हमारे देश की विडम्बना है कि यहां का समाज अपनी मानसिकता बदलने को तैयार ही नहीं होता। बदलाव की प्रक्रिया सालों-साल चलती है। समाज जागरूक बनता है, फिर कानून उसकी राह का साथी बनता है लेकिन भारत में कानून आगे बढ़ता है और लोग उसके पीछे-पीछे चलते हैं। जब एक बार कानून बन जाता है तो उसका प्रभाव समाज पर भी पड़ता है। धीरे-धीरे समाज बदलता है। हिन्दू समाज में कई कुरीतियां थीं लेकिन समय जरूर लगा, अब वे कुरीतियां नहीं हैं, फिर भी कई कुरीतियां अब भी जीवित हैं। सभी जानते हैं कि कम उम्र में शादी के कई दुष्परिणाम होते हैं। इसके बावजूद लोग नाबालिग बच्चियों की शादी कर देते हैं। नेशनल फैमिली हैल्थ सर्वे 2016 के आंकड़े बताते हैं कि भारत में 27 फीसदी लड़कियों की शादी 18 वर्ष से कम उम्र में ही कर दी जाती है। कम उम्र में शादी के लिए वे न तो शारीरिक रूप से परिपक्व होती हैं और न ही उनमें परिवार का बोझ उठाने की मानसिक ताकत होती है। फिर भी लोग उन्हें पारिवारिक बन्धनों में बांध देते हैं। कई बार वह पतियों की क्रूरता का शिकार भी होती हैं, उनकी जिन्दगी बर्बाद हो जाती है। कई बार लड़कियां स्वास्थ्यगत परेशानियों से घिर जाती हैं। कम उम्र में शादी का अर्थ है जल्दी बच्चे पैदा होना यानी जनसंख्या का बढऩा।
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को ऐतिहासिक फैसला दिया है कि 15 से 18 वर्ष की उम्र की पत्नी से शारीरिक सम्बन्ध बलात्कार माना जाएगा। सुप्रीम कोर्ट को आखिर यह फैसला क्यों देना पड़ा? इस फैसले ने बच्चों को यौन शोषण से रोकने के लिए बनाए गए कानून में विसंगति को समाप्त किया है। बाल यौन शोषण रोकने के लिए देश में अलग-अलग कानून हैं। बच्चियों को अलग-अलग तरीके से परिभाषित किया गया है। पॉक्सो कानून के मुताबिक 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों से किसी भी तरह का शारीरिक सम्बन्ध कानून के दायरे में आता है। उसी तरह जुवेनाइल जस्टिस एक्ट में भी किशोर-किशोरियों की परिभाषा भी 18 साल बताई गई है लेकिन आईपीसी की धारा 375 सैक्शन-2 में ही किशोरी की परिभाषा अलग थी। धारा-375 की अपवाद वाली उपधारा में कहा गया था कि किसी व्यक्ति द्वारा अपनी पत्नी, बशर्ते पत्नी 15 वर्ष से कम की नहीं हो, के साथ स्थापित यौन सम्बन्ध बलात्कार की श्रेणी में नहीं आएगा। इससे पूर्व गत अगस्त में सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने अपने आदेश में कहा था कि 15 साल से कम उम्र की लड़की का विवाह अवैध है। तब पीठ ने कहा था कि ऐसे भी मामले हैं जब कॉलेज जाने वाले 18 साल से कम आयु के किशोर-किशोरियां रजामंदी से यौन सम्बन्ध बना लेते हैं और कानून के तहत उन पर मामला दर्ज हो जाता है। इसमें सबको परेशानी होती है। लड़कों के लिए 7 साल की सजा बहुत कठोर है।
केन्द्र सरकार ने भी सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि उसे पता है कि 15-18 वर्ष के बीच की महिला के साथ यौन सम्बन्ध बनाना रेप है लेकिन विवाह की संस्था को बचाने के लिए इसे रेप नहीं माना गया। सरकार ने यह भी कहा था कि सामाजिक हकीकत यही है कि रोकथाम के बावजूद 15-18 वर्ष के बीच की लड़कियों का विवाह होता है, इसे रोका नहीं जा सकता। पॉक्सो और बाल विवाह कानून में विवाह की उम्र लड़कों के लिए 21 वर्ष तथा लड़की के लिए 18 वर्ष रखी गई है लेकिन रेप कानून में 18 वर्ष से कम की लड़की यदि विवाहित है तो उसके साथ यौन सम्बन्ध रेप नहीं माना गया था। सुप्रीम कोर्ट के अब दिए गए फैसले से इस चोर दरवाजे को बन्द कर दिया गया है। याचिकाकर्ताओं को आपत्ति इस बात पर थी कि रेप कानून में अपवाद अवयस्क महिला के साथ दुष्कर्म की इजाजत देता है, इस कारण लाखों महिलाएं कानूनी दुष्कर्म झेलती हैं। यह अमानवीय है।
कई देशों-नेपाल, इस्राइल, डेनमार्क, स्वीडन, दक्षिण अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया, घाना, न्यूजीलैंड, मलेशिया, फिलीपींस, कनाडा, आयरलैंड और यूरोपीय संघ के कई देशों में इस अपवाद को कानून या न्यायिक आदेशों से समाप्त किया जा चुका है। 2012 में हुए निर्भया बलात्कार काण्ड के बाद देशभर में बलात्कार के मुद्दे पर आन्दोलन हुआ और अदालतें पहले से अधिक संवेदनशील हुईं। महिला आन्दोलन के भीतर मौजूद विभिन्न विचारधारा के समूहों के बावजूद इस मुद्दे पर लगभग सभी सहमत हैं कि स्त्री की देह पर सम्पूर्ण अधिकार उसका ही है, चाहे वह पति ही क्यों न हो, यौन सम्बन्ध के लिए न कहने की उसे आजादी है। सहमति के बिना यौन सम्बन्ध बनाना बलात्कार ही है। समाज को बदलना ही होगा।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हिन्दू और मुस्लिम समाज की महिलाओं ने स्वागत किया है। इस फैसले से बाल विवाह पर कानूनी रोक लग गई है। इस फैसले से महिलाओं को ज्यादा संरक्षण मिलेगा। लोगों को चाहिए कि वह अपने बच्चों की कम उम्र में शादी नहीं करें। आज की लड़कियां पढऩा चाहती हैं। कैरियर में ऊंची उड़ान भरना चाहती हैं, उनके भविष्य के बारे में सोचिए। इतने बड़े देश में अपवाद स्वरूप कम उम्र में शादियां होंगी लेकिन धीरे-धीरे समाज कानून का पालन करने लगेगा। केवल कानून से समाज की मानसिकता बदल जाएगी, ऐसा मुश्किल है। लोगों को स्वयं बदलाव लाना होगा।