शेर की दहाड़ अभी बाकी है !
दुनिया के लोकतांत्रिक इतिहास में ऐसा कोई दूसरा उदाहरण मुझे नजर नहीं आता है जब किसी उम्मीदवार ने अपनी जीत के बाद यह कह कर सीट छोड़ दी हो कि उसे जिताने के लिए धांधली की गई। मगर पाकिस्तान में ऐसा हुआ है। निर्वाचन आयोग ने जमीयत-ए-इस्लामी के हाफिज नईम-उर-रहमान को विजयी घोषित किया लेकिन उन्होंने कहा कि उन्हें धांधली करके जिताया गया है। रहमान का दावा है कि उन्हें तो केवल 26 हजार वोट मिले जबकि इमरान खान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ के समर्थन से चुनाव लड़ रहे स्वतंत्र उम्मीदवार सैफ बारी को 31 हजार वोट मिले थे लेकिन ऐसी धांधली हुई कि सैफ बारी के हिस्से में केवल 11 हजार मत ही दिखाए गए और उसे हरा दिया गया। मुझे ऐसी जीत बिल्कुल नहीं चाहिए।
पाक निर्वाचन आयोग ने रहमान के आरोपों को खारिज कर दिया है लेकिन पूरे मुल्क में रहमान के आरोपों की चर्चा है, लोग कह रहे हैं कि आईएसआई और सेना के चंगुल में फंसे निर्वाचन आयोग ने न जाने कितनी ऐसी हरकतें की हैं। ऐसी धांधली के बावजूद इमरान की पार्टी के लोगों ने स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में सबसे ज्यादा सीटें हासिल की है तो इसका मतलब है कि पिंजरे में कैद इमरान खान नाम के शेर की दहाड़ पाकिस्तान में गूंज रही है।
इमरान खान की प्रकृति और प्रवृत्ति को मैं करीब से जानता हूं, जब वे खिलाड़ी थे तब भी उनसे मुलाकातें हुईं और जब वे राजनीति में आए तब भी कई बार गुफ्तगू हुई। पाकिस्तान को आगे ले जाने की जिद ने ही उन्हें राजनीति में कदम रखने के लिए प्रेरित किया अन्यथा निजी तौर पर वे खुशहाल जिंदगी जी रहे थे। जिस तरह भारत में 2014 में चुनाव में युवा, उद्योग जगत और सामान्य लोग नरेंद्र मोदी के समर्थन में खड़े हो गए थे, उसी तरह 2018 में पाकिस्तान में इमरान के साथ वहां की अवाम, खास तौर पर युवा खड़े हो गए। इमरान ने अपनी मां के नाम पर पाकिस्तान का सबसे बेहतरीन अस्पताल बनाया है जहां कैंसर से लेकर अन्य बीमारियों का मुफ्त उपचार होता है, उन्होंने कई स्कूल और कॉलेज भी बनवाए। वे चाहते थे कि उनके यहां ऐसे इंस्टीट्यूशंस हों जिनकी पहचान दुनिया भर में हो। हर हाथ को रोजी मिले, इमरान की चाहत थी कि भारत उनकी मदद करे। उनके समर्थक आज भी कहते हैं कि भारत ने अपनी राजनीति में इमरान को समझा ही नहीं।
शुरू में सेना और आईएसआई को लगा कि इमरान उसके हाथों की कठपुतली बनेंगे लेकिन जैसे-जैसे इमरान का सूरज ऊपर चढ़ने लगा, दोनों नाराज हो गए। इमरान अमेरिका से बराबरी का रिश्ता चाहते थे और चीन चाहता था कि वे कठपुतली बने, तहरीके तालिबान चाहता था कि इमरान उससे तालमेल रखे लेकिन इमरान ने इनकार कर दिया। नतीजा यह हुआ कि उन्हें जेल की सींखचों में पहुंचाने का षड्यंत्र रचा गया और सत्ता से बेदखल करने के लिए नवाज और भुट्टो ने हाथ मिला लिया। नवाज के भाई शहबाज प्रधानमंत्री बन गए, विभिन्न मामलों में सजायाफ्ता नवाज को कानूनन जेल जाना था लेकिन वो बेदाग बरी हो गए और अगस्त 2022 में जेल की सींखचों में पहुंच गए इमरान खान।
चुनाव से पहले विभिन्न मामलों में 31 साल की सजा सुनवा दी गई लेकिन शेर की दहाड़ की गंभीर चिंता सेना को लगी रही। इसीलिए इमरान की पार्टी पीटीआई को चुनाव लड़ने से अयोग्य घोषित कर दिया गया। यहां तक कि चुनाव चिन्ह बल्ला जब्त भी कर लिया, यदि एक व्यक्ति ने वाकई कोई जुर्म किया भी था तो पूरी पार्टी को कैसे अयोग्य ठहराया जा सकता है? लेकिन आईएसआई और सेना ने ऐसा किया क्योंकि इमरान ने जनजागृति का अलख जगा दिया था। तानाशाह हुक्मरान ऐसी अलख से डरते हैं, इमरान इसी का शिकार हुए।
वैसे इमरान कभी भी हार मानने वाले खिलाड़ी नहीं रहे। वे प्रहार करने वाले बॉलर और बैट्समैन रहे हैं और जब तक विकेट चटक न जाए या बॉल बाउंड्री पार न हो जाए तब तक चैन से बैठने की उन्हें आदत नहीं है, उनकी राजनीति भी वैसी ही है। उन्होंने अपने लोगों को निर्देश दिया कि ये चुनाव निर्दलीय रूप से लड़ना है। इमरान के लोगों को चुनाव प्रचार से रोका गया, बहुत सी बाधाएं खड़ी की गईं लेकिन पाकिस्तान का युवा तो इमरान को सत्ता देना चाह रहा था। हारे हुए उम्मीदवारों को जिताने की तमाम धांधली के बावजूद जब परिणाम आए तो सब दंग रह गए। 265 सदस्यों वाली नेशनल असेंबली में पीटीआई समर्थित 93 उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की है, हालांकि उसका दावा इससे भी ज्यादा है।
नवाज की पार्टी पीएमएल (एन) को 75 सीटें और भुट्टो की पीपीपी को महज 54 सीटें ही मिल पाईं। महिलाओं और गैर मुस्लिमों के लिए आरक्षित 70 सीटों पर इमरान की पार्टी वंचित रहेगी इसलिए फिलहाल सत्ता में उनका आना संभव नहीं लगता लेकिन इमरान ने जो अलख जगाई है, उसी का नतीजा है कि इस वक्त पाकिस्तान में बड़े पैमाने पर प्रदर्शन हो रहे हैं। जनता इमरान को सत्ता में देखना चाहती है लेकिन क्या करें, हमारे पड़ोसी की किस्मत ही खराब है, तरक्की के रास्ते पर जाने के लिए उसे अभी और न जाने कितना लंबा इंतजार करना पड़ेगा, खुदा वहां के अवाम की रक्षा करे।
– डा. विजय दर्डा