ईमानदारी की सजा मिलती है
सच्चाई को पडऩे लगती है मार अब
लब खुलते हैं जब सच बोलने के लिए
उठने लगते हैं लाखों सवाल अब
सब कहते हैं जैसे चलता है चलने दो
आप का काम भी हो रहा है, हमारा काम भी होने दो
लब खुलते हैं जब सच बोलने के लिए….
क्या हम उस भारत का स्वागत करें जहां अधिकारियों और कर्मचारियों को सच्चाई और ईमानदारी की सजा के तौर पर मिलती है उन्हें मौत या फिर तबादलों की प्रताडऩा, नोटिस और झेलने पड़ते हैं मुकद्दमे। अवैध खनन माफिया के विरुद्ध कार्रवाई करने, तेल का अवैध धंधा करने वालों को दबोचने पर कुछ अधिकारियों को अपनी जान गंवानी पड़ी है। भ्रष्टाचार की सलीब पर ईमानदारों को चढ़ाया जाता है और बेईमान यहां मौज करते हैं। अब अन्नाद्रमुक नेता और स्वर्गीय अम्मा जयललिता की अंतरंग सहेली शशिकला को जेल में मिल रहे शाही ट्रीटमैंट का खुलासा करने वाली डीआईजी जेल डी. रूपा को ईमानदारी की सजा मिली है। डीआईजी रूपा का तबादला कर उन्हें जेल विभाग से अलग निकाल कर ट्रैफिक विभाग की जिम्मेदारी सौंपी गई है। डी. रूपा ने एक रिपोर्ट में खुलासा किया था कि बेंगलुरु की जेल में आय से अधिक सम्पत्ति के मामले में बंद शशिकला को शाही ट्रीटमैंट मिल रहा है। उसके लिए एक विशेष किचन तैयार की गई है तथा उसकी सेवा के लिए नौकर-चाकर भी रखे गए हैं। वैसे भी भारतीय जेलें धनकुबेरों और माफिया डानों के लिए ऐशगाह की मानिंद होती हैं। डी. रूपा की रिपोर्ट से कर्नाटक की सियासत में खलबली तो मचनी ही थी। इतना ही नहीं रिपोर्ट में यह दावा भी किया गया कि इस तरह के ट्रीटमैंट के लिए जेल अधिकारियों ने काफी मोटी रकम रिश्वत के तौर पर ली है।
शशिकला, जो मामूली वीडियो पार्लर चलाती थी, अन्नाद्रमुक प्रमुख जयललिता के इतना करीब आ गई थी कि तमिलनाडु में उसका सिक्का चलता था। अम्मा जयललिता की रहस्यमय परिस्थितियों में हुई मौत को लेकर भी शशिकला पर बहुत से सवाल उठे थे। पूरा देश जानता है कि शशिकला किस तरह जयललिता की मौत के बाद अन्नाद्रमुक की सचिव बनकर सर्वेसर्वा हो गई थी और पूरी पार्टी उसके आगे नतमस्तक हो गई थी। भाग्य की विडम्बना देखिये शशिकला चिनम्मा नहीं बन पाई। मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने से पूर्व ही न्यायालय ने उसे सजा सुना दी और उसे जेल जाना पड़ा। डी. रूपा का भी विवादों से पुराना नाता रहा है। वर्ष 2000 में यूपीएससी में 43वां रैंक प्राप्त करने वाली डी. रूपा अफसरों के तबादले के विवाद में सांसद प्रताप सिन्हा से उलझ गई थीं। उन्होंने कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री येदियुरप्पा के खिलाफ भी कदम उठाने की कोशिश की थी। वह उन दिनों बेंगलुरु में डीसीपी थी। उस दौरान उन्होंने बिना परमिट के चल रही उन गाडिय़ों को बंद किया जो येदियुरप्पा से कहीं न कहीं जुड़ी हुई थीं। जिस समय वह भोपाल की एसपी थीं उस समय उन्होंने तत्कालीन मुख्यमंत्री उमा भारती को दंगा भड़काने के आरोप में गिरफ्तार किया था। उनके तबादले का आदेश कर्नाटक की कांग्रेसी सिद्धारमैया सरकार ने दिया है, वैसे भी देश की जनता का कांग्रेस पर से भरोसा खत्म हो चुका है, न ही लोगों को कांग्रेस से कोई उम्मीद है क्योंकि उसने हमेशा भ्रष्टाचारियों को संरक्षण देने का काम किया है।
ईमानदारी की सजा पाने वाली डी. रूपा कोई अकेली अधिकारी नहीं है। हाल ही में उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर जिला के स्याना सर्किल की महिला पुलिस अधिकारी श्रेष्ठा ठाकुर का तबादला किया गया। उसका कसूर इतना था कि उसने एक स्थानीय नेता का बिना हेलमेट मोटरसाइकिल चलाने पर चालान काट दिया था। इस पर स्थानीय नेताओं ने हंगामा कर दिया था। जब श्रेष्ठा का तबादला बहराइच कर दिया गया तो उसने फेसबुक पर लिखा था ”जहां भी जाएगा रोशनी लुटाएगा, किसी चिराग का अपना मकां नहीं होता।” दुर्गाशक्ति नागपाल को कौन नहीं जानता। आईएएस अधिकारी दुर्गाशक्ति ने 2013 में नोएडा के अवैध रेत खनन माफिया के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई की तो तत्कालीन सपा सरकार ने उसे काफी प्रताडि़त किया था।
उसका निलम्बन एक अवैध मस्जिद की दीवार गिराने के मामले में सांप्रदायिक सद्भाव बिगाडऩे के आरोप में किया गया था लेकिन असली कारण रेत खनन माफिया के विरुद्ध कार्रवाई ही थी। हरियाणा के अशोक खेमका, फतेहाबाद की एसपी संगीता रानी कालिया, आईएएस अधिकारी हर्षमंदर को भी कई बार तबादले झेलने पड़े। उत्तर प्रदेश कैडर के 1955 बैच के आईएएस अधिकारी भूरे लाल 35 वर्ष तक सेवा में रहे। कई अहम पदों पर रहे। सत्ता उन्हें भी प्रताडि़त करने से बाज नहीं आई थी। जब भी कोई अधिकारी व्यवस्था को चुनौती देता है तो उसका तबादला कर दिया जाता है, निलम्बित कर दिया जाता है या उसे कम महत्व का विभाग दे दिया जाता है। प्रशासनिक सेवा में कार्यरत अफसरों पर राजनीतिक दबाव होता है लेकिन कुछ अधिकारी ऐसे भी रहे जिन्होंने ईमानदारी, कत्र्तव्यनिष्ठा और निडरता से अपनी पहचान बनाई है।