किसी भी देश की सैन्य क्षमता का आंकलन उसकी वायुसेना की क्षमता से आंका जाता है। भारतीय सेना पर देशवासियों को गर्व है।
‘‘उस देश की सरहद को कोई छू नहीं सकता,
जिस देश की सरहद पर निगाहवान हों आंखें।’’
यह फिल्मी संवाद बहुत लोकप्रिय है लेकिन कारगिल युद्ध के दौरान शायद हमारी आंखें निगाहवान नहीं रहीं और हमें अपनी ही धरती पर युद्ध लड़ना पड़ा। यकीन मानिये जब कारगिल में पाकिस्तान सेना की घुसपैठ हो रही थी तब भारतीय जवानों के पास बर्फ पर चलने वाले जूतों का भी अभाव था। जबकि यह खबर खुफिया एजेंसियों के पास थी कि पाकिस्तान ने अपनी सेना के लिए बर्फ पर चलने वाले जूतों की खरीद की।
भारतीय सेना में तालमेल नहीं होने से भारत षड्यंड को भांप नहीं सका। जब तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी मैत्री बस से दोस्ती का पैगाम लेकर लाहौर गए थे तब तक किसी को आभास नहीं था कि पाकिस्तान की सेना के जनरल मुशर्रफ कारगिल युद्ध का खाका खींच चुका था। मुशर्रफ ने तो अटल जी को सलाम करने से इंकार कर दिया था।
एक तरफ लाहौर घोषणा पत्र को पढ़ा जा रहा था, उधर कारगिल में घुसपैठ की तैयारी हो चुकी थी। मैं अटल जी के साथ लाहौर गए सम्पादकों के प्रतिनिधिमंडल में शामिल था। आज भी मुझे सारा मंजर याद है। युद्ध की शुरूआत 3 मई, 1999 को पाकिस्तान ने की थी और भारत ने कारगिल युद्ध का अंत 26 जुलाई, 1999 को किया था। भारतीय सेना ने 18 हजार फीट की ऊंचाई पर पाकिस्तानी सेना को मात देकर अपना तिरंगा लहराया था।
भारत ने करीब 527 सैनिकों को खोया था, जबकि पाकिस्तान के 357 सैनिक युद्ध में मारे गए थे। पाकिस्तान सेना के करीब 5 हजार सैनिकों ने अन्तर्राष्ट्रीय कानून का उल्लंघन करते हुए 3 मई, 1999 को कारगिल की ऊंची पहाड़ियों पर कब्जा कर लिया था। इस लड़ाई में जब सरकार ने सेना को पाकिस्तानी सैनिकों को खदेड़ने का आदेश दिया तो भारतीय वायुसेना ने मिग-27 और मिग-29 का इस्तेमाल किया था। इस अभियान में लैफ्टिनेंट नचिकेता को पाकिस्तान ने बंदी बना लिया था।
आज मुझे बहुत याद आ रहे हैं नचिकेता, जिनके साथ पाकिस्तान ने अमानवीय व्यवहार किया था। कारगिल युद्ध में भारतीय वायुसेना की ताकत रहे और इस युद्ध में पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब देने वाले मिग-27 लड़ाकू विमान ने जोधपुर एयरबेस पर अंतिम उड़ान भरी और इसके साथ ही मिग-27 को आखिरी विदाई दे दी गई। कारगिल की ऊंची चोटियों पर घात लगाकर बैठे पाक सैनिकों को अंदेशा तक नहीं था कि उनके ऊपर आसमान से भी हमला हो सकता है लेकिन भारतीय वायुसेना के मिग-27 विमानों ने आसमान से पाक सैनिकों पर आग बरसाई।
वायुसेना के बहादुर मिग-27 ने पाक सेना की सप्लाई और पोस्ट पर इतनी सटीक और घातक बमबारी की जिससे उसके पांव उखड़ गए। इधर जिस बोफोर्स तोप सौदे को लेकर भारतीय राजनीति में तूफान मचा था, उस तोप ने भी अपने जौहर दिखाए और सीमा पार ऐसे गोले बरसाये कि पाकिस्तान हैरान रह गया। मिग-27 तो कारगिल युद्ध में ब्रह्मास्त्र साबित हुआ। 1700 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार और हवा से जमीन पर अचूक हमला करने में सक्षम इस रूसी लड़ाकू विमान को कारगिल युद्ध में पराक्रम दिखाने के लिए बहादुर नाम दिया गया।
