लोकसभा चुनाव 2024

पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

तीसरा चरण - 7 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

94 सीट

चौथा चरण - 13 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

96 सीट

पांचवां चरण - 20 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

49 सीट

छठा चरण - 25 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

सातवां चरण - 1 जून

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

लोकसभा चुनाव पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

महाराष्ट्र का तमाशा चालू आहे!

हाल ही में सम्पन्न हुए दो राज्यों हरियाणा व महाराष्ट्र के चुनावों में किसी भी एक राजनैतिक दल को अपने बूते पर पूर्ण बहुमत प्राप्त नहीं हुआ है

हाल ही में सम्पन्न हुए दो राज्यों हरियाणा व महाराष्ट्र के चुनावों में किसी भी एक राजनैतिक दल को अपने बूते पर पूर्ण बहुमत प्राप्त नहीं हुआ है जिसे देखते हुए दोनों ही राज्यों में सांझा सरकारों का गठन निश्चित प्रायः है परन्तु महाराष्ट्र में सत्ता में भागीदारी को लेकर जो रस्साकशी चल रही है वह लोकतन्त्र की भावना के ही खिलाफ नहीं बल्कि जनादेश का अपमान भी है। इस राज्य में चुनावों से पूर्व ही गठबन्धन करके भाजपा व शिवसेना ने ‘महायुति’  के रूप में मतदाताओं से जनादेश मांगा था और परिणामों में इसे पूर्ण बहुमत भी मिला मगर सत्ता में भागीदारी को लेकर जिस तरह यह महायुति ‘अद्भुत’ गठजोड़ के रूप में व्यवहार कर रही है उससे राज्य के मतदाताओं का अपमान ही हो रहा है।
मतदाताओं के सामने दोनों पार्टियां इस शर्त के साथ नहीं गई थीं कि उनमें मुख्यमन्त्री के पद के लिए ‘ढाई- ढाई साल’ की सौदेबाजी हुई है बल्कि संयुक्त तौर पर मजबूत व टिकाऊ सरकार देने के वादे के साथ गई थीं। गठबन्धन का व्यावहारिक पक्ष नेतृत्व के प्रश्न को इसके गठन के समय ही हल कर देता है। भाजपा व शिवसेना के बीच राज्य की कुल 288 सीटों पर लड़ने के लिए पार्टीवार प्रत्याशियों का चयन किया गया था तो साफ था कि शिवसेना से लगभग डयोढ़ी सीटें लड़ने वाली भाजपा के पास ही नेतृत्व रहेगा। 
गठबन्धन की चुनावी राजनीति का यह अलिखित नियम सा होता है।आम मतदाता को इस बात से कोई मतलब नहीं हो सकता कि दोनों पार्टियों के बीच गठबन्धन के लिए क्या  लेन-देन हुआ  है। उनके सामने गठबन्धन का जो चेहरा पेश किया गया उसे देख कर ही उन्होंने मतदान किया और इसे बहुमत दिया। अतः शिवसेना का अब यह कहना कि गठबन्धन बनाते समय भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने उनसे ढाई-ढाई साल के लिए मुख्यमन्त्री पद का वादा किया था, चुनाव परिणामों के बाद बनी दलगत सदस्य संख्या की ही ऊपज लगता है। 
288 सीटों का बंटवारा जिस प्रकार भाजपा, शिवसेना, कांग्रेस व राष्ट्रवादी कांग्रेस के बीच हुआ है उसमें एकमात्र विकल्प भाजपा-शिवसेना की सरकार का ही है क्योंकि श्री शरद पंवार और शिवसेना की सीटें 56 के आसपास लगभग बराबरी पर आयी हैं और कांग्रेस की 44 के पार हैं जिसे देखते हुए इन तीनों दलों की मिली-जुली सरकार ही बन सकती है जो राजनैतिक रूप से असंभव है क्योंकि कांग्रेस व शिवसेना का गठबन्धन किसी कीमत पर नहीं हो सकता और श्री शरद पंवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस शिवसेना के साथ किसी भी प्रकार का सहयोग करके अपने पैरों पर खुद कुल्हाड़ी नहीं मार सकती। हालांकि यह कहा जाता जरूर है कि राजनीति में ‘असंभव’ नाम का कोई शब्द नहीं होता परन्तु ‘संभव’ भी केवल वही होता है  जो समय की मांग के अनुसार असंभव को ‘बेवजह’ बना देता हो। 
