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बच्चों की मौत का सिलसिला!

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जो लोग यह समझते हैं कि भारत की आजादी की लड़ाई केवल सत्ता बदलने या अंग्रेजों की जगह भारतवासियों की सरकार की स्थापना के लिए हुई थी वे भयंकर गलती करते हैं क्योंकि इस देश के लोगों की स्वतन्त्रता का युद्ध सबसे पहले अपना आत्मसम्मान स्थापित करने के लिए ही था क्योंकि अंग्रेजी राज में उनके इसी आत्मसम्मान को हर जगह कुचला जाता था। स्वदेशी राज की भावना आत्मसम्मान का गौरव रखने से ही उपजी थी जिसे लोकमान्य तिलक ने सर्वप्रथम ललकार कर कहा था। गुलाम भारत में अंग्रेज भारतीयों के इसी सम्मान को पैरों तले रौंदते हुए उन्हें ‘सर’ से लेकर ‘राय बहादुर’ तक के खिताब भी बांट रहे थे और आम हिन्दोस्तानी को अपनी सैर के लिए बनाई गई सड़कों या क्लबों तक में आने पर भी प्रतिबन्ध लगा रहे थे। उनकी भारत की उस जनता को अधिकार सम्पन्न और सशक्त बनाने की कोई नीयत नहीं थी जो गरीबी, अशिक्षा व मुफलिसी में अंग्रेज बहादुर को अपना आका मानने के लिए मजबूर कर रही थी मगर 15 अगस्त 1947 को जब हम आजाद हुए तो हमने महात्मा गांधी के उस वादे को पूरा करने की कसम खाई कि नये भारत में हर हिन्दोस्तानी का आत्मसम्मान सर्वोच्च स्थान पर रखा जायेगा और देश का जो भी विकास होगा वह इस मानक पर खरा उतरकर ही पूरा होगा। इसके लिए नये भारत के लोगों में आत्मविश्वास पैदा करके ही विकास के रास्ते पर चला जायेगा।

महात्मा गांधी ने आजादी से पहले ही यह रास्ता भी बता दिया था और अपने अखबार ‘हरिजन’ में लेख लिख-लिखकर स्पष्ट किया था कि आने वाले लोकतान्त्रिक भारत की संसदीय प्रणाली में कोई भी सरकार जनता की मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा करने से पीछे नहीं हट सकती है। गांधी ने इसी क्रम में लिखा कि ”जो सरकार जनता को स्वास्थ्य, शिक्षा व अन्न जैसी जरूरी चीजों को सुलभ नहीं करा सकती वह सरकार किसी भी हालत में नहीं कहलायी जा सकती है बल्कि उसे अराजकतावादी तत्वों का समूह ही कहा जा सकता है।” मुझे उत्तर प्रदेश के मुख्यमन्त्री योगी आदित्यनाथ के वक्तव्य पर आश्चर्य के साथ दु:ख भी हो रहा है कि उन्हें इतनी तक समझ नहीं है कि लोकतन्त्र के मायने क्या होते हैं। वह अभी तक मठाधीश की तरह ही सोच रहे हैं। निश्चित रूप से हर नवजात बच्चे के स्वास्थ्य की सुरक्षा करने की जिम्मेदारी राज्य सरकार की ही है और इसमें भी समाज के गरीब तबके के बच्चों की जीवन रक्षा के दायित्व से सरकार पक्के तौर पर बन्धी हुई है। यदि उन्होंने भारत के संविधान का अध्ययन नहीं किया है तो कृपया इसे अपने किसी चेले के जरिये ही पढ़कर याद कर लें और फिर अपने मुखारबिन्द से ‘शुभ वचन’ बोलें।

गौरक्षकों के हितों की दुहाई देने वाले मुख्यमन्त्री को यह पता होना चाहिए कि स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में किया गया सार्वजनिक निवेश ऐसा निवेश होता है जो आने वाली पीढिय़ों को स्वस्थ और शिक्षित बनाता है और उन्हीं से देश विकास के रास्ते पर आगे बढ़ता है मगर क्या गजब की प्रणाली शुरू करके गये हैं मान्यवर पी.वी. नरसिम्हा राव कि उन्होंने अस्पतालों और अच्छे स्कूलों में जाने का हक भी गरीबों से छीन लिया और सितम यह हुआ कि इसके बाद की सभी सरकारें इसी रास्ते पर इस कदर आगे बढ़ीं कि आज किसी गरीब आदमी को बुखार आने पर भी उसके इलाज में उसकी पूरी एक हफ्ते की कमाई साफ हो जाती है। हमने सरकारी अस्पतालों को लावारिस बनाकर छोड़ डाला और इन्हें भ्रष्टाचार का ऐसा अखाड़ा बना दिया जहां किसी गरीब आदमी तक के कपड़े तक नीलाम करने में अस्पताल के कर्मचारियों को शर्म नहीं आती। हमने अमीर लोगों के लिए कार्पोरेट संस्कृति के पांच सितारा अस्पताल बनाकर समझा कि हमने तरक्की कर ली है मगर यह सब उन 70 प्रतिशत लोगों की कीमत पर किया गया जिनके पास ‘बीमार’ तक पडऩे की हिम्मत नहीं बची है मगर क्या नजारा है छत्तीसगढ़ व झारखंड से लेकर उत्तर प्रदेश तक कि जहां देखो बच्चों के मरने की प्रतियोगिता लगी हुई है।

गोरखपुर के बीआरडी अस्पताल में अभी आक्सीजन की सप्लाई करने से बेमौत मारे गये बच्चों के माता-पिताओं की आंखों के आंसू सूखे भी नहीं थे कि छत्तीसगढ़ के रायपुर अस्पताल में इसी वजह से बच्चे मर गये। यहां मामला ठंडा नहीं हुआ कि झारखंड के जमशेदपुर और रांची अस्पतालों में पौने दो सौ बच्चे मौत के मुंह में समा गये। और देखिये काल का चक्र कैसे पूरा हुआ फिर से गोरखपुर के बीआरडी अस्पताल में तीन दिन में 62 बच्चे मौत के मुंह में समा गये। इन सभी में एक तथ्य सामान्य है कि ये सभी ‘गरीबों’ के बच्चे हैं। योगी जी ध्यान से सुनें, सरकार की पहली जिम्मेदारी इन्हीं गरीब बच्चों के स्वास्थ्य की सुरक्षा करने की है। ”सरकार अमीरों के लिए नहीं गरीबों के लिए होती है क्योंकि अमीर में सामथ्र्य होती है।” यह मैं नहीं कह रहा हूं बल्कि प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी का कहना है। लोकतन्त्र का पहला सबक भी यही है मगर सबसे बड़ा सवाल भारत के गरीब आज पूछ रहे हैं कि :

कोई तो सूद चुकाये, कोई तो जिम्मा ले,
उस इन्कलाब का, जो उधार सा है!

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