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पहले ही दिन महंगाई की मार

2020 की सूर्य की पहली किरण के साथ लोगों ने नववर्ष का स्वागत किया। इसके साथ ही सभी ने इस वर्ष से उम्मीदें लगाए हुए अपने एजैंडे को तय किया होगा।

2020 की सूर्य की पहली किरण के साथ लोगों ने नववर्ष का स्वागत किया। इसके साथ ही सभी ने इस वर्ष से उम्मीदें लगाए हुए अपने एजैंडे को तय किया होगा। सभी अपनी आशाओं को पूरा करने के लिए रोजमर्रा की जिन्दगी में जुट गए। देश के आम लोगों के चेहरे पर खुशी उस समय दिखाई देगी जब उनकी जेब में कुछ पैसा बचे। वह अपनी बचत से कुछ परिवार के लिए खरीदें। कहीं घूमने-फिरने के लिए जाएं। 
परिवार के साथ कुछ सुखद समय ​बिताएं लेकिन साल के पहले ही दिन अखबारों की खबरें पढ़ कर मन विचलित हो गया। रेलवे ने नववर्ष की पूर्व संध्या पर रेल किराए में बढ़ौतरी कर दी, उधर रसोई गैस सिलैंडर भी महंगा कर ​दिया गया है। पहले लोगों को रेल बजट का इंतजार रहता था। रेल किराये-भाड़े में वृद्धि का ऐलान रेल बजट में किया जाता था लेकिन रेल बजट को आम बजट में मिला दिया गया है, इसलिए अब सरकारें बजट से पहले ही सब कुछ कर देती हैं और बजट केवल आंकड़ों का खेल रह गया है। रेलवे ने यद्यपि चार पैसे प्रति किलोमीटर के ​हिसाब से बढ़ौतरी की है। 
देखने में यह वृद्धि काफी मामूली लगती है लेकिन इससे लम्बी दूरी की यात्रा करने वालों पर बड़ा असर होगा। उपनगरीय ट्रेनों के किराए को भी बढ़ौतरी से बाहर रखा गया है। रेलवे ने पिछली बार 2014-15 में यात्री किराये में 14.2 फीसदी और माल भाड़े में 6.5 फीसदी की बढ़ौतरी की थी। रेलवे का कहना है ​कि यात्रियों को आधुनिक सुविधाएं मुहैया कराने के ​लिए किराये में बढ़ौतरी की गई। बढ़े किराये से मिलने वाले पैसे का इस्तेमाल स्टेशनों और रेलवे नेटवर्क को मजबूत बनाने में किया जाएगा। 
पिछले महीने ही संसद में पेश कैग की ​रिपोर्ट में कहा गया था कि रेलवे की परिचालन लागत दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। वर्ष 2017-18 में परिचालन अनुपात दस वर्ष के उच्चस्तर 98.44 प्रतिशत पर पहुंच गया है। इसका अर्थ यह है कि रेलवे को सौ रुपए कमाने के लिए 98.44 रुपए खर्च करने पड़ रहे हैं। कैग की रिपोर्ट के अनुसार रेलवे का परिचालन अनुपात 2015-16 में 90.49 फीसदी, 2016-17 में 96.5 फीसदी रहा। 
कैग ने सिफारिश की थी कि रेलवे को आंतरिक राजस्व बढ़ाने के लिए उपाय करने चाहिएं ताकि सकल और अतिरिक्त बजटीय संसाधनों पर निर्भरता कम की जा सके। अब रेलवे को राजस्व बढ़ाने के ​लिए किराया बढ़ाने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता, इसलिए आम लोगों पर यह बढ़ौतरी लाद दी गई है। प्याज और अन्य सब्जियों के दामों में घरों की रसोई पहले से ही ​प्रभावित थी। तीन माह बाद भी प्याज के दाम कम होने का नाम नहीं ले रहे। अब रसोई गैस के दामों में भारी-भरकम बढ़ौतरी की गई है। 
घरेलू गैस सिलैंडर में 19 रुपए और कमर्शियल सिलैंडर 29.50 रुपए महंगा किया गया है। लगातार पांचवें ​महीने रसोई गैस की कीमतों में बढ़ौतरी की गई है। घरेलू गैस की कीमतों में लगातार बढ़ौतरी से हर कोई परेशान है। इसमें कोई संदेह नहीं कि सरकार आर्थिक मंदी और लगातार घटते राजस्व जैसी समस्याओं से पहले ही जूझ रही है। ऐसे में महंगाई की दस्तक उसकी परेशानी और ज्यादा बढ़ाएगी। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बुनियादी ढांचे को मजबूत करने के लिए 102 लाख करोड़ खर्च करने का ऐलान किया है। 
यह भी सर्वविदित है कि सरकार रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया से धन लेकर खर्च कर रही है। महंगाई की दर शहरी और मध्यम वर्ग को बहुत तेजी से प्रभावित करती है। सरकार की पहली चिंता खाद्य पदार्थों की बढ़ती महंगाई के कारण जनमानस की नाराजगी है, जबकि दूसरी चिंता यह है कि सरकार मंदी और महंगाई के एक साथ खतरनाक हो जाने के चलते क्या करेगी? महंगाई प्रबंधन सरकार कैसे करेगी, यह तो आने वाले दिन ही बताएंगे। 
गिरती खपत के आंकड़े बताते हैं कि निम्न वर्ग के लिए जीवन यापन पहले से ही काफी मुश्किल हो रहा है, इस वर्ग ने घटती कमाई के कारण रोज की जरूरतों के खर्चे पहले ही कम कर ​दिए हैं। अब वह महंगाई का अधिक बोझ सहन नहीं कर सकती। सरकार को अपनी ऊर्जा महंगाई कम करने के लिए लगानी होगी। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण एक फरवरी को अपना दूसरा बजट पेश करेंगी। देखना होगा ​कि आर्थिक सुस्ती से निपटने के लिए वह क्या उपाय करती हैं।

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