मुगलकाल में मुस्लिम सत्ता संचालन के केन्द्र में थे, इनके लिए पढ़ना-लिखना जरूरी था। पहले मुसलमानों की भाषा फारसी थी, बाद में उन्होंने उर्दू को अपनी शिक्षा का माध्यम बनाया। इस्लाम में शिक्षा के लिए मदरसों की परंपरा बहुत पुरानी है। मध्य युग में विज्ञान और तकनीक से जुड़ी शिक्षा पर मुसलमानों का एकाधिकार था। भारत में जब शिक्षा के क्षेत्र में अंग्रेजी का दबदबा बढ़ा तो मुसलमानों को अंग्रेजी पढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया जाने लगा। मुसलमानों को आधुनिक शिक्षा हासिल करने की प्रेरणा सर सैयद अहमद खां ने दी। सर सैयद ने कहा था कि अगर हिन्दुस्तान के मुसलमानों को अशिक्षा रूपी अज्ञान की कोठरी से नहीं निकाला गया तो एक दिन मुसलमान तबाह और बर्बाद हो जाएगा और वह कभी उठ नहीं सकेगा।
सर सैयद खां अपने प्रतिद्वंद्वियों को शिक्षा के माध्यम से हराना चाहते थे। उन्होंने ही अलीगढ़ में एंग्लो-मोहम्मडन ओरिएंटल कालेज की स्थापना की, जो बाद में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय बना। उन दिनों बड़ी संख्या में मुसलमान उच्च शिक्षा के लिए इंग्लैंड गए आैर वहां विश्वविद्यालयों में जाकर पश्चिमी शिक्षा व संस्कृति का गहन अध्ययन किया। भारत की आजादी के बाद से ही मुसलमानों को राष्ट्र की मुख्यधारा में लाने के लिए अनेक घोषणाएं की जाती रहीं। कांग्रेस समेत अधिकांश राजनीतिक दल जो छद्म धर्मनिरपेक्षता का चोला ओढ़ा हुए थे, उनके लिए धर्मनिरपेक्षता का अर्थ मुसलमानों का तुष्टीकरण करना ही रहा। मुसलमानों को खुश करने के लिए सभी हदें तोड़ दी गईं। इसका मतलब सिर्फ उनका वोट हासिल करना ही था।
चुनावों के वक्त मुस्लिम मतदाताओं को अनेक तरह के प्रलोभन दिए गए, कभी उर्दू भाषा का वर्चस्व, आरक्षण, जान एवं संपत्ति की रक्षा, रोजगार, सच्चर कमेटी की रिपोर्ट को लागू करना और रंगनाथ मिश्र आयोग की सिफारिशें लागू करना लेकिन जमीनी धरातल पर कुछ नहीं हुआ। मुस्लिम शिक्षा और रोजगार के क्षेत्र में पिछड़ता ही गया। मदरसों में केवल धार्मिक शिक्षा दी जाती है। केन्द्र सरकार की मदरसा आधुनिकीकरण योजना, जिसका उद्देश्य छात्रों को गुणवत्तापरक शिक्षा दिया जाना था, को दरकिनार करके मदरसों में उलेमा आैर मौलवी छात्रों को सिर्फ इस्लामी शिक्षा (दीनी तालीम) ही प्रदान करते रहे। इस योजना के तहत मदरसों में अंग्रेजी, साईंस, विज्ञान, गणित और कम्प्यूटर जैसे विषयों को पढ़ाने के लिए सरकार की ओर से बाकायदा फंड का प्रावधान है। सरकार इन विषयों को पढ़ाने वाले शिक्षकों को वेतन देने के लिए अनुदान देती है लेकिन मदरसे इस पैसे का ईमानदारी से इस्तेमाल ही नहीं करते, या तो सिर्फ कागजों में ही शिक्षक रखे जाते हैं और सरकार से पैसा ले लिया जाता है या मदरसा चलाने वाले लोग अपने भाई-बंधुओं को टीचर रखकर ग्रांट रख लेते हैं। इसके अलावा बहुत से मदरसे सिर्फ कागजों में चलते रहे। यह खेल भी सरकारी अधिकारियों की मिलीभगत से चलता है। उत्तर प्रदेश में योगी सरकार ने जांच-पड़ताल शुरू कर दी तो बहुत सी अनियमितताएं देखने को मिलीं। उत्तर प्रदेश से मदरसों के पंजीकरण को अनिवार्य बनाया गया, उनके लिए पूरी जानकारी आनलाइन देना भी अनिवार्य बनाया।
