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महक उठा स्कूलों का आंगन

दिल्ली में किए गए सर्वेक्षण में लगभग 70 फीसदी अभिभावकों ने स्कूल खोलने के पक्ष में अपनी राय दी थी और महानगर में बुधवार को नौवीं कक्षा से लेकर बारहवीं कक्षा तक के स्कूल खोल दिए गए हैं।

दिल्ली में किए गए सर्वेक्षण में लगभग 70 फीसदी अभिभावकों ने स्कूल खोलने के पक्ष में अपनी राय दी थी और महानगर में बुधवार को नौवीं कक्षा से लेकर बारहवीं कक्षा तक के स्कूल खोल दिए गए हैं। दिल्ली आपदा प्रबंधन समिति ने भी स्कूल खोलने पर अपनी मोहर लगा दी थी। दिल्ली में पिछले करीब डेढ़ साल के दौरान कोरोना संक्रमण की प्रकृति देखने में आई है। उससे उम्मीद तो बंदी है कि स्कूलों का प्रांगण बच्चों से महक उठेगा और शै​क्षणिक गतिविधियां सहज ढंग से आगे बढ़ेंगी। यद्यपि इससे पहले उत्तर प्रदेश, बिहार, गुजरात, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान समेत कई राज्यों में चरणबद्ध ढंग से स्कूलों को खोला जा रहा है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि कोरोना काल ने हमें बहुत कुछ सिखाया है। 
आनलाइन शिक्षा लाकडाऊन के दौरान एक ऐसा माध्यम बना जिससे घर बैठे शिक्षक इंटरनेट के माध्यम से देश के किसी भी कोने या राज्य से बच्चों को पढ़ा सकते हैं। शिक्षक और छात्र निर्धारित समय पर आनलाइन जुड़ जाते हैं। शिक्षकों ने स्काइप व्हाट्सएप और वीडियो कालिंग के माध्यम से बच्चों को पढ़ाया। कोरोना महामारी से सर्वाधिक प्रभावित शिक्षा का क्षेत्र हुआ क्योंकि स्कूल और अन्य संस्थाएं बंद करनी पड़ी। शिक्षा का क्षेत्र आर्थिक रूप से भी काफी प्रभावित हुआ। लेकिन आनलाइन शिक्षा ने बच्चों को घर से पढ़ाने का जरिया चुना गया जो जरूरत के मुताबिक सही था। संचार की प्रगति के कारण छात्रों को नया विकल्प मिला। आनलाइन स्क्रीन शेयरिंग का उपयोग करके विषयों को समझना आसान हो गया। लेकिन यह सब बड़ी कक्षा के बच्चों के लिए सुविधाजनक था। जहां-जहां अच्छा नेटवर्क था वहां आनलाइन शिक्षा सहज रही लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में जहां तीव्र गति वाले इंटरनेट की सुविधा नहीं थी, वहां आनलाइन शिक्षा उपलब्ध नहीं हो सकी। आनलाइन शिक्षा से सबसे बड़ी मुश्किल छोटी कक्षाओं के घर में बंद बच्चों को हुई। जिन्हें एक या दो घंटे बिठाना मुश्किल हुआ। 
अभिभावकों को बच्चों की देखभाल करने में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। बच्चों की यह शिकायत रही कि आनलाइन शिक्षा के दौरान उन्हें कुछ समझ नहीं आया। बल्कि एक तरफा पढ़ाकर चले जाते रहे। बच्चे जो कक्षाओं में बैठकर शिक्षकों से ज्ञान हासिल करते थे तो निश्चित अवधि के लिए पुस्तकों के साथ बैठना पढ़ता है। यह वर्षों तक चली आ रही परम्परा है। बच्चे जितने स्कूलों में अनुुशासित और संजीदा रह सकते हैं, उतना आनलाइन अनुशासित और गम्भीर नहीं रहे। आनलाइन शिक्षा में ज्यादातर व्यावहारिक अनुभव का अभाव रहा। स्कूल में शिक्षा भौतिक वस्तुओं का प्रयोग करके छात्रों को पढ़ाते हैं आैर यह व्यावहारिक स्पर्श, गहरी समझ और अध्ययन में ​िवशेष                    रुचि उत्पन्न रखता है। डेढ़ साल के लगभग घरों में बंद बच्चों के लिए यह शिक्षा अत्यंत नीरस और हताशा पैदा करने लगी। अभिभावक भी उदासी भरे माहौल में काफी चिंतित हो गए थे। यह तथ्य भी सामने आया कि आनलाइन शिक्षा निरंतर बनाए रखने, शिक्षा का एक माध्यम जरूर है लेकिन यह क्लास रूम शिक्षा का विकल्प नहीं हो सकती।
आनलाइन शिक्षा से बच्चों की आंखों, उंगलियों, गर्दन व रीढ़ की विकृतिया घेरने लगी थीं। बच्चा कितना पढ़ रहा है, कैसा पढ़ रहा है, कब से कब तक पढ़ रहा है, वास्तव में कितना सीख और समझ पा रहा है। उस पर नजर रखना भी आनलाइन शिक्षा में सम्भव नहीं हो सकता। बच्चों को प्रेरित करने के लिए कोई भी प्रेरक नहीं होता इसलिए यह उम्मीद नहीं की जा सकती कि हर बच्चा एकलव्य ही निकलेगा। इस बात को स्वीकार करना ही होगा कि बच्चे स्कूलों में जाकर शिक्षा तो प्राप्त करते ही हैं, बल्कि सहपाठियों के बीच रहकर सामाजिक व्यवहार भी सीखते हैं।
पारम्परिक कक्षा में छात्रों में एक साथ कार्य करने, आपस में बातचीत करने एवं प्रोजैक्ट पर कार्य करने से अनुभव बढ़ता है। कक्षाओं से ही छात्रों में पारम्परिक कौशल में वृद्धि होती है। जो छात्र के व्यावसायिक एवं व्यक्तिगत जीवन में सहायक होती है। लगभग समान आयु और कौशल स्तर के छात्र एक वर्ग बनाते हैं जो अध्ययन की पूरी अ​वधि तक रहता है। प्रत्येक छात्र अपने सहपाठियों के बीच रहकर तालमेल बनाकर काम करता है। सीखना विद्यार्थी के आंतरिक जीवन के साथ उसकी विविध मांगों और आवश्यकताओं के साथ जुड़ा होता है। कोरोना महामारी के चलते नुक्सान तो बहुत हुआ लेकिन स्कूलों को लम्बे अरसे तक बंद नहीं रखा जा सकता। हमें शिक्षा के क्षेत्र को पटरी पर लाने के लिए उपाय करने ही थे। अब जबकि पहले चरण में स्कूल खोल दिए गए हैं अब एक सप्ताह तक इसका प्रभाव देखना होगा। यद्यपि स्कूल या संस्थान की ओर से अभी ऐसी कोई बाध्यता नहीं लादी गई जो बच्चों  को स्कूल आने के लिए बाध्य करें। यदि सब कुछ ठीक रहा तो छठीं से आठवीं तक के स्कूल भी खोले जाएंगे, लेकिन हम सब को सतर्कता से आगे बढ़ना होगा। और सभी नियमों और निर्देशों का पालन करना होगा, ताकि महामारी की कोई और लहर फिर से न आए। छोटी सी लापरवाही महंगी साबित हो सकती है।

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