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स्नेह, सम्पर्क, सहयोग, समर्पण, संस्कार की परिभाषा थे भोलानाथ जी…

आज मैं जब लिखने बैठी हूं तो मेरे पास शब्दों की कमी है। मेरी कलम कांप रही है कि क्या लिखूं…जो इंसान मेरे लिए पिता तुल्य था बड़े भाई से बढ़कर था, जो हमेशा सबको साथ लेकर चलता था,

आज मैं जब लिखने बैठी हूं तो मेरे पास शब्दों की कमी है। मेरी कलम कांप रही है कि क्या लिखूं…जो इंसान मेरे लिए पिता तुल्य था बड़े भाई से बढ़कर था, जो हमेशा सबको साथ लेकर चलता था, सबका ख्याल रखता था और हर पल मुझे आगे देखना चाहता था। दीदी जी, दीदी जी कहते थकते नहीं थे, काम सारा खुद करना और हमेशा दीदी जी को आगे रखना। उन्हें हमेशा लगता था दीदी जी एक ऐसा सशक्त चेहरा है जिससे महिलाओं में आत्मविश्वास भरता है और चौपाल तेजी से आगे बढ़ रहा है, परन्तु मैं जानती हूं कि उनका मिलनसार स्वभाव, मेहनत, लग्न थी जो चौपाल को आगे बढ़ा रही थी। चौपाल की सशक्त टीम रवि बंसल जी, डा. स​म्बित पात्रा, श्री विनोद गोयल, श्री वी.के. जैन, श्री नरेश जैन, श्री सुुनील सेठी, श्री शंशाक गुप्ता, श्री प्रमोद गुप्ता, संजय गोयल, योगेन्द्र ऋषि, श्री रविन्द्र सांगवान, श्री सुनील मित्तल, श्री कमल जी, विकेश सैठी, सौरभ नैय्यर, जितेन्द्र महाजन, प्रवीन, राजकुमार भाटिया, आदर्श गुप्ता और बहुत से लोग आदरणीय भोलानाथ जी के सफल निर्देशन में काम करके आगे बढ़ रहे थे। आदरणीय बजरंग लाल जी, प्रेम जी गोयल बहुत से संघ के लोगों का आशीर्वाद प्राप्त था।
2020 मेरे लिए बहुत भारी सिद्ध हो रहा है। क्या कहूं अभी तो अश्विनी जी के जाने के बाद आंसू नहीं थम रहे और मैंने उनके जाने के बाद एक कदम भी घर से बाहर नहीं उठाया क्योंकि गम का पहाड़ बहुत बड़ा है। समझ ही नहीं आता उससे कैसे ऊबरूंगी… और उसके बाद यह आघात आदरणीय भोलानाथ जी मेरे मार्गदर्शक भी थे। तकरीबन हर रोज वो फोन करके हाल पूछते थे और कहते थे अब आपको बाहर निकलना है, समाज के लिए काम करना है, कमजोर नहीं पड़ना। यह विधि का विधान है इसे कौन रोक सकता है। आपको अश्विनी जी और अपनी ताकत को इकट्ठे लेकर काम करना है। मैं उन्हें कहती थी अभी मुझे समय दो…कभी उनकी पत्नी मुझे फोन करके हौसला बढ़ातीं, कभी उनकी बहू, सारा परिवार ही उनके स्वभाव का दर्पण है। उनके जैसा हर पल साथ खड़े होने वाला बहुत ही अपनापन साफ-सुथरा निश्चल।
आदरणीय भोलानाथ जी अश्विनी जी के साथ बहुत सालों से जुड़े हुए थे। जो अश्विनी जी ने पंजाबी मूवमेंट चलाई हुई थी यह उनका अहम हिस्सा थे, परन्तु मेरे साथ सम्पर्क तब हुआ जब आदणीय स्वर्गीय केदारनाथ साहनी जी ने मुझे चौपाल का हिस्सा बनने के लिए कहा और उन्होंने मुझे अपने जाने से एक महीना पहले चौपाल की मुख्य संरक्षिका बनाया। उसके बाद मैंने कभी मुड़ कर नहीं देखा…क्योंकि चौपाल के रूप में मुझे एक परिवार मिल गया था, जो हर सुख-दुख की घड़ी में साथ खड़ा था। सभी आदरणीय भोलानाथ के सफल कुशल नेतृत्व में काम करते थे। वो सबको साथ लेकर चलते थे, सबको आगे करना और खुद पीछे रहना यह उनकी आदत थी। सबके लिए वो अपने थे, कोई उनको पिता की नजर से देखता, कोई बड़ा भाई या कोई