वैसे तो हर देश को अपने हितों की रक्षा करने के लिए फैसले लेने का अधिकार है। कोरोना महामारी के चलते हर छोटा बड़ा देश फैसले ले रहा है लेकिन जिस तरह से अमेरिका और चीन में टकराव बढ़ चुका है, इस टकराव का अंत कहां जाकर होगा कुछ कहा नहीं जा सकता। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कोरोना वायरस की उत्पत्ति को लेकर चीन को चारों तरफ से घेरना शुरू कर दिया है और दावा किया है कि चीन द्वारा कोरोना वायरस तैयार करने के सबूत उनके पास हैं। यद्यपि डब्ल्यूएचओ ने अमेरिकी दावे को झुठलाते हुए कहा है कि वायरस प्रकृति की उत्पत्ति है और अमेरिका के पास सबूत हैं तो उसे पेश करे। अमेरिका का आरोप है कि चीन के पास दुनिया को संक्रमित करने और घटिया लैब चलाने का इतिहास रहा है, जबकि सच तो यह है कि अमेरिका इसी घटिया वुहान की लैब को फंड दे रहा था। इस बात पर भी सवाल उठना चाहिए कि अगर वुहान लैब घटिया थी तो अमेरिका उसे फंड क्यों दे रहा था। चीन लगातार अपनी सरकारी मीडिया से अमेरिका को जवाब दे रहा है लेकिन दोनों देशों के रिश्तों में अब तक के सबसे खराब संबंध के रूप में देखा जा रहा है। कोरोना वायरस को लेकर नई-नई कहानियां सामने आ रही हैं लेकिन सच कभी सामने नहीं आएगा। सच तभी सामने आएगा जब चीन के खिलाफ कोई अन्तर्राष्ट्रीय जांच हो। विश्व स्वास्थ्य संगठन को चीन का दुमछल्ला करार देना अमेरिका उसकी फंडिंग रोक चुका है। अब अमेरिका ने चीनी उत्पादों पर दोगुना टैक्स लगाने का ऐलान कर दिया है।
अमेरिका और चीन में ट्रेडवार तो पहले ही चल रही थी। सच यह भी है कि जितनी निर्भरता अमेरिका की चीनी आयात, बाजार और कुशल कारीगरों पर है, उतनी निर्भरता चीन को अमेरिका से आयात पर नहीं। तमाम तरह के टकराव के बावजूद अमेरिका और चीन विश्व के बीच उभयपक्षीय व्यापार का आंकड़ा कई खरब डालर को पार कर चुका है। दोनों की तनातनी के बीच दोनों को ही नुक्सान होने की प्रबल सम्भावना है। इस समय दोनों की अर्थव्यवस्था को काफी नुक्सान हो चुका है। अमेरिका भारत की अर्थव्यवस्था के बराबर ऋण लेने को तैयार बैठा है। अमेरिका चीन पर बौद्धिक सम्पदा की चोरी करने, अमेरिकी पेटेंटों की तस्करी करने, अपनी कम्पनियों को अनुदान देने और पर्यावरण को प्रदूषित करने के आरोप लगाता रहता है। चीन पर वह श्रमिकों के मानवाधिकारों का उल्लंघन करने और अन्तर्राष्ट्रीय कानून की अवहेलना का आरोप लगाता रहता है। इसके बावजूद दोनों देश एक-दूसरे से हित साधने को मजबूर भी हैं।
यह वास्तविकता है कि डोनाल्ड ट्रंप कोरोना महामारी से लड़ने में विफल रहे हैं, इसलिए वह संरक्षणवादी नीतियां अपना कर देश की जनता के बीच खुद को महानायक बनाने का प्रयास कर रहे हैं। उनका हर फैसला राजनीतिक ज्यादा लगता है क्योंकि उनके सामने राष्ट्रपति के चुनाव भी हैं।
कोरोना महामारी के आगे घुटने टेक देने वाली महाशक्ति अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने आदेश जारी कर अमेरिका में अप्रवासन पर 60 दिनों के लिए प्रतिबंध लगा दिया था। इस अवधि में दूसरे देशों के लोग अमेरिका में रोजगार या नौकरी के लिए नहीं आ सकेंगे। कोरोना वायरस के संक्रमण के चलते अमेरिका में लगातार मौतों की संख्या बढ़ रही है, वहीं लगभग ढाई करोड़ लोग बेरोजगार हो चुके हैं। बेरोजगारों की संख्या और बढ़ने की आशंका है। प्रथम दृष्टि में तो ऐसा लगता है कि ट्रंप ने यह फैसला इसलिए उठाया है कि देशवासियों से रोजगार न छिने। वैसे अमेरिका में महामारी की हालत को देखकर अन्य देशों के लोग जाना ही क्यों चाहेंगे क्योंकि महामारी के शीघ्र नियंत्रण की कोई उम्मीद दिखाई नहीं देती। ट्रंप इस तरह की संरक्षणवादी नीतियां अपनाते रहे हैं। हर देश के सामने अपने और दूसरे देशों के संरक्षणवाद के बीच संतुलन बनाने की चुनौती भी है, यह चुनौती अमेरिका के सामने भी है। अप्रवासन के कारण रोजगार और आपात के कारण व्यापार संतुलन पर असर को लेकर ट्रंप पहले से ही आक्रामक नीतियां अपनाते रहे हैं। दरअसल ट्रंप महामारी में भी सियासत कर रहे हैं। मैक्सिको और कनाडा की सीमाएं पहले से ही सील हैं, इसलिए फिलहाल किसी के आवागमन की कोई सम्भावना ही नहीं।
अब तो एक आंतरिक रिपोर्ट में चीन की सरकार को चेतावनी दी गई है कि कोरोना महामारी के चलते अमेरिका-चीन सैन्य टकराव की नौबत आ सकती है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि दुनिया भर में चीन विरोधी भावनाएं बढ़ने की वजह से उसे सबसे बुरी स्थिति का सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए। अमेरिका-चीन टकराव से क्या भारत प्रभावित होगा? इस प्रश्न का उत्तर कुछ विशेषज्ञ इस तरह देते हैं कि यह सही मौका होगा कि भारत अपने उत्पादों को अमेरिका के बाजारों में बेचें। यह टकराव भारत के लिए फायदेमंद हो सकता है। यह तभी होगा जब भारत खुद कोरोना महामारी से सम्भल जाए। कोरोना महामारी का संकट खत्म होने के बाद ध्वस्त हो चुकी अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था का निर्माण करना होगा। उस समय विश्व व्यापार संगठन और सभी देशों को एकजुट होकर काम करना होगा। कोई राष्ट्र अकेले नहीं चल सकेगा। उन्हें श्रमिकों, पूंजी निवेश और सुगम व्यापार के लिए रास्ते खोलने होंगे। टकराव की मानसिकता कोरोना संकट के समय स्वाभाविक प्रतिक्रिया हो सकती है। ट्रंप भले ही बहुत कुछ राष्ट्रपति चुनावों को देखकर कर रहे हैं लेकिन लम्बे समय का टकराव पूरे विश्व के लिए घातक हो सकता है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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