कोलकाता में प्रशिक्षु डॉक्टर के बलात्कार के बाद हत्या की दुखदायी घटना से देशभर में आक्रोश है। इस जघन्य अपराध को लेकर देशभर में डॉक्टरों का आंदोलन करना भी उनका लोकतांत्रिक अधिकार है। महिला डॉक्टर की हत्या पर समाज भी क्षुब्ध है। एक तरफ समाज के दुख-दर्द और दूसरी तरफ डॉक्टरों की हड़ताल से हालात काफी बिगड़ रहे थे। डॉक्टरों को धरती का भगवान माना जाता है। वह मरीजों को जीवनदान देते हैं। अपने चिकित्सा ज्ञान के अलावा डॉक्टर रोगियों को भावनात्मक रूप से शिक्षित और सहायता करते हैं। जिससे मरीज अपने उपचार को लेकर सचेत रहते हैं। डॉक्टरों की हड़ताल के चलते पिछले 10 दिनों से देशभर के बड़े अस्पतालों में आपातकालीन सेवाओं को छोड़कर सभी सेवाएं लगभग ठप्प रहीं। जिस कारण मरीजों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ा। डॉक्टरों की मांग है कि चिकित्साकर्मियों के खिलाफ हिंसा से संबंधित सख्त कानून बनाना जरूरी है। देश की सर्वोच्च अदालत ने कोलकाता रेप आैर मर्डर केस का संज्ञान लेते हुए सुनवाई के दौरान हड़ताली डॉक्टरों की चिंताओं पर ध्यान देते हुए उनसे काम पर लौटने की अपील की थी। सुप्रीम कोर्ट ने डॉक्टरों को अाश्वासन दिया कि वे काम पर लौट आएं तो उनके िवरुद्ध कोई प्रतिकूल कार्रवाई नहीं की जाएगी।
सुप्रीम कोर्ट ने डॉक्टरों की सुरक्षा और संरक्षण को सर्वोच्च राष्ट्रीय चिंता का विषय बताते हुए सुरक्षा के उपाय सुझाने के लिए टॉस्क फोर्स का गठन भी कर िदया है। सुप्रीम कोर्ट की अपील पर एफएआईएमए ने हड़ताल वापिस लेने का ऐलान कर दिया है। देश के बड़े अस्पतालों के रैजिडेंट डॉक्टर भी काम पर लौट आए हैं। ओपीडी सेवाएं फिर से शुरू हो गई हैं। सुप्रीम कोर्ट ने डॉक्टरों की यह मांग भी स्वीकार कर ली है कि टॉस्क फोर्स में डॉक्टरों के प्रतिनिधि भी शािमल किए जाएं। वैसे तो मैडिकल सेवाओं को आवश्यक सेवाओं में शामिल किया गया है। प्रोफैशन की िनष्ठा और प्रतिष्ठा को देखते हुए डॉक्टरों को हड़ताल पर जाने की कल्पना भी नहीं करनी चाहिए लेकिन कोलकाता रेप मर्डर केस पर डॉक्टरों का आक्रोशित होना स्वाभाविक है। डॉक्टरों ने हड़ताल खत्म कर सही फैसला लिया है लेकिन सुनवाई के दौरान भारत के मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चन्द्रचूड़ की टिप्पणियां बहुत महत्वपूर्ण हैं। उन्होंने कहा कि न्याय और चिकित्सा को रोका नहीं जा सकता। हड़ताल की वजह से गरीब मरीजों की दिक्कतों का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता। ऐसे मरीज भी होते हैं जिनको अपनी बीमारी के संबंध में काफी अरसे बाद डॉक्टर से मिलने का समय मिलता हैै। एक या दो सालों से वे सर्जरी का इंतजार कर रहे होते हैं। अगर डॉक्टर ही हड़ताल करेंगे तो उनका क्या हाल होगा।
भारत के मुख्य न्यायाधीश ने सुनवाई के दौरान यह कहकर सरकारी अस्पतालों में आ रही परेशािनयों की ओर इशारा किया कि उन्हें भी एक रात सरकारी अस्पताल के फर्श पर सोना पड़ा था। सरकारी अस्पतालों की व्यवस्था किसी से िछपी हुई नहीं है। मरीजों को अस्पतालों में बैड नहीं मिलते। अगर बैड मिल भी जाता है तो तीमारदारों को भी साथ रहने में मुश्किल होती है। अस्पतालों के बरामदे तीमारदारों से भरे रहते हैं। डॉक्टरों की हड़ताल तो खत्म हो गई लेकिन मरीजों का इंतजार अभी भी खत्म नहीं होगा। हड़ताल के दौरान प्रभावित हुई सर्जरी के लिए मरीजों को फिर से तारीख मिलने का इंतजार करना पड़ेगा। दिल्ली के अस्पतालों में 12000 से ज्यादा सर्जरी प्रभावित हुई हैं। दिल्ली जैसे शहर में काफी मरीज देशभर से आते हैं। एम्स जैसे अस्पताल में रोजाना 15000 मरीज आते हैं। हड़ताल के दौरान देशभर में ओपीडी सेवाएं प्रभावित हुईं। संवेदनशील लोग लोगों की परेशानी समझते हैं। आर्थिक रूप से सम्पन्न लोग तो निजी अस्पतालों में पहुंच जाते हैं लेकिन गरीब आदमी के पास सरकारी अस्पताल में जाने के अलावा और कोई विकल्प नहीं। इसमें कोई संदेह नहीं है कि डॉक्टर और मैडिकल कर्मचारी 36-36 घंटे लगातार काम करते हैं और उन पर मानसिक दबाव बना रहता है। ऐसी स्थिति में मरीजों के रिश्तेदार कई बार डॉक्टरों से मारपीट भी करने लगते हैं।
समाज को यह भी याद रखना होगा िक कोरोना महामारी के दौरान देशभर में कितने डॉक्टरों ने दूसरों का जीवन बचाने के लिए अपनी जानें दी हैं। अगर डॉक्टर भी लॉकडाउन के दौरान घरों में बंद रहते तो लाखों लोगों का जीवन कौन बचाता। समाज को भी सहनशीलता से काम लेकर सारी स्थितियों को समझना होगा। देश के लिए यह भी िचंताजनक विषय है िक कोलकाता रेप और मर्डर केस में राजनीति भी बहुत ज्यादा हो रही है। सुप्रीम कोर्ट ने अपराध की जांच को लेकर पश्चिम बंगाल पुलिस और प्रशासन पर कई तीखे सवाल दागे हैं। सरकारों का काम यह सुनिश्चित करना होना चाहिए कि अपराधियों को कठघरे में खड़ा किया जाए और लोगों को इंसाफ मिले। ऐसी धारणा भी नहीं बननी चाहिए कि पुलिस प्रशासन अपरािधयों को बचाने के लिए सबूतों से छेड़छाड़ करता है। अगर पुलिस का खौफ ही नहीं बचा तो अराजकता फैलने का खतरा पैदा हो जाएगा। भारत की न्याय प्रणाली पर अब भी देशवासियों का भरोसा कायम है। देशवासियों को विश्वास है कि न्यायपालिका ही डॉक्टरों की सुरक्षा को सुनिश्चित बनाने और महिलाओं के िखलाफ अपराध पर काबू पाने के लिए कारगर व्यवस्था बनाएगी। जबकि यह काम स्वयं सरकारों को करना चाहिए।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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