दोस्त। मेरे लिए वो एक गुरु भी थे। उनके हमेशा निर्देश होतेे थे कि यहां आपको आना है, यहां नहीं आदि। वो हमेशा मेरे सम्मान, सुरक्षा का ख्याल रखते  थे। हर चौपाल के प्रोग्राम में इजाजत लेते थे। मैं उनको कहती थी प्लीज ऐसा न करें मैं बहुत छोटी हूं अभी भी जब वो मुझे चाैपाल के प्रोग्राम में आने के लिए फोन किया तो मैंने उन्हें हाथ जोड़ कर कहा कि जब तक अश्विनी जी का वरीना (जो ग्यारह महीने बाद) मैं बाहर नहीं निकलूंगी और जनवरी पूरे साल के बाद काम में लगूंगी और तब घर से वेबीनार और आनलाइन काम कर रही हूं और उनको मैंने प्रार्थना की कि आप कोरोना में बाहर नहीं निकलें, अपनी सेहत का ख्याल करें। मुझे हंस कर कहते थे मुझे कुछ नहीं होता। अगर मैं घर बैठ गया तो काम कैसे चलेगा…मैंने और चौपाल के सभी साथियों ने उनसे बहुत प्रार्थना की कि वह अभी बाहर न निकलें, परन्तु वो न घर वालों की न हम सबकी बात मान रहे थे। एक ही लगन थी चौपाल उनकी जिद्द को काम करने की ललक को देखते उनका प्रिय बेटा अंकुश विज उनके साथ रहता था।
परन्तु कोरोना से नहीं बचा पाया, सारा परिवार इस कहर से गुजरा परन्तु कहते हैं न घर का मुखिया घरवालों की रक्षा करते सारा भार अपने ऊपर ले लेता है, वैसे ही उन्होंने शायद सबका भार अपने ऊपर ले लिया। एक महीना एम्स में रहने के बाद वो कोरोना मुक्त तो हो गए परन्तु घर के पास आकर अपने सभी बच्चों को आशीर्वाद दे नजदीक के अस्पताल में हृदयाघात से प्राण त्याग दिए। गुजरांवाला टाऊन का वो एरिया  शायद उनके नाम से ही मशहूर था वीरान हो गया। आज गुजरांवाला टाऊन वरिष्ठ नागरिक केसरी क्लब यहां तक कि पंजाब केसरी के कर्मचारियों की उनको याद कर आंखें नम हैं। समझ ही नहीं आ रही क्या हो रहा है…इस दुख की घड़ी में भी उनके परिवार को उनकी तरह मेरी चिंता थी, उनकी बहू का मुझे यही फोन आया कि हमें मालूम है आप अश्विनी जी की पुण्यतिथि से पहले नहीं निकलेंगी आैर हमें यह भी मालूम है कि आप इतने महीनों से घर में हो, आपका इम्यूनिटी लेवल भी लौ होगा तो आप बाद में आना…क्या परिवार छोड़ कर गए हैं।​ बिल्कुल अपने जैसा जो हमेशा दूसरों की चिंता करता है भगवान उनके परिवार को इस आघात को सहने की शक्ति प्रदान करें। यही कारण था कि इस कोरोना के समय भी उनके घर और उठाले में लोगों का हुजूम था। मैं जूम के साथ उनके साथ जुड़ी हुुई थी ऐसा व्यक्तित्व हमें दुबारा नहीं मिलेगा, खासकर मुझे ऐसा गुरु, ऐसा पिता तुल्य, बड़े भाई तुल्य व्यक्ति को पाना बहुत मुश्किल होगा। स्नेह, सम्पर्क, समर्पण, सहयोग, संस्कार की परिभाषा थे भोलानाथ विज जी। 
अभी गोवा की गवर्नर रहीं मृदुला सिन्हा जी का समाचार मिला उनसे मुझे बहुत स्नेह मिला। मेरी बेटियां, कॉफी टेबलुक का अहम हिस्सा था। इतना प्यार दिया कि भुलाया नहीं जा सकता। अभी 2 महीने पहले उन्होंने मुझे पंजाब केसरी में कॉलम लिखने की इच्छा जाहिर की थी। साथ ही अश्विनी जी के पीए मधूसूरदन जी के जाने की खबर हुई जो पहले लाला जी के जब वो मिनिस्टर थे पीए थे और अश्विनी जी के एमपी बनने के बाद। वाकई जीवन-मरण, लाभ-हानि, यश-अपयश सब विधि हाथ।

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