत एक ही मजहब के चश्मे से मुल्क के निजाम को चलाएगी और अपना हर फैसला इसी के नुक्ते से करेगी।

हमारे सामने आज पाकिस्तान की जो तस्वीर है वह केवल हमें ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया को बता रही है कि मजहब के तास्सुब ने उसे किस तरह लहूलुहान करके जख्मी बना दिया है। इस मुल्क के लोगों की हैसियत को वहां के निजामी दस्तूरों ने इस तरह बदहवासी के आलम में डुबो दिया है कि उन्हें दूसरे मुल्कों में अपने मुल्क का नाम लेने पर शर्म से आंखें नीची करनी पड़ती है। उनके पास अपना कहने को कुछ नहीं बचा है सिवाय इसके कि उन्होंने भी चोरी–छिपे एटम बम बना लिया है और एक एेसी फौज खड़ी कर ली है जिसमें दहशतगर्दों की शिरकत लाजिमी बना दी गई है। ये सारा काम पाकिस्तान ने खुद को कभी अमरीका के पास और कभी चीन के पास गिरवी रखकर किया और अपनी अर्थव्यवस्था को इन मुल्कों के हवाले करके किया। हमारे परमाणु बम बनाने की ताकत को पूरी दुनिया ने स्वीकारा और पाकिस्तान के इसी काम को दुत्कारा। इसकी केवल एक ही वजह है कि पाकिस्तान ने खुद को मजहब के दायरों में कैद करके अपना मुस्तकबिल तलाशा और हमने अपने सभी धर्मों को एक बराबर मानकर अपना भविष्य खोजा और इसमें प्रत्येक नागरिक की निजी स्वतन्त्रता और आत्मसम्मान से किसी प्रकार का समझौता नहीं किया। सरकार सभी मजहबी रवायतों से दूर रहते हुए संविधान को अपना मजहब मानकर इस तरह चली कि सभी मजहबों को अपनी-अपनी रवायतों को मानने में किसी तरह दिक्कत न हो मगर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उत्तराखंड की सरकार जिस तरह खुद को पेश करने की तरकीबें भिड़ा रहे हैं उससे यह गुमां हो रहा है कि वे धार्मिक प्रतीकों को आगे रखकर इन सूबों का निजाम चलाना चाहते हैं। अगर उत्तर प्रदेश में हज मंजिल को भगवा रंग में रंगा जाता है तो इसके मायने यही हैं कि सरकार एक खास किस्म की सियासत चलाना चाहती है। यह भगवा या जाफरानी रंग को बेवजह सियासत में रंगने की तरकीब कही जा सकती है। मुसलमानों के त्यौहारों पर छुट्टियां खत्म करके और मदरसों को बेवजह राष्ट्रभक्ति के प्रदर्शन में शामिल करने के प्रयासों से हम खुद को ही छोटा कर लेंगे। रंगों की सियासत हमें किस तरह बदरंग बना सकती है, इसका उदाहरण पाकिस्तान है।

उत्तर प्रदेश तो वह राज्य है जिसका राजचिन्ह ही हिन्दू–मुसलमान इत्तेहाद की अजीम मिसाल है। इसके राज चिन्ह में मछली और धनुष का मनोहारी संगम है जिसे अवध के नवाबों ने इजाद किया था। इस्लाम से मछली की पाकीजगी और हिन्दू धर्म से भगवान राम के धनुष को मिलाकर इस प्रदेश की गंगा–जमुनी तहजीब का मुजाहिरा किया गया। हमारा अहद तो यही इत्तेहाद है फिर हम क्यों बेवजह बखेड़ा खड़ा करें। एेसी सियासत कभी भी पायेदार नहीं हो सकती क्योंकि इसमें आम आदमी के विकास को रंगों की चादर से ढांपने की कोशिश की जाती है मगर खुश किस्मती यह है कि हिन्दोस्तान के मतदाता अपना फर्ज बखूबी समझते हैं। वे जानते हैं कि रंगों के साये में गोरखपुर के अस्पताल में बेमौत मरे बच्चों की जानें वापस नहीं आ सकतीं जो आक्सीजन की कमी की वजह से हुई थीं मगर क्या कयामत है कि योगी जी ‘रंगों’ में आक्सीजन ढूंढ रहे हैं।

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