Uniform Civil Code : फिर गरमाया समान नागरिक संहिता का मुद्दा

Uniform Civil Code : फिर गरमाया समान नागरिक संहिता का मुद्दा
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Uniform Civil Code : केन्द्रीय कानून मन्त्री अर्जुन राम मेघवाल के इस कथन के बाद कि समान नागरिक संहिता लागू करना भाजपा व एनडीए सरकार के एजेंडे में है, भाजपा के सहयोगी घटक दलों की जो प्रतिक्रिया आई है वह एनडीए गठबन्धन के आपसी विचार वैविध्य को दर्शाती है। गठबन्धन के प्रमुख घटक दलों तेलगू देशम व जनता दल(यू) की इस मामले में राय भाजपा से अलग रही है और वे अपने मत पर अभी भी कायम हैं। जनता दल (यू) के महासचिव श्री के.सी. त्यागी ने साफ कह दिया है कि समान नागरिक संहिता के मुद्दे पर उनकी पार्टी का रुख वही है जो 2017 में था। पार्टी इसके खिलाफ तो नहीं है मगर इसे केवल सर्वसम्मति बना कर ही लागू करने के पक्ष में है। जनता दल (यू) मानता है कि समान नागरिक संहिता कोई राजनैतिक मुद्दा नहीं है बल्कि यह सामाजिक सुधार व संशोधन का विषय है जिसे समाज के सभी वर्गों की सहमति से लागू किया जाना चाहिए क्योंकि समान नागरिक संहिता का सीधा सम्बन्ध सामाजिक सुधारों से ही है जिससे प्रत्येक धर्म को मानने वाले व्यक्ति को अपनी सामाजिक जिम्मेदारी का आभास हो सके और वह प्रगतिशील सोच की तरफ आगे बढ़ सके।

2017 में विधि आयोग को इस बारे में लिखे अपने पत्र में बिहार के मुख्यमन्त्री श्री नीतीश कुमार ने साफ कर दिया था कि समान नागरिक संहिता ऊपर से लादी नहीं जानी चाहिए बल्कि समाज के भीतर से ही इस पर सर्वसम्मति बनाकर लागू किया जाना चाहिए जिससे यह स्थायी रूप से कारगर हो सके। अगर इसे ऊपर से थोपने का प्रयास किया जाता है तो इससे समाज में संघर्ष व असन्तोष पैदा हो सकता है और लोगों का धर्म की स्वतन्त्रता के प्रति विश्वास डगमगा सकता है। भारतीय संविधान धार्मिक स्वतन्त्रता की गारंटी देता है और प्रत्येक धर्मानुयायी को अपने ढंग से जीवन जीने का अधिकार देता है परन्तु 21वीं सदी का समाज पुरानी सदियों की रूढ़ीवादी परम्पराएं भी नहीं ढो सकता है। अतः सुधार की आवाज विभिन्न धार्मिक सम्प्रदायों के बीच से ही उठनी चाहिए। बेशक समान नागरिक संहिता संविधान के दिशा-निदेशिका का अंग है मगर इसे लागू करने के लिए सभी धर्मों के लोगों के बीच सर्वानुमति जरूरी है। यह सर्वानुमति इस प्रकार बननी चाहिए कि किसी भी धर्म की मर्यादा आहत न हो। भारत में आदिवासी समाज भी बहुत बड़ा है जिसके अपने सामाजिक कानून होते हैं। इन्हें भी नागरिक संहिता के दायरे में लाना एक दुष्कर कार्य होगा। इसी वजह से विधि आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति चौहान ने इस मामले में हाथ खड़े कर दिये थे। बेशक समान नागरिक संहिता भाजपा के चुनाव घोषणापत्र का हिस्सा थी परन्तु एनडीए की सरकार के चलते वह इसे इकतरफा लागू नहीं कर सकती।

भाजपा यदि इस मामले में कठोर रवैया अपनाती है तो अपनी ही सरकार के लिए दिक्कतें खड़ी करती है। मौजूदा सरकार में भाजपा के केवल 240 सांसद ही हैं और बहुमत के लिए उसे अपने सहयोगी दलों के सांसद चाहिए। अतः एेसा कोई भी विवादास्पद मुद्दा पहले एनडीए की संयुक्त बैठक में ही विचारार्थ रखा जाना चाहिए। साथ ही इस सरकार का न्यूनतम साझा कार्यक्रम भी तैयार होना चाहिए जिससे किसी भी विवाद के उठने से पहले उसे सुलझा लिया जाये। क्योंकि तेलगू देशम की राय तो इस मुद्दे पर जनता दल (यू) से भी अधिक तीखी है। चन्द्रबाबू नायडू कह चुके हैं कि वह राजनीति में केवल मानवतावाद को मानते हैं और समाज के हर सम्प्रदाय के लोगों को साथ लेकर चलना चाहते हैं। मुसलमानों के मामले में उन्होंने साफ कर ​िदया है कि उनकी राय भाजपा से पूरी तरह अलग है वह अपने राज्य आन्ध्र प्रदेश में मुसलमानों को दिया हुआ चार प्रतिशत आरक्षण जारी रखेंगे। इससे स्पष्ट है कि समान नागरिक संहिता को उनकी पार्टी तब तक स्वीकार नहीं करेगी जब तक कि इस पर सर्वसम्मति न बन जाये। क्योंकि लोकसभा चुनावों के दौरान ही तेलगू देशम ने साफ कर दिया था कि वह समान नागरिक संहिता के खिलाफ है। अपने चुनाव प्रचार में चन्द्रबाबू नायडू ने बार-बार कहा कि उनकी पार्टी केवल उन्हीं मुद्दों को अपना समर्थन देगी जिन्हें वह राष्ट्रहित में मानती है। तेलगू देशम एक धर्मनिरपेक्ष पार्टी समझी जाती है और मुसलमानों में भी उसका अच्छा जनाधार समझा जाता है हालांकि इसका भाजपा के साथ चुनावी गठबन्धन था मगर इसने अपनी पार्टी के घोषणा पत्र पर चुनाव लड़ा था जिसमें हज यात्रा पर एक लाख रुपए का अनुदान दिये जाने का वादा भी था। अतः एनडीए सरकार के मन्त्रियों को पहले अपना घर दुरुस्त करके ही कोई घोषणा करनी चाहिए।

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