स्वतन्त्र भारत में इसका सबसे बड़ा उदाहरण 1967 के चुनाव थे जिनमें नौ राज्यों में पहली बार गैर कांग्रेसी ‘संयुक्त विधायक दल’ सरकारें गठित हुई थीं और इनमें ‘कांग्रेस विरोध’ के मूल मन्त्र के चलते जनसंघ व कम्युनिस्ट पार्टी तक शामिल हुई थीं। राजनैतिक विचारधारा की दृष्टि से पर यह पूरी तरह ‘अपवित्र’ और असंभव गठबन्धन था परन्तु  व्यावहारिक राजनीति की जरूरत ने इसे संभव बनाया था। महाराष्ट्र में आज के हालात बिल्कुल इसके उलट हैं क्योंकि शिवसेना व भाजपा का वैचारिक स्तर ‘हिन्दुत्व’ की विचारधारा से प्रेरित है और चुनाव पूर्व है। इस पार्टी के  भाजपा विरोध में खड़े होने का न तो नैतिक आधार है और न व्यावहारिक आवश्यकता है। 
अतः भाजपा के साथ किसी अन्य दल के न आने की मजबूरी को देखते हुए इसने अपनी कीमत इस कदर ‘ऊंची’ कर दी है कि भाजपा का केन्द्रीय नेतृत्व सिंहासन से उतर कर खुद पैदल चल कर ‘नीचे’  आये। यह विशुद्ध रूप से राजनीति की खुली तिजारत का नमूना है जो महाराष्ट्र में हमको देखने को मिल रहा है। अतः राज्य के राज्यपाल श्री कोशियारी से इन दोनों पार्टियों के नेताओं का अलग-अलग मिलना सिर्फ यह बताता है कि सरकार गठन के लिए दोनों में से कोई भी अपने लगाई गई ‘बोलियों’ के दाम में परिवर्तन के लिए फिलहाल  तैयार नहीं है। 
परन्तु इसकी एक आधारभूत वजह और भी है। महाराष्ट्र में भाजपा शिवसेना के कन्धे पर बैठ कर ही फली- फूली है। यह हकीकत शिवसेना के नेताओं की आंख में कांटे की तरह चुभती रहती है। 2014 के बाद प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता के सहारे भाजपा ने शिवसेना को पछाड़ा और पहली बार विधानसभा में इससे ज्यादा सीटें प्राप्त करने में सफलता प्राप्त की, हालांकि तब दोनों ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था  मगर शिवसेना के सामने तब भी भाजपा के साथ जाने के अलावा और कोई विकल्प नहीं था पूरे पांच साल तक शिवसेना सरकार में साथ रहते हुए भाजपा की नाक में दम किये रही और अन्य विपक्षी दलों की तर्ज पर ही भाजपा की नीतियों की आलोचना भी करती रही परन्तु 2019 के लोकसभा चुनावों में इसने अन्त में समझौता कर लिया और विधानसभा चुनावों में अपने लिए ऊंचा दर्जा पाने की अपेक्षा की, परन्तु यह भी नहीं हो सका। 
संयोग से चुनाव परिणामों ने शिवसेना को अपने बिना भाजपा के सत्ता में पुनः आनेे की संभावना को ही असंभव बना डाला। अतः नई सराकर की पूरी पारी अब उसके नाम हो चुकी है और वह अपनी शर्तों का खुलेआम एेलान इस तरह कर रही है कि ‘मैं नहीं तो कोई भी नहीं’ इसलिए महाराष्ट्र का ‘तमाशा’ अभी नित नये गीत-संगीत के साथ कुछ दिनों और जारी रह सकता है। जबकि इसके ठीक विपरीत हरियाणा में दुष्यंत चौटाला 90 की विधानसभा में 10 सीटें लाकर ‘शान’ से उपमुख्यमन्त्री बन गये और माननीय मनोहर लाल खट्टर पुनः मुख्यमन्त्री पद की शपथ ले चुके हैं। इस राज्य में दोनों पार्टियां एक-दूसरे को पानी पी-पी कर कोसते हुए चुनाव लड़ी मगर सत्ता के चलते दोनों को ‘घी-शक्कर’ बना दिया। 
बेशक चुनाव बाद बनी दलगत स्थिति का ही नतीजा है जिसका लाभ उठाने में श्रीमान दुष्यन्त चौटाला ने कोई गफलत नहीं की। उन्होंने भाजपा की कमजोर हालत को अपने लिए स्वर्ण अवसर में बदल दिया और भाजपा ने पुनः सत्ता में आने के लिए उन्हें टिकाऊ जरिया समझा क्योंकि निर्दलीयों की मदद से 40 विधायकों वाली भाजपा की सरकार को हरियाणा की पुरानी राजनैतिक संस्कृति को देखते हुए ‘दैनिक आधार’ पर सांसे भरनी पड़ती। दुष्यन्त चौटाला का साथ लेने से कम से कम श्रीमान खट्टर साहब अपनी ‘जवाबदेही’ का बंटवारा तो कर सकेंगे।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

19 − seventeen =

पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।