मैं पिछले सप्ताह ही अमेरिका से अश्विनी जी की सर्जरी होने के बाद भारत लौटी। अश्विनी जी जितनी भी तकलीफ में हों, उन्हें अपने भारत की एक-एक खबर की जानकारी होती है और वह अपने सम्पादकीय डेस्क को आर्टिकल प्रेषित करते हैं। पल-पल की खबर उनके आई-पैड पर बेटा आकाश दिखाता रहा। शायद यही अश्विनी जी की ऑक्सीजन है। न्यूज, विश्लेषण उनका जीवन है। वहां जब हम अमेरिकी डाक्टर, नर्स और अन्य अस्पताल सहयोगियों की तारीफ करते नहीं थकते थे उस समय साथ ही हम अपने भारतीय डाॅक्टर को भी याद कर रहे थे, सम्मान कर रहे थे। दुनिया के किसी भी कोने में चले जाओ भारतीय डाॅक्टर का बोलबाला है। जितना भारतीय डॉक्टर का सम्मान है शायद और किसी का नहीं होगा क्योंकि भारतीय डॉक्टर के साथ ब्रेन, भावनाएं और सहानुभूति अर्थात अपनेपन का अहसास भी जुड़ा हुआ है। वहां आईसीयू के बाहर मैं और मेरा बेटा वहां के डाक्टर की तारीफ के साथ अपने भारतीय डॉक्टर को याद करते थे, उनको भगवान मानकर नमन करते थे।
मानवता को समर्पित सबसे बड़ी सेवा का नाम है डाॅक्टरी सेवा। डॉक्टर लोग कठिन पढ़ाई करने के बाद इन्सान को बचाने का काम करते हैं। हमारे बहुत से मित्र डॉक्टर हैं जिनका बहुत नाम है, जिनके साथ हमारे पिछले 30-35 साल से सम्बन्ध हैं, जिनकी मेहनत और समाज सेवा की मैं कायल हूं और जो वरिष्ठ नागरिकों के लिए अपनी सेवाएं भी देते हैं। डॉ. रणधीर सूद, डॉ. त्रेहन, डॉ. राणा, डॉ. झींगन, डॉ. अनिल कोहली, डॉ. यश गुलाटी, डॉ. सुदिपतो, डॉ. मालविका सभ्रवाल, डॉ. अदिति सूद, डॉ. टीना भाटिया, डॉ. हर्ष महाजन, डॉ. वगई, डॉ. सुरेश भागड़ा, यश भागड़ा, डॉ. उमरे, डॉ. अंजलि मिश्रा, डॉ. आशा, डॉ. पवन गोयल, डॉ. वैद्य, डॉ. कटारिया और डॉ. मनोज, किस-किसका नाम लिखूं, सभी एक से बढ़कर एक मेरा मानना है कि डॉक्टर हमें जिन्दगी देते हैं और उनसे हमें प्यार करना चाहिए और सम्मान करना चाहिए।
हालांकि डॉक्टरी उपचार कितने भी उच्च स्तर के क्यों न हों परन्तु भगवान की मर्जी के आगे किसी का बस नहीं और डॉक्टरों को दोष नहीं दिया जाना चाहिए। वहां बैठे जब मुझे मालूम पड़ा कि डॉक्टरों के साथ मारपीट हुई और उनके समर्थन में पूरे देश में डॉक्टरों की हड़ताल है, मुझे बहुत दुःख हुआ कि डॉक्टरों की हड़ताल हुई क्योंकि हमें मालूम है कि दिल्ली में एम्स, सफदरजंग अस्पताल, मौलाना आजाद मैडिकल कॉलेज, जी.बी. पंत अस्पताल और कई सरकारी अस्पतालों में लाखों लोग दिल्ली इलाज करवाने आते हैं। पांच दिनों तक दिल्ली में तड़पते रहे। उसे मैं अपने अमेरिका के डॉक्टरों से तुलना कर रही थी कि आज हम इलाज करवाने आए हैं अगर यहां के डॉक्टर हड़ताल पर चले जाएं तो हमारा क्या होगा…..। पैसा, समय, मरीज की जान तीनों दांव पर होती जिसे कल्पना कर रूह कांप गई।
खैर समय रहते डॉ. हर्षवर्धन भी हड़ताल समाप्त करने के लिए डटे रहे जिन्होंने ममता से अपील की कि देशभर के वो लोग जो अस्पतालों में दाखिल हैं, को हमें अपनी सिर्वसेज बन्द नहीं करनी चाहिए। डॉक्टरों को सुरक्षा देना हमारा फर्ज है और उनकी मानवता को समर्पित सेवाओं के बदले हमें भी उनको सम्मान देना चाहिए, उनकी तकलीफों को समझना चाहिए। जब हम वापस आ रहे थे तो अश्विनी जी को दोबारा अस्पताल में दाखिल होना पड़ा। पेट में इन्फैक्शन हुआ और अस्पताल से ही हमें टिकट दो बार चेंज करनी पड़ी परन्तु वो ठीक नहीं हो रहे थे तब हमने उनसे विनती की कि हमें किसी तरह भारत जाने दो वहां फैमिली डॉक्टर रणधीर सूद हैं जो इनको समझ कर ठीक कर सकते हैं।
उन्होंने हमें कॉपरेट किया क्योंकि वहां के डाक्टर भारत के प्रसिद्ध डाक्टर रणधीर सूद की क्षमता और नाम को जानते हैं। जिस तरह हमारा सफर कटा हमें मालूम है क्योंकि अश्विनी जी की हालत नाजुक थी परन्तु जैसे ही भारत आए डॉ. रणधीर सूद के पास आए तो मुझे लगा डॉ. रणधीर सूद नहीं भगवान हैं। उन्होंने उनकी कंडीशन को स्टेबल किया। एक सप्ताह रहने के बाद अब अश्विनी जी स्वस्थ हैं। सच में भारतीय डॉक्टर ईश्वर का दूसरा रूप हैं।