लोकसभा चुनाव 2024

पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

तीसरा चरण - 7 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

94 सीट

चौथा चरण - 13 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

96 सीट

पांचवां चरण - 20 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

49 सीट

छठा चरण - 25 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

सातवां चरण - 1 जून

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

लोकसभा चुनाव पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

बैंकों की हड़ताल का सबब

सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के कर्मचारियों की दो दिवसीय हड़ताल जिन आर्थिक परिस्थितियों में शुरू हुई है उनका सम्बन्ध 1991 के बाद से भारत में शुरू हुई बाजार मूलक अर्थव्यवस्था से जाकर जुड़ता है।

सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के कर्मचारियों की दो दिवसीय हड़ताल जिन आर्थिक परिस्थितियों में शुरू हुई है उनका सम्बन्ध 1991 के बाद से भारत में शुरू हुई बाजार मूलक अर्थव्यवस्था से जाकर जुड़ता है। इसका मतलब यही होता है कि सरकार वाणिज्यिक व व्यापारिक गतिविधियों से अपना हाथ खींचते हुए कारोबारी क्षेत्र प्रतियोगिता का माहौल पैदा करेगी और ऐसा करते हुए निजी क्षेत्र को नियन्त्रण से अधिकाधिक मुक्त करेगी। अतः सरकार ने जिन छह सरकारी बैंकों को छोड़ कर शेष सभी सार्वजनिक बैंकों के निजीकरण की घोषणा नये साल का बजट प्रस्तुत करते हुए की थी, वह फैसला बाजर मूलक अर्थव्यवस्था को अपनाये जाने की स्वीकृत नीति से ही उपजता है। आर्थिक बाजारीकरण नीति को 1991 में स्व. पी.वी. नरसिम्हाराव की कांग्रेस नीत सरकार ने लागू किया था जिसका समर्थन तब विपक्ष में बैठी भाजपा ने दिल खोल कर किया था। अतः सबसे पहले यह समझने की जरूरत है कि देश की आर्थिक नीतियों पर कांग्रेस व भाजपा के बीच कोई मूल अन्तर नहीं है परन्तु जहां तक सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का सवाल है तो भारत के सर्वांगीण विकास और आर्थिक गैर बराबरी को दूर करने में इनकी अत्यन्त महत्वपूर्ण भूमिका रही है।
1969 में जब तत्कालीन प्रधानमन्त्री स्व. इदिरा गांधी ने 14 निजी बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया था तो बैंकों में जमा सम्पत्तियों पर समाज के धनाड्य वर्ग का कब्जा इस प्रकार था कि केवल धन्ना सेठ ही बैंकों से भारी कर्ज ले-लेकर अपने व्यापारिक वृद्धि में मशगूल रहते थे। सामान्य और मध्यम वर्ग का आदमी बैंकों से कर्ज लेने के दायरे से लगभग बाहर ही रहता था। राष्ट्रीयकरण ने इस दीवार को इस प्रकार तोड़ डाला कि सामान्य व छोटे व्यापारी से लेकर किसानों तक की पहुंच इन बैंकों तक होने लगी और सरकार की तरफ से देश के प्रत्येक जिले में किसी एक सरकारी बैंक को लीड बैंक (अग्रणी बैंक) घोषित किया जाने लगा जिसका मुख्य दायित्व होता था कि वह बांटी गई कुल कर्ज राशि में से 20 प्रतिशत कृषि क्षेत्र को देने की गारंटी दें। इसके साथ कुटीर व छोटे उद्योग धंधों के लिए भी बैंक कर्ज के रास्ते बेधड़क तरीके से खुले और भारत के जमीनी विकास में इन बैंकों की भूमिका लगातार बढ़ती गई। जब एक तरफ जमीन पर यह काम हो रहा था तो दूसरी तरफ बैंकों की आय में भी वृद्धि हो रही थी और आम जनता का भारत की बैंकिंग प्रणाली में विश्वास लगातार मजबूत हो रहा था। कृषि विकास से लेकर औद्योगिक विकास तक में सार्वजनिक बैंकों का अंश लगातार बढ़ रहा था। यही स्थिति सार्वजनिक बीमा क्षेत्र की भी थी जिसका राष्ट्रीयकरण किया गया था। बीमा कम्पनियां देश के आधारभूत ढांचा गत क्षेत्र में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रही थीं।
