लोकसभा चुनाव 2024

पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

तीसरा चरण - 7 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

94 सीट

चौथा चरण - 13 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

96 सीट

पांचवां चरण - 20 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

49 सीट

छठा चरण - 25 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

सातवां चरण - 1 जून

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

लोकसभा चुनाव पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

मसला भूमि अधिग्रहण का

मूल एक्ट की धारा 105 (1) के अनुसार इस सूची में शामिल कानूनों के लिए भूमि अधिग्रहण 2013 के एक्ट के प्रावधान लागू नहीं होते थे अर्थात् मुआवजा बाजार भाव का चार गुणा नहीं मिलेगा, पुनर्वास और पुनर्स्थापन नहीं होगा। सरकार ने कानून की धारा 105 की उपधारा तीन में बदलाव किया।

किसी भी राष्ट्र की प्रगति के लिए जमीन का होना बहुत जरूरी है। देश की 70 प्रतिशत आबादी गांवों में रहती है, जबकि कृषि में लगे लोग उनमें से 24 प्रतिशत जमीन के मालिक हैं और बाकी लगभग 26 प्रतिशत उस पर आश्रित हैं। केवल कृषि पर निर्भर रह कर कोई भी देश विकास नहीं कर सकता, उसे हर हालत में दूसरे क्षेत्रों में भी जाना होगा, जिसके लिए मूलभूत ढांचे के लिए जमीन की अति आवश्यकता है। सरकारें बुनियादी ढांचा विकसित करने के ​लिए भूमि अधिग्रहण करती हैं। भूमि अधिग्रहण कानून 2013 में कुछ जरूरी संशोधन भी किए गए थे ताकि विसंगतियों को दूर किया जा सके। 
मूल एक्ट की चतुर्थ सूची में 13 एक्ट गिनाए गए थे जिनके लिए सरकार प्रायः भूमि अधिग्रहित करती है। रेलवे, ​बिजली, नेशनल हाईवे, मैट्रो, खनिज खदान आदि के लिए सबसे अधिक जमीन का अ​धिग्रहण​ किया जाता है। मूल एक्ट की धारा 105 (1) के अनुसार इस सूची में शामिल कानूनों के लिए भूमि अधिग्रहण 2013 के एक्ट के प्रावधान लागू नहीं होते थे अर्थात् मुआवजा बाजार भाव का चार गुणा नहीं मिलेगा, पुनर्वास और पुनर्स्थापन नहीं होगा। सरकार ने कानून की धारा 105 की उपधारा तीन में बदलाव किया। इस सूची में गिनाए गए सभी कानूनों के निमित्त जमीन के अधिग्रहण पर एक्ट 2013 के सभी प्रावधान लागू कर दिए गए यानी ​मुआवजा चार गुणा मिलेगा और पुनर्वास एवं पुनर्स्थापन का अधिकार भी दिया गया। बदलाव किसानों के हित में किए गए।
 भूमि अधिग्रहण कानून 2013 में संशोधनों से पहले देश का किसान बर्बाद होता रहा। इसके परिणामस्वरूप किसानों में इतना आक्रोश व्याप्त हो गया कि देश में जगह-जगह आंदोलन हुए। पश्चिम बंगाल के सिंगूर और उत्तर प्रदेश में भट्टा परसोल के आंदोलनों ने देश को हिला कर रख दिया था। आंदोलन उग्र हो जाने के कारणों में मुख्य कारण यह था कि सरकारें किसानों से सस्ते में भूमि लेकर बिल्डरों और बहुराष्ट्रीय कम्पनियों काे देने लगी थीं। किसानों की उपजाऊ भूमि उद्योग जगत को विशेष आर्थिक क्षेत्रों (सेज) के ​लिए दी जाने लगी थी जिनमें कोई भी क्षेेत्र सफल नहीं हो पाया था। भूमि अधिग्रहण को लेकर अभी भी मामले अदालतों में चल रहे हैं। समस्याएं तब आ जाती हैं जब विकास कार्य ठप्प हो जाते हैं। सरकार भूमि अधिग्रहण की घोषणा तो कर देती है लेकिन विकास परि​योजनाएं आगे बढ़ती नहीं। सरकार न तो लोगों को मुआवजा देती है और न ही जमीन का कब्जा लेती है। सुुप्रीम कोर्ट ने ऐसे ही मामलों में महत्वपूर्ण फैसला दिया है कि केवल उन्हीं मामलों में भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया रद्द होगी जिनमें वर्ष 2013 के अधिनियम के प्रभावी होने की तिथि एक जनवरी 2014 से पांच वर्ष या इससे अधिक तक सरकार ने न तो मुआवजा दिया हो और न ही जमीन का कब्जा लिया हो।
सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने भूमि अधिग्रहण कानून की व्याख्या को लेकर 2014 में पुणे नगर निगम और इंदौर विकास प्राधिकरण मामलों में आए फैसलों को ​भी निरस्त कर दिया। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि जो जमीन मालिक मुआवजा लेने से इंकार करते हैं, वे भूमि अधिग्रहण रद्द करने का दबाव नहीं डाल सकते। कई बार ऐसा देखा गया कि अधिग्रहण प्रक्रिया शुरू होने के बाद बीच में कई मध्यस्थ आ जाते हैं, जो जमीन की ज्यादा कीमत वसूलने के लिए प्रक्रिया में बाधा खड़ी करते हैं। शीर्ष अदालत ने कानून की धारा (24)-2 की स्पष्ट व्याख्या कर दी है कि अगर सरकार ने मुआवजा राशि आपके कोष में जमा कर दी है और भूमि मालिक की तरफ से वहां से पैसा नहीं उठाना सरकार की गलती नहीं माना जाएगा। हाल ही में जयपुर के नींदड गांव के किसानों ने जयपुर विकास प्राधिकरण द्वारा उनकी भूमि के अधिग्रहण प्रक्रिया के खिलाफ आंदोलन किया और खुद को आधा जमीन में गाड़े रखा। इसे जमीन समाधि सत्याग्रह का नाम दिया गया।
इसमें कोई संदेह नहीं कि जिन किसानों को करोड़ों का मुआवजा मिला उनकी जीवनशैली में रातोंरात परिवर्तन आ गया। नव धनपति युवाओं के लिए महंगी गाड़ियां भी आ गईं। जब छप्पर फाड़ पैसा आता है तो उसके साथ अनेक बुराइयां भी आती हैं। ऐसे लोगों ने खेतीबाड़ी करना ही बंद कर दिया। बस शानो शौकत में एक-दूसरे को पीछे छोड़ने की होड़ चल रही है। रोजगार है नहीं। नई पीढ़ी के मन में गांव की कोई छवि है ही नहीं। देश में विकास कार्य होने चाहिएं लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों का मूलभूत ढांचा ऐसा होना चाहिए ताकि गांवों को शहरों की तरह विकसित किया जाए। गांव में कृषि के अलावा भी उद्योग-धंधे शुरू किए जाएं। याद रखना होगा कि शहरीकरण की एक सीमा होती है। गांवों को उजाड़ ​कर रख देना भी घातक साबित हो सकता है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

two × 3 =

पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।