धर्म परिवर्तन करने वालों के आरक्षण का मुद्दा

धर्म परिवर्तन करने वालों के आरक्षण का मुद्दा
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भारत देश में आरक्षण का मसला बहुत ही विवादित है। आरक्षण की आग में कई बार देश झुलस चुका है। इसके बावजूद आरक्षण के मसले पर जमकर सियासत होती रही है। आरक्षण ऐसा प्याला है जो हर जाति के लोग उसे होठों से छू लेना चाहते हैं जैसे उसमें अमृत भरा हो। इस आरक्षण के प्याले ने कई बार इतना जहर फैलाया है जिसने समाज को तोड़ने का काम किया है। यह देश आरक्षण की मांग को लेकर जबरदस्त हिंसक आंदोलनों का चश्मदीद रहा है। केन्द्रीय आवास एवं शहरी मामलों के राज्यमंत्री तोखन साहू ने अनुसूचित जनजातियों के आरक्षण को लेकर बयान दिया है जिसको लेकर एक बार फिर चर्चा छिड़ गई है। तोखन साहू ने कहा है कि धर्म परिवर्तन करने वालों को एसटी कैटेगरी का लाभ नहीं मिलना चाहिए। इससे पहले भी कई हिन्दू संगठन धर्म परिवर्तन के बावजूद आरक्षण का लाभ लेने वालों का मुद्दा उठाते रहे हैं। मंत्री महोदय का कहना है कि "हिंदू धर्म में कभी धर्म परिवर्तन की बात नहीं की जाती। हम सनातन संस्कृति को मानने वाले हैं। हम सभी धर्मों का सम्मान करते हैं। हमने कभी किसी को धर्म परिवर्तन करने के लिए नहीं कहा लेकिन कांग्रेस ने हमेशा वोट बैंक की राजनीति के लिए धर्म परिवर्तन को बढ़ावा दिया है। धर्म परिवर्तन करने वालों को उस (एसटी) समुदाय का लाभ क्यों मिलना चाहिए? जो लोग किसी विशेष समुदाय में हैं, उन्हें डॉ. बीआर अम्बेडकर द्वारा बनाए गए संविधान के अनुसार उस समुदाय का लाभ मिलना चाहिए ताकि सभी वर्गों को लाभ मिल सके।"
उन्होंेने यह भी आरोप लगाया ​िक इं​िदरा गांधी के समय कांग्रेस का नारा था न जात पर न पात पर मोहर लगेगी हाथ पर लेकिन अब कांग्रेस ने इस नारे को नकार दिया है। अनुसूचित जाति के वह लोग हैं जो इस देश की सामाजिक व्यवस्था में पीड़ित रहे। उन्हें बरसों तक प्रताडि़त किया जाता रहा। उनको समाज की मुख्य धारा में लाने के लिए आरक्षण की कल्पना की गई थी। अनुसूचित जाति में आरक्षण इसलिए नहीं दिया जाता कि वह गरीब है या पिछड़े हैं बल्कि इसलिए दिया जाता है कि वह उच्च जातियों की प्रताड़ना का शिकार हुए। अंतः हमें हर वर्ग के आरक्षण का मूल उद्देश्य समझना होगा। मुस्लिम आैर ईसाइयों को इसमें आरक्षण नहीं है। क्योंकि इनमें जाति प्रथा और छुआछूत नहीं है। इनमें जातियां व्यावहारिक रूप से तो हो सकती हैं लेकिन सैद्धांतिक रूप से नहीं। इसमें केवल हिन्दू, सिख और बौद्ध ही शामिल हैं। ईसाई और मुस्लिम धर्मों में छुआछूत भी नहीं है।
अब सवाल यह है कि क्या धर्म परिवर्तन कर मुस्लिम आैर ईसाई बनने वालों को आरक्षण का लाभ मिलना चाहिए या नहीं। एक तरफ यह तर्क दिया जाता है कि ईसाई या इस्लामी समाज के लोगों को कभी भी इस तरह के पिछड़ेपन या उत्पीड़न का सामना नहीं करना पड़ा है। वास्तव में अनुसूचित जाति के लोग ईसाई या इस्लाम धर्म में परिवर्तित ही इसलिए होते हैं ताकि वो छुआछूत जैसी दमनकारी व्यवस्था से बाहर आ सकें। वहीं बौद्ध और सिख धर्म को इसमें शामिल करने को इसलिए सही ठहराया जाता है क्योंकि धर्मांतरण की प्रकृति ईसाई आैर मुस्लिम धर्म से अलग है। अनुसूचित जनजाति यानि आदिवासियों के ​िलए आरक्षण का प्रावधान है क्योंकि आदिवासी किसी भी धर्म का हो सकता है। इसलिए इसमें धर्म की दीवार नहीं है। ईसाई और मुस्लिम भी एसटी हो सकते हैं। इन दो वर्गों के अलावा सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़ी जातियों को ओबीसी में लिया गया है। जहां भी धर्म बीच में नहीं आता यानि ओबीसी किसी भी धर्म का मुस्लिम और ईसाई भी हो सकता है। दूसरी तरफ तर्क यह है कि क्या ईसाई धर्म या इस्लाम धर्म में कोई ऐसा कैमिकल है कि सिर के ऊपर डालते ही सामाजिक कलंक खत्म हो जाएगा। क्या ऐसा सोचा जा रहा है कि जो हिन्दू है उसका समाज सिर्फ हिन्दुओं से मिलकर बना है, जो ईसाई है उसका समाज सिर्फ ईसाई धर्म के लोग हैं और मुसलमानों का समाज सिर्फ मुस्लिमों से है। भारत में अनेक तरह के धर्म और जातियां हैं जिनसे समाज बना हुआ है। भारत की वि​ि​वधता में एकता ही मुख्य खासियत है।
सवाल यह भी है कि क्या दलितों के धर्म परिवर्तन करने के बाद मतांतरित व्यक्तियों का समाज फूल मालाएं डालकर स्वागत करने लगता है। जो लोग दलितों को छोटा समझते थे उनके ईसाई होते ही क्या उनसे यह कहा जाता है कि अब हम और तुम बराबर हो गए। धर्मांतरण के बाद भी सामाजिक कलंक बना ही रहता है। आरक्षण तो नव बौद्धों को भी दिया जाता है। या​िन जो एससी थे और हिन्दू धर्म छोड़कर बौद्ध बन गए। उसी तरह सिखों में भी जो पहले एससी थे और बाद में सिख धर्म अपना लिया, उनको भी आरक्षण दिया जाता है। अब आरक्षण के मुद्दे पर राष्ट्रव्यापी बहस छिड़ गई है। आरक्षण के मसले पर बार-बार यही कहा जाता रहा है कि जातियों के नाम पर समाज को न बांटा जाए बल्कि आरक्षण का आधार आर्थिक होना चाहिए। जो लोग गरीब और पिछड़े हुए हैं उन्हें आरक्षण का लाभ दिया जाना चाहिए। सवाल आदिवासियों का भी है जो अभी भी जल, जंगल और जमीन के सहारे रहते हैं। ​िजन आदिवासियों ने ईसाई धर्म स्वीकार किया है उनका क्या होगा। बेहतर यही होगा कि संविधान के अनुरूप आरक्षण की व्यवस्था की जाए या फिर आर्थिक आधार पर आरक्षण दिया जाए।

आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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