इसका खौफ पाकिस्तान के दिलोदिमाग में ऐसा छा गया कि उसने ‘चुडै़ल’ नाम दे डाला। जब यह विमान जमीन की सतह के करीब उड़ान भरता था तब कोई भी रडार बड़ी मुश्किल से इसकी पहचान कर पाता था। इसकी आवाज दुश्मनों के दिलों में खौफ पैदा करती थी। हालांकि भारतीय वायुसेना में अपने 38 साल के सफर के दौरान इस लड़ाकू विमान ने कई उतार-चढ़ाव भी देखे हैं। मिग-27 के इस अंतिम और उन्नत बेड़े पर वायुसेना की लड़ाकू टुकड़ी को 2006 से ही गर्व रहा है। मिग-23 बीएन, मिग-23 एमएफ और प्योर मिग-27 जैसे लड़ाकू विमान पहले ही सेवा से बाहर हो चुके हैं। इन विमानों ने शांति और युद्ध दोनों के दौरान राष्ट्र के लिए बहुत बड़ा योगदान दिया है।
बेड़े ने कारगिल युद्ध के दौरान एक महत्वपूर्ण योगदान देते हुए दुश्मन के ठिकानों पर सटीकता के साथ राकेट और बम से हमले किए थे। मिग-27 को महज 35 साल में ही इसके कलपुर्जों की कमी के कारण रिटायर करना पड़ा। वायुसेना सूत्रों के मुताबिक इस विमान का निर्माण करने वाली रूसी कम्पनी अब कलपुर्जे पर्याप्त संख्या में उपलब्ध नहीं करा पा रही थी। इसके चलते विमान में दुर्घटनाएं भी बढ़ गई हैं। इसी साल दो मिग-27 विमान दुर्घटनाग्रस्त हो चुके हैं। पिछले 10 साल में हर साल दो मिग-27 विमान दुर्घटना का शिकार हुए हैं, जिनमें वायुसेना के कई जांबाज पायलट शहीद भी हुए।
इस विमान में आर-29 नाम का इंजन लगा हुआ था जिसे रूस ने खुद विकसित किया था। मिग-27 अपने जमाने का सबसेे बेहतरीन लड़ाकू विमान था। यह हवा से जमीन पर निशाना लगाने में इतना माहिर था कि दुश्मन को भनक लगने से पहले यह उसे नेस्तनाबूद कर देता था। यह फाइटर जेट 1700 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से उड़ान भरने में सक्षम था। इसके अलावा यह चार हजार किलोग्राम के वारहेड को ले जा सकता था। साल 1981 में भारतीय वायुसेना को पाकिस्तान और चीन से निपटने के लिए विशेष किस्म के तेज लड़ाकू विमानों की जरूरत थी।
उस समय पश्चिमी देश जैसे अमेरिका, ब्रिटेन, पाकिस्तान के करीबी थे और भारत को अपने उन्नत लड़ाकू विमान नहीं देने वाले थे। उस समय रूस ने अपने मिग-27 विमानों को भारत को बेचने की पेशकश की। रूस ने यहां तक कहा कि वे इस विमान को बनाने का लाइसैंस भी भारत को देगा जिसके बाद 1985 में औपचारिक रूप से यह विमान भारतीय वायुसेना में शामिल हुआ। रूस से लाइसैंस मिलने के बाद हिन्दुस्तान एयरोनाटिक्स लिमिटेड ने मिग-27 विमानों के 165 यूनिट का निर्माण किया। इसके अलावा एचएएल ने 86 विमानों को अपग्रेड भी किया। भारतीय वायुसेना के घटते स्क्वाड्रन की संख्या को देखते हुए जल्द ही मिग-27 की जगह सुखोई-30 एमकेआई और एलसीए तेजस मार्क वन को तैनात किया जा सकता है।
बता दें कि वायुसेना को 42 से ज्यादा स्क्वाड्रन की जरूरत है लेकिन वर्तमान में केवल 30 स्क्वाड्रन ही कार्यरत हैं। मिग-21 बाइसन को भी जल्द ही रिटायर किए जाने की उम्मीद है। इससे वायुसेना के स्क्वाड्रन की संख्या और कम होगी। भारतीय वायुसेना ने फ्रांस की दसाल्ट एविएशन के साथ 36 राफेल लड़ाकू विमान खरीदने का समझौता किया है। हालांकि इन्हें पूर्ण रूप से भारत आने में तीन साल से ज्यादा का वक्त लगेगा इसलिए अपनी जरूरतों को देखते हुए वायुसेना एमएमआरसीए 2.0 डील को आगे बढ़ाने पर विचार कर रही है। फिलहाल मिग-27 इतिहास बन गया है और कारगिल के बहादुर का सफर खत्म हो चुका है।