वेतन और अनुदान का भुगतान भी ऑनलाइन किया गया। उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने कड़ा फैसला लेते हुए अब आदेश जारी किया है कि मदरसों में एनसीईआरटी की किताबें भी पढ़ाई जाएंगी। मदरसों के लिए नया पाठ्यक्रम जारी होगा। मदरसों में कुरान एवं मजहबी पुस्तकों के साथ आधुनिक शिक्षा की पुस्तकें पढ़ाई जाएंगी। इसका उद्देश्य मदरसों के बच्चों को आधुनिक विषयों के साथ अन्य स्कूलों की शिक्षा के बराबर लाना है। आलिया स्तर पर गणित और विज्ञान की पढ़ाई अनिवार्य होगी। कक्षा 6 से 8 तक दीनियत के अलावा अंग्रेजी, हिन्दी, उर्दू, गणित और सामाजिक विज्ञान भी पढ़ाया जाएगा। कक्षा 9वीं से दसवीं तक सभी विषयों के अलावा गृह विज्ञान का विषय भी होगा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी इस बात पर जोर देते रहे हैं कि मुस्लिम बच्चों के एक हाथ में कुरान और दूसरे हाथ में लैपटॉप होना चाहिए। योगी सरकार का यह फैसला कोई तुष्टीकरण की नीति नहीं बल्कि यह काम तो मुस्लिम समाज के हित में है। भविष्य में उनके बच्चे शिक्षित होंगे और वह दूसरों से प्रतिस्पर्धा कर सकेंगे। अगर आतंकवाद से प्रभावित कश्मीर घाटी के बच्चे आईएएस बन सकते हैं, डाक्टर बन सकते हैं तो फिर उत्तर प्रदेश के बच्चे ऐसा क्यों नहीं कर सकते।
दुर्भाग्य यह है कि शिया और सुन्नी धर्म गुरुओं ने इसका विरोध करना शुरू कर दिया है। मौलाना कह रहे हैं कि मदरसे इसके लिए तैयार नहीं हैं, इसके लिए पहले कमेटी बनाई जाए और उसके बाद कोई फैसला लिया जाए। मुस्लिम धर्म गुरुओं ने कहा है कि एनसीईआरटी की किताबें दिल्ली बोर्ड आैर यूपी के लिए तो पूरी नहीं हो रहीं, ऐसे में इसे मदरसों पर भी क्यों थोपना चाह रहे हैं। उन्होंने इस आदेश को मदरसों को निशाना बनाने वाला बताया। उलेमा इस आदेश को ऐसे प्रचारित कर रहे हैं जैसे योगी सरकार मदरसों को अपने नियंत्रण में लेना चाहती है। मुस्लिम समाज को स्वयं तय करना होगा कि क्या उन्हें बच्चों का भविष्य संवारना है या उन्हें केवल मजहबी शिक्षा तक सीमित करना है। इस्लामिक रूढ़िवादी मुस्लिम माता-पिताओं को अपने बच्चों को अपंजीकृत या गैर-सरकारी सहायता प्राप्त मदरसों में ही भेजने को मजबूर करते हैं। रूढ़िवादी कट्टर मुस्लिमों को भय है कि समाज शिक्षित हो गया तो उनका धार्मिक महत्व कम हो जाएगा। रूढ़िवादिता और निजी स्वार्थ मदरसों की गिरती शैक्षणिक व्यवस्था को बदलने में मुख्य बाधा है। फैसला मुस्लिम समाज को करना है।