चन्द्रयान-2 की तस्वीरें सामने आ चुकी हैं यानी चन्द्रयान की मुंह दिखाई हो चुकी है। इसकी सफल लैंडिंग के बाद भारत चांद की सतह को चूमने वाला चौथा देश बन जाएगा। इससे पहले अमेरिका, रूस, चीन अपने यान चांद की सतह पर भेज चुके हैं। हालांकि अभी तक किसी भी देश ने चांद के दक्षिणी ध्रुव के पास उतरने की कोशिश नहीं की। भारत इसी ध्रुव पर उतरने की कोशिश करेगा। विज्ञान के दृष्टिकोण से दक्षिणी ध्रुव उत्तर ध्रुव से अधिक छाया क्षेत्र में है। इसके चलते दक्षिणी ध्रुव पर पानी अधिक होने की उम्मीद है। यहां पर खनिज भी हो सकते हैं।
मानव हमेशा जिज्ञासु रहा है और वह जल, पृथ्वी, आकाश और अंतरिक्ष के रहस्यों को जानने का उत्सुक रहता है। दुनियाभर के वैज्ञानिक नए रहस्यों को उजागर करने में लगे हुए हैं लेकिन चन्द्रयान से लेकर मंगलयान तक अंतरिक्ष कार्यक्रम में जो सफलता भारत को मिली है, वैसी कामयाबी हम दूसरे क्षेत्रों में हासिल नहीं कर सके। भारतीय वैज्ञानिकों ने जो सफलता हासिल की उस पर देशवासियों को गर्व है। उन्होंने दिखा दिया कि साधनों की कमी को वह अपने हुनर और अपनी कल्पनाशीलता से पूरा कर सकते हैं।
स्वर्गीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने कार्यकाल में जयपुर में इंडियन साइंस कांग्रेस में शिरकत की थी तो उनसे पत्रकारों ने पूछा था कि उनके लिए मून मिशन के क्या मायने हैं तो अटल जी ने कविताई अन्दाज में कहा था-हमने तो चांद की बहुत कल्पनाएं की हैं पर मुझे नहीं पता कि आप हमें इसके बारे में सही-सही किस तरह की जानकारियां देंगे। यह एक सांकेतिक शब्द था, जो भारत के वैज्ञानिकों को चांद मिशन शुरू करने का इशारा था। जब 22 अक्तूबर 2008 को भारत ने श्रीहरिकोटा में चन्द्रयान-1 को प्रक्षेपित किया तो हम दुनिया के चुने हुए उन पांच देशों के क्लब का हिस्सा बन गए थे, जिसमें रूस, अमेरिका, यूरोपीय स्पेस एजैंसी, जापान और चीन शामिल थे। अब तक 12 अंतरिक्ष यात्री चांद की सतह पर चहलकदमी कर चुके हैं।
चन्द्रयान-1 के चांद पर उतरते ही तत्कालीन इसरो अध्यक्ष जी. माधवन नायर ने भावुक होकर कहा था-‘‘हमने वायदे के मुताबिक हिन्दुस्तान को चांद दे दिया। चन्द्रयान-1 अभियान की सबसे बड़ी प्रभावशाली बात यह रही कि हमारे वैज्ञानिकों ने जितना दावा किया था, वह वास्तव में उससे कहीं बड़ा और उससे कहीं ज्यादा प्रभावशाली नतीजे देने वाला रहा। 17 नवम्बर 2008 को भारतीय वैज्ञानिकों ने चांद का ब्लैक एंड व्हाइट वीडियो जारी किया था जो पूरी दुनिया को चौंकाने वाला था। रंगीन वीडियो तो बाद में जारी किया गया। भारत के चन्द्रयान ने चांद की सतह पर पानी के चिन्ह दर्शाने वाले चित्र भेजकर सारी दुनिया को हैरानी में डाल दिया था। इसके बाद अमेरिका के अंतरिक्ष संगठन नासा ने इससे आगे जाकर पक्के सबूत की तलाश में अपने अंतरिक्ष यान की चांद की सतह से टक्कर करवा दी थी।
अब अंतरिक्ष में जीवन की सम्भावनाओं की अधिक से अधिक जानकारी एकत्रित करने के प्रयास किए जा रहे हैं। भारत भी मानव मिशन की तैयारी में है। सभी प्रयास चांद के बारे में अधिक से अधिक समझ विकसित करने से जुड़े हुए हैं। चन्द्रयान-2 मिशन अपने आपमें काफी जटिल है। 8 हाथियों के वजन वाले चन्द्रयान-2 में तीन मॉड्यूल हैं-आर्बिटर, लैंडर (विक्रम) और रोवर (प्रज्ञान)। लैंडर चन्द्र के पूर्व निर्धारित स्थल पर उतरेगा और वहां एक रोवर तैनात करेगा। यह चन्द्रयान 13 भारतीय वैज्ञानिक उपकरण ले जाएगा। ये उपकरण चांद की मांद से कई रहस्य खोलेंगे। अपने इस मून मिशन के लिए इसरो सबसे शक्तिशाली रॉकेट बाहुबली का इस्तेमाल करेगा। यह यान चन्द्रमा के चारों ओर चक्कर काटकर अध्ययन करेगा। यान का पेलोड चांद की सतह से वैज्ञानिक सूचनाएं और नमूने एकत्रित करेगा।
यह पेलोड चांद के खनिज तत्वों की संरचना, वहां के वातावरण और वाटर आइस का अध्ययन करेगा। भारत का राष्ट्रीय ध्वज पहले ही चांद पर मौजूद है। हालांकि 1971 में नासा के अपोलो-15 मिशन ने जब चौथी बार उड़ान भरी थी तो यह अभियान दल संयुक्त राष्ट्र संघ के सभी सदस्य देशों के ध्वज भी ले गया था, जिनमें तिरंगा भी शामिल था। दूसरों की मदद से चांद पर पहुंचने और अपने बलबूते पर चांद पर पहुंचने में जमीन-आसमान का फर्क है क्योंकि यह पूरी तरह स्वदेशी मिशन है। हम सब इस मिशन की सफलता की कामना करते हैं।