पिछले वर्ष जुलाई में ‘एक देश, एक टैक्स’ के नारे के साथ गुड्स एवं सेवा कर (जीएसटी) लागू किया गया था। इसमें कोई संदेह नहीं कि व्यापारिक क्षेत्रों के विरोध के बावजूद देश में समान कर व्यवस्था लागू करने का प्रयास काफी हद तक सफल हो चुका है और व्यापार से जुड़ा क्षेत्र इसको अपनाने लगा है। सरकार लगातार आंकड़ों का खुलासा कर कह रही है कि जीएसटी से उसका राजस्व संग्रह बढ़ा है। पंजीकरण कराने वाले उद्योगों की संख्या लगातार बढ़ रही है। इसमें भी कोई संदेह नहीं कि जीएसटी लागू करने में जटिलताएं भी काफी थीं, जिसमें छोटे कारोबारियों, दुकानदारों को काफी परेशानी झेलनी पड़ी। जीएसटी से व्यापारिक क्षेत्र आतंकित हुआ और जटिलताओं की वजह से ही वह उसे जल्दी अपनाने को तैयार नहीं था। कोई भी नई व्यवस्था लागू की जाती है तो उसके बारे में संदेह होते ही हैं और किसी भी नई व्यवस्था को पूरी तरह लागू होने में समय लगता है। सरकार ने भी व्यापारिक क्षेत्रों की मुश्किलों को समझा आैर रिटर्न भरने की व्यवस्था का सरलीकरण किया गया। कोई भी व्यवस्था पूर्णतया शुरूआती चरण में ही सही हो, ऐसा जरूरी नहीं। जैसे-जैसे उसका क्रियान्वयन होगा, पेचीदगियां सामने आती हैं और उन्हें दूर किए जाने की कवायद चलती रहती है।
जीएसटी लागू होने के बाद अनेक वस्तुएं पहले के मुकाबले ज्यादा महंगी हो गईं, जो चीजें सस्ती की गईं उनके न्यूनतम मूल्य घटाने की बजाय उन्हें बढ़ाकर ऊपर से जीएसटी लगाकर कीमतों का बोझ उपभोक्ताओं पर डाल दिया गया। 600 से अधिक वस्तुओं को 18 फीसदी जीएसटी के दायरे में लाया गया और टॉप स्लैब में 226 आइटम्स रखी गई थीं। दोपहिया वाहन, कारें, सीमेंट, कम्प्यूटर पैनल, पावर बैंक जैसे उत्पाद भी 24 फीसदी के दायरे में रखे गए। जीएसटी की विसंगतियों को लेकर बहस होती रही है आैर इस पर भी बहस होती रही है कि इससे आम लोगों को क्या फायदा और क्या नुक्सान हुआ। विसंगतियों के चलते ही कई सस्ती चीजें महंगे दामों में बिकती रहीं। आम लोगों में कहावत बहुत प्रचलित है :
दुल्हन वही जो पिया मन भाये,
सरकार वही जो टैक्स घटाये।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मुम्बई के कार्यक्रम में ऐलान किया था कि जल्दी ही जीएसटी स्लैब में 99 फीसदी आइटम्स 18 प्रतिशत या फिर उसमें भी कम के दायरे में आएंगी। अब केवल विलासिता की मदें ही 28 प्रतिशत के टैक्स स्लैब में आएंगी। विपक्ष ने अब शोर मचाना शुरू कर दिया है कि यह आम चुनावों से पहले सरकार की आेर से जनता को लुभाने का प्रयास है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ट्वीट पर ट्वीट कर रहे हैं। विपक्ष जीएसटी के स्लैब घटाने की मांग करता रहा है। अब जबकि ऐसा किया जा रहा है तो वह सत्तारूढ़ सरकार को निशाना बनाने में लगा हुआ है।
जीएसटी काउंसिल की बैठक में 25 से 30 आइटम्स पर छूट की उम्मीद है। जीएसटी रेट में छूट को लेकर भले ही कितने ही राजनीतिक अर्थ निकाले जाएं लेकिन इसकी वजह से अच्छा कलैक्शन हो रहा है। जीएसटी से सरकार महीने में औसतन एक लाख करोड़ रुपए का राजस्व जुटा रही है। इसके अलावा टैक्स बेस भी 65 लाख से बढ़कर करीब दोगुना होते हुए 1.2 करोड़ हो गया है। जीएसटी से पहले के दौर के मुकाबले इन दिनों हाउसहोल्ड आइटम्स पर औसतन 4 प्रतिशत या उससे अधिक छूट टैक्स में मिल रही है। उम्मीद की जा रही है कि टायरों, सीमेंट और कुछ अन्य उत्पादों पर जीएसटी टैक्स घटाया जा सकता है। एक जुलाई 2017 से जीएसटी लागू हुआ तो 28 प्रतिशत टैक्स स्लैब में 226 वस्तुएं थीं। डेढ़ वर्ष में इनमें से 191 वस्तुओं पर टैक्स कम किया गया। अभी 28 फीसदी स्लैब में 34 वस्तुएं हैं। खाद्य प्रसंस्करण मंत्रालय ने चार, टमाटर प्यूरी जैसी चीजों पर जीएसटी हटाने का प्रस्ताव रखा है। अनकटे आम, टमाटर पल्प, आईस्ड फिश, डीहाइड्रेटेड प्याज, लहसुन पर से जीएसटी हट सकता है।
अगर सरकार का राजस्व लगातार बढ़ रहा है तो लोगों को फायदा मिलना ही चाहिए। अगर आम लोगों के उपयोग में आने वाली ज्यादातर चीजें 18 फीसदी के दायरे में आ जाती हैं तो यह बड़ी राहत होगी। दूसरी ओर आर्थिक विशेषज्ञ चेतावनी दे रहे हैं कि 18 फीसदी दर का बड़ा दायरा अर्थव्यवस्था के लिए समस्या बन सकता है। इसे देखते हुए करों को तर्कसंगत बनाना किसी चुनौती से कम नहीं। जीएसटी को लागू किए जाने के बाद व्यावहारिक समस्याएं अब भी बनी हुई हैं, उनका सरलीकरण भी जरूरी है ताकि काम-धंधे प्रभावित न हों। उम्मीद है कि जीएसटी काउंसिल जीएसटी के तमाम व्यावहारिक पहलुओं का अध्ययन कर चुनौितयों पर पार पा लेेगी।