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होली का वास्तविक सन्देश !

होली का त्यौहार भारतीय संस्कृति में इसलिए महत्वपूर्ण है कि किसानों की खेत में खड़ी फसल जब पकने पर आती है तो पूरे कृषि मूलक समाज में यह नव ऊर्जा का संवाहन करती है और पृथ्वी की उर्वरा शक्ति का संवेग सम्पूर्ण मानव जाति में भरती है।

होली का त्यौहार भारतीय संस्कृति में इसलिए महत्वपूर्ण है कि किसानों की खेत में खड़ी फसल जब पकने पर आती है तो पूरे कृषि मूलक समाज में यह नव ऊर्जा का संवाहन करती है और पृथ्वी की उर्वरा शक्ति का संवेग सम्पूर्ण मानव जाति में भरती है। भारत के अधिसंख्य त्यौहार कृषि क्षेत्र से ही जुड़े हुए हैं जिनका रूपान्तरण समय-समय पर विभिन्न सामाजिक सरोकारों के साथ होता गया। इसमें कुछ विकार भी समय के अनुसार आते गये जिससे होली के त्यौहार को हिन्दुओं की वर्ण व्यवस्था से जोड़ दिया गया।
 त्यौहारों का यह सामाजिक रूपान्तरण सामन्ती व्यवस्था में और जड़ें जमाता चला गया जिससे भारत में अमीर-गरीब या संभ्रान्त व रियाया का अन्तर हर हालत में बना रह सके परन्तु भारत के स्वतन्त्र होने के बाद जब यहां के लोगों ने अपने ही समाज के सबसे दलित और अस्पृश्य कहे जाने वाले व्यक्ति बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर का लिखा संविधान स्वीकर किया तो पूरा भारत समवेत स्वर में ऐलान करने लगा जात-पात में गुंथा हुआ हिन्दू समाज सभी पुरानी रूढि़यों को तोड़ कर आगे बढे़गा और नये भारत का निर्माण केवल मानवता के आधार पर करेगा जिसमें प्रत्येक व्यक्ति के अधिकार बराबर होंगे। ये बराबर के अधिकार ही हमें त्यौहारों काे सामाजिक बन्धनों से मुक्त करके उमुक्त भाव से इन्हें मनाने को प्रेरित करते हैं और भारतीय संस्कृति में आये विकारों को दूर करने का आह्वान करते हैं। कुछ पदार्थवादी सोच वाले व्यक्ति तर्क करते हैं कि होलिका दहन एक स्त्री को अग्नि के समर्पित करने का त्यौहार किस प्रकार हो सकता है? उनके तर्क में वजन हो सकता है क्योंकि यह हिन्दू समाज में स्त्री की महत्ता को नगण्यता की सीमा में रखता है। कुछ का मत है कि होलिका दहन की परंपरा काफी बाद में प्रचिलित हुई। पंजाब राज्य में होलिका दहन का संस्कार इक्का-दुक्का रूप में ही होता है और इसके कुछ समय बाद वैशाखी का पर्व बहुत धूमधाम से मनाया जाता है और होली के पर्व से लगभग एक माह पूर्व लोहिड़ी का त्यौहार मनाया जाता है जो किसान की फसल पकने की प्रक्रिया का त्यौहार होता है और यह मकर संक्रान्ति के अगले दिन  सर्दियों में पड़ता है। 
इस पर्व का वैज्ञानिक तर्क समझ में आने वाला है क्योंकि फसल को पकते देख कर यह समाज को उल्लासित करता है। अतः यह तथ्य सिद्ध करता है कि भारत का पंजाब प्रान्त प्रारम्भ से ही आधुनिक विचारों को अपनाने वाला राज्य रहा है और भौतिकवादी सोच का अनुगामी रहा है लेकिन मेरा कहने का मतलब यह कतई नहीं है कि होलिका दहन की परंपरा को नजरअन्दाज किया जाये बल्कि आशय यह है कि इसके वैज्ञानिक पक्ष का अवलोकन किया जाये। जहां तक होली के त्यौहार में रंग खेलने की परंपरा का सवाल है तो यह समाज में प्रेम-भाव को स्थायी रूप से बनाये रखने की रीति ही कही जा सकती है। आर्थिक रूप से जाति अनुसार  व्यावसायिक हैसियत में बंटे हिन्दू समाज में भेदभाव भूल कर रंग खेलने की परंपरा समूचे समाज को एक स्वरूप में देखने का प्रायोजन ही कही जा सकती है जिसमें मानवीयता का अंश सर्वोपरि कहा जा सकता है। यह मानवीयता स्वतन्त्रता के बाद बने नये भारत की राजनीतिक समाज के लिए बहुत ज्यादा महत्व रखती है जिसने मतदाताओं को विभिन्न खांचों में बांट कर उनकी भारतीयता की पहचान को दोयम बना कर रख दिया है। महात्मा गांधी जब स्वतन्त्रता आन्दोलन चला रहे थे तो उन्होंने हिन्दू समाज में दलितों की स्थिति में सुधार को आजादी से कम नहीं समझा था। क्योंकि आजादी का महत्व वही समाज आत्मसात कर सकता है जो पहले अपने भीतर मनुष्य को उसका आत्मसम्मान व गौरव बख्शे। वैसे भी होली का त्यौहार तब आया है जब देश के पांच राज्यों में चुनाव हो रहे हैं। इन चुनावों में मतदाताओं के बीच सबसे पहला सन्देश यही जाना चाहिए कि वे अपने-अपने राज्यों के सर्वांगीण विकास का लक्ष्य लेकर ही चलें। होली का असली सन्देश तो यही है कि समूचा समाज इकट्ठा होकर अपनी मानसिकता का विकास करे। एक-दूसरे पर रंग डाल कर सभी को रंग के आगोश में ढकने का मन्तव्य यही है कि सभी नागरिक इसके बाद एक समान ही दिखते हैं। होली का वास्तविक सन्देश यही है जिसे चुनावों की इस बेला में भी ध्यान में रखा जाना चाहिए। सन्देश यह है कि मतदाता केवल मतदाता होता है उसकी जाति या धर्म कोई भी हो सकता है। जिस प्रकार होली के रंग सभी को अपने रंग से ढक देते हैं वैसे ही भारत का संविधान प्रत्येक नागरिक को बराबर के अधिकारों से अधिकृत करता है।  

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