सरकारी बीमा कम्पनियों पर आम भारतीय का अटूट विश्वास था परन्तु 1991 के बाद से निजी क्षेत्र के बैंकों की स्थापना के लिए नये नियामक बनाये जाने और विदेशी बैंकों को छूट दिये जाने के बाद जो वित्तीय संशोधन भारत की सरकारों ने क्रमवार तरीके से किये उनके प्रभाव से सरकारी बैंकिंग व बीमा क्षेत्र पर निजी बैंकों व कम्पनियों से व्यापारिक प्रतियोगिता करने की चुनौती पैदा हो गई  और साथ ही ‘गैर बैंकिंग वित्तीय कम्पनियों’ के लिए रिजर्व बैंक द्वारा नये नियम बनाने से ग्रामीण क्षेत्रों के वित्तीय लेन-देन में परिवर्तन आने लगा। यह परिवर्तन इस प्रकार आया कि आम आदमी के हाथ में बैंकों के क्रेडिट कार्ड आने लगे और निजी बैंक उनके घर के दरवाजे पर ही उन्हें हर सुविधाएं देने का अभियान चलाने लगे। मगर इसके बावजूद सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने वर्ष 2008-09 की आयी विश्व मन्दी का डटकर मुकाबला किया और अपना सिर पहले की तरह ऊंचा रखा।
इस दौर में जब दुनिया भर के अमेरिका समेत यूरोपीय देशों के बड़े-बड़े बैंक फेल हो रहे थे तो और उनके सामने अपना धन निकालने वालों की लम्बी-लम्बी कतारें लगी हुई थीं तो भारतीय सरकारी बैंक सीना तान कर खड़े हुए थे और आम भारतीय का उनमें अटूट विश्वास जगमगा रहा था। प्रत्येक छोटे से लेकर बड़े निवेशक को बैंकों में जमा अपना धन सुरक्षित लग रहा था परन्तु इसके साथ यह भी हकीकत है कि बैंकों के बच्चा खाता ऋणों (एनपीए) की मिकदार भी इसके बाद से बढ़ने लगी। परिणाम स्वरूप सरकार को इनकी मदद के लिए कई बार आगे आना पड़ा। मगर इन बैकों के दस लाख से अधिक कर्मचारी 15 व 16 मार्च को हड़ताल इसलिए कर रहे हैं कि सरकार इनमें से चार बैंकों के निजीकरण की योजना तैयार कर चुकी है। इससे पहले स्व. अरुण जेतली के वित्त मन्त्रित्व काल में कई सार्वजनिक बैंकों का आपस में विलय करके इनकी संख्या घटाई थी। संभवतः यह बैंकिंग प्रतियोगिता के चलते ही सरकार ने किया था परन्तु वर्तमान में जिस तरह देश के विकास का ढांचा बदला है उसने बैंकों की लाभप्रदता को वक्त की जरूरत इस तरह बनाया है कि आम आदमी की बैंकों तक पहुंच को सरल बनाते हुए सामाजिक जिम्मेदारी को आर्थिक उपादेयता से जोड़ा जाये। मगर नीति आयोग ने साफ कर दिया है कि सार्वजनिक क्षेत्र के छह बड़े बैंकों का निजीकरण करने की जरूरत नहीं है जिससे सामाजिक जिम्मेदारी का फलसफा बैंकों की कार्यप्रणाली से जुड़ा रह सके और ये बैंक बदलती आर्थिक परिस्थितियों में अपनी मजबूती भी बनाये रख सकें। इन हालात में कहा जा सकता है कि बाजारमूलक अर्थव्यवस्था के बीच सरकार अपनी आर्थिक जिम्मेदारियों से मुंह नहीं मोड़ना चाहती है मगर सकल विकास में निजी क्षेत्र पर इसकी जिम्मेदारी भी डालना चाहती है। जाहिर है इस कार्य में विरोध का सामना करना पड़ सकता है और बैंक कर्मचारी यही कार्य कर रहे हैं परन्तु राष्ट्रीय सन्दर्भ में सरकार के इस कदम का विरोध करना समयोचित नहीं कहा जा सकता क्योंकि बैंकों की कार्यक्षमता और दक्षता बाजार की परिस्थितियों और इसके नियमों पर ही निर्भर करती है। बैंकों के बारे में एक बात समझनी आवश्यक है कि प्रत्येक बैंक (सार्वजनिक या निजी) का निर्माण आम जनता ही करती है। इसमें आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि पंजाब नेशनल बैंक की स्थापना स्वतन्त्रता सेनानी लाल लाजपत राय ने ही की थी। लोगों के विश्वास और इसकी दक्षता ने ही इसे देश का बहुत बड़ा बैंक बनाया। अतः सरकार के फैसले का आंख मींच कर विरोध करना समय की रफ्तार के खिलाफ भी कहा जा सकता है। यही बात सरकारी बीमा क्षेत्र के कर्मचारियों को भी सोचनी चाहिए जो 17 व 18 मार्च को हड़ताल पर जायेंगे।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

seven − 1 =

पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।