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नफरत के सौदागरों का लेन-देन !

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लोकसभा चुनावों की रणभेरी बजने के बाद ‘होली’ के सांस्कृतिक पर्व पर भारत में गुरुग्राम के इलाके में अपने ही घर के बाहर एक मुस्लिम परिवार के क्रिकेट खेलते सदस्यों को कुछ कट्टरपंथी शराबी बनकर यह कहते हुए अधमरा कर जाते हैं कि ‘पाकिस्तान’ चले जाओ वहीं दूसरी तरफ ‘पाकिस्तान’ में होली के दिन ही दो हिन्दू लड़कियों का निकाह करा दिया जाता है, जरा सोचिये क्या इन दोनों घटनाओं में कोई अंतरसम्बन्ध है ? एक सामान्य व्यक्ति को लगेगा इसमें क्या सम्बन्ध हो सकता है ? दो अलग-अलग देशों की दो अलग-अलग घटनाएं हैं और वास्तव में ऐसा है भी तो फिर आपस में क्या सम्बन्ध हो सकता है ? मगर हकीकत यह है कि दोनों घटनाओं का सिरा एक-दूसरे से मजबूती के साथ जुड़ा हुआ है।

दोनों ही घटनाओं के पीछे धार्मिक असहिष्णुता और नफरत की मानसिकता को सामाजिक स्वीकार्यता देकर उसे वैध कार्रवाई बताने का कुत्सित प्रयास है। यह इस्लामी राष्ट्र पाकिस्तान की जहनियत को धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र भारत की जहनियत बनाने का प्रयास भर नहीं है बल्कि भारत की एकता और अखंडता को चुनौती देने की हिमाकत और जुर्रत इस तरह है जिससे संविधान के शासन की इस देश की स्थापना को पाकिस्तान के बराबर लाकर छोटा और बौना बना दिया जाये। यही वह मानसिकता है जिसने 1947 में भारत के दो टुकड़े किये थे। दोनों ही देशों में सक्रिय इस जहनियत की ताकतें एक ही सिद्धांत का पालन करती हैं जिसका नाम नफरत है और इसका विरोध करने वाली शक्तियों को राष्ट्रविरोधी तक बताने की हिमाकत कर देती हैं।

पाकिस्तान के इस्लामी देश होने की वजह से वहां के कट्टरपंथी दूसरे धर्मों के अनुयायियों पर जौर-जुल्म करना अपना जायज हक मान बैठे हैं जबकि वहां का संविधान भी इसकी इजाजत नहीं देता है और भारत के कट्टरपंथी तत्व हिन्दुत्व के नाम पर मुसलमानों का विरोध करना अपना जायज हक बताते हैं क्योंकि पाकिस्तान का राजधर्म इस्लाम है और इसका निर्माण भारत को काट कर ही किया गया है जबकि इस बंटवारे के खिलाफ करोड़ों मुसलमानों ने भारत को ही अपना देश मानते हुए यहीं रहना पसन्द किया था। यह उनका भारत के उस विचार में अटूट भरोसा था जिसकी संस्कृति विविधता के साये में धार्मिक पहचान को समेट लेती थी क्योंकि इस देश की हिन्दू बाहुल्य जनता किसी एक ही विशिष्ट धार्मिक पद्धति की पैरोकार नहीं थी।

इसमें सगुण व निर्गुण अर्थात साकार व निराकार पूजा पद्धति की सैकड़ों धाराएं थीं इसके साथ ही जातियों की ऊंच-नीच की शिकार हिन्दू संस्कृति में मानवीय संवेदनाओं को भी जातिगत आधार पर बांटने की धृष्टता तक की गई थी। अतः भारत की जमीन में किसी भी धर्म का विरोध करना इसका मूल स्वभाव कभी नहीं रहा परन्तु अंग्रेजों के शासन में हिन्दू और मुसलमान राष्ट्रीयता को बहुत ही करीने के साथ बढ़ावा दिया गया और इसे प्रायोजित करने के लिए जनता के बीच से ही नेता व राजनैतिक संगठन तक खड़े किये गये। मगर अंग्रेजों को भी इसमें आंशिक सफलता ही मिल पाई क्योंकि बंटवारे के समय में भी वे भारत के मुसलमानों का भारत से मोह भंग नहीं कर सके। मगर सियासत में वे हिन्दू और मुसलमान का विचार छोड़कर चले गये।

अतः आज हम जो कुछ देख रहे हैं वह सिर्फ और सिर्फ अंग्रेजों की राजनैतिक विरासत ही है। पाकिस्तान के कट्टरपंथियों को लगता है कि होली के दिन दो हिन्दू बालाओं का निकाह कराने से उनका राष्ट्रवाद मुखर होकर हिन्दू बाहुल्य भारत को चुनौती देगा और भारत के कट्टरपंथियों को लगता है कि मुसलमानों पर जुल्म ढहाकर उन्हें पाकिस्तान चले जाने की धमकी देने से उनका राष्ट्रप्रेम उजागर हो जायेगा। दरअसल यह राष्ट्र विरोध है कि एक मुस्लिम परिवार को केवल मुसलमान होने की वजह से उसकी राष्ट्रीयता को चुनौती देना भारत को चुनौती देना ही है क्योंकि इसका संविधान बिना किसी धार्मिक या अन्य भेदभाव के प्रत्येक उस नागरिक को राष्ट्रीयता प्रदान करता है जिसका जन्म यहां की धरती में हुआ हो।

जरा सोच कर देखिये यदि किसी नागरिक की राष्ट्रीयता उसके धर्म से पहचानी जाने लगे तो दुनिया के विभिन्न देशों में बसे हिन्दुओं की स्थिति क्या हो सकती है? मगर भारत और पाकिस्तान के मामले में एक-दूसरे देश के कट्टरपंथी एक- दूसरे को आक्सीजन देने का काम किस तरह करते हैं इसके लिए मैं साठ के दशक के उत्तर प्रदेश के प्रख्यात कांग्रेसी नेता स्व. गोविन्द सहाय का उदाहरण देता हूं। आजकल देश में चुनाव का वातावरण है। वह अपनी चुनावी सभाओं में चुटकी लेकर कहा करते थे कि दोस्तों जनसंघी केवल भारत में ही नहीं हैं बल्कि ये पाकिस्तान में भी हैं।

वे वहां कहते हैं कि यह कैसा पाकिस्तान है जिसमें न लालकिला है न ताजमहल है और न जामा मस्जिद है जबकि भारत के कट्टरपंथी कहते हैं कि यह हिन्दोस्तान है जिसमेंं न हिंगलाज देवी का मन्दिर है न कटासराज मन्दिर है और न महाराजा रणजीत सिंह का किला है। इनका मकसद सिर्फ हिन्दू-मुसलमान के नाम पर दोनों देशों में अपनी-अपनी राजनीति चमकाना है जबकि ये सभी जानते हैं कि भारत और पाकिस्तान के बीच भूमि का बंटवारा हो चुका है और इन इमारतों और मन्दिरों को हवा में उड़ा कर एक-दूसरे देश में नहीं ले जाया जा सकता। इसी प्रकार आज के दिन न तो किसी मुसलमान को पाकिस्तान जाने की धमकी दी जा सकती है और न ही पाकिस्तान के किसी हिन्दू नागरिक का जबरन धर्म परिवर्तन किया जा सकता है क्योंकि दोनों ही देशों का संविधान इसकी इजाजत नहीं देता मगर इसके बावजूद कट्टरपंथी ताकतें अपने वजूद के लिए ऐसी हरकतों को सामाजिक वैधता प्रदान करना चाहती हैं।

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