जीवन में आस्था का होना बहुत जरूरी है। आस्था से जीवन में विश्वास आता है। यह विश्वास हमें जीवन की कठिन परिस्थितियों से लड़ने का साहस देता है। आस्था और विश्वास से ही यह माना जाता है कि ईश्वर, अल्लाह, वाहेगुरु ही हमारे जीवन में सब कुछ करते हैं। अगर ईश्वर में आस्था नहीं तो फिर आत्मविश्वास भी नहीं आता। आस्था की एक प्रकृति भी है और दायरा भी है। दायरा यह है कि यह खुद के अस्तित्व तक सीमित है, इसे किसी दूसरे पर थोपा नहीं जा सकता। जब आस्था को लेकर खुली सोच बंद होने लगे वहीं अंधविश्वास जन्म लेने लगता है।
धर्म में अंधविश्वास और अंधभक्ति का आना कोई नया नहीं है। आस्था के नाम पर व्यक्ति पूजा और उसके व्यवसायीकरण की प्रवृत्ति तेजी से बढ़ रही है। देखते ही देखते कुछ लोग भगवान बन बैठे, खुद को भगवान का मैसेंजर या ईश्वर का दूत कहते-कहते खुद को ही ईश्वर कहलवाने लगे। इन तथाकथित संतों पर अंधविश्वास के चलते आम लोगों को आध्यात्मिक, शारीरिक, मानसिक और आर्थिक रूप से नुक्सान उठाना पड़ा। इतना ही नहीं इससे धर्म की हानि हुई। धर्म के प्रति आस्था भी डांवाडोल हुई। इसी अंधविश्वास के चलते लोगों का खून भी बहा, अनेक जानें भी चली गईं।
धर्म और आस्था की आड़ में युवतियों का यौन शोषण भी हुआ। धर्म के नाम पर व्यभिचार के अड्डे चलाए जाने लगे। जब रहस्य पर से पर्दा हटा तो लोगों की आंखें खुल गईं। अनेक धार्मिक डेरों पर भू-माफिया की तरह आचरण करने के आरोप लग रहे हैं। यह भी कोई आश्चर्य नहीं कि इन धार्मिक डेरों के नाम पर शहरों के मुख्य स्थलों (प्राइम लोकेशन) पर भूमि भी अलाट हो जाती है, क्योंकि प्रशासन में इनके आस्थावान लोगों की कोई कमी नहीं होती। इनके पास धन की भी कोई कमी नहीं होती। यह धन भी आस्थावान लोगों द्वारा ही दिया जाता है।
इसी धन से खुद को आध्यात्मिक संत कहलवाने वाले अपनी सम्पत्ति बनाते हैं। यह कैसा अध्यात्म है जो दूसरों को मोह, माया के त्याग की शिक्षा देता है लेकिन खुद को गैर-कानूनी धंधों के जाल में फंसा लेता है। आयकर विभाग ने आध्यात्मिक गुरु कल्कि भगवान द्वारा स्थापित कम्पनियों और ट्रस्टों के परिसरों में छापेमारी की। आयकर विभाग की रिपोर्ट के अनुसार दक्षिणी राज्यों में फैले परिसरों से 500 करोड़ से भी अधिक की अघोषित सम्पत्ति का पता चला है। इसमें करीब 409 करोड़ की बेहिसाब नकद प्राप्तियां शामिल हैं। जब्त की गई नकदी में 18 करोड़ के लगभग अमेरिकी मुद्रा भी शामिल है।
कल्कि भगवान के अवतार को लेकर काफी कथाएं चर्चित हैं। कल्कि भगवान को भगवान विष्णु का अंतिम अवतार माना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार जब पृथ्वी पर पाप बढ़ेगा तब विष्णु का यह अवतार जन्म लेगा। भागवत पुराण में उनके अवतार की पूरी कथा है। कथा के अनुसार सम्भल ग्राम में उनका अवतरण होगा और देवदत्त नामक घोड़े पर सवार होकर दुष्टों का संहार करेंगे। आस्थावान लोग आज भी भगवान कल्कि के अवतार का इंतजार कर रहे हैं लेकिन विडम्बना यह है कि तथाकथित कल्कि भगवान बन बैठे व्यक्ति ने लोगों की आस्था का फायदा उठाते हुए दक्षिण भारत में भव्य सम्पत्तियां अर्जित कर लीं।
देश के तथाकथित बाबाओं के नाम की सूची में अब इनका भी नाम जुड़ गया। भारतीय बहुत आस्थावान होते हैं। यह गुण सदियों से पीढ़ी दर पीढ़ी स्थानांतरित होता रहा है। इसी आस्था के तहत हम हर कण में ईश्वर की संकल्पना को मूर्त रूप देते हैं लेकिन देश का दुर्भाग्य है कि लोगों की आस्था को अंधविश्वास में बदल दिया जाता है। भारतीयों का बाबा प्रेम किसी से छिपा नहीं है। देश में उत्तर से लेकर दक्षिण तक और पूरब से लेकर पश्चिम तक ऐसे स्व-घोषित बाबाओं की भरमार है। साल-दर-साल तमाम बाबाओं और धर्मगुरुओं की असलियत सामने आने के बाद भी लोगों की इनके प्रति आसक्ति कम नहीं होती। देश में सद्चरित्र बाबा भी मौजूद हैं लेकिन बड़ा सवाल यह है कि लोगों को आंख मूंद कर भरोसा करने की जरूरत क्यों पड़ रही है।
बदलते सामाजिक, आर्थिक परिवेश ने इस तिलिस्म को और भी स्याह कर डाला है। लोगों की बढ़ती चिंता और तनाव उन्हें ऐसे बाबाओं के चंगुल में फंसने की राह दिखाता है। मौजूदा समय में लोगों को चमत्कार की चाहत रहती है। उन्हें जीवन की समस्याओं का समाधान चाहिए। बाबा लोग तो कई परिवारों के सलाहकार, मनोचिकित्सक और आध्यात्मिक गुरु बन जाते हैं। जब परिवार के लोग हर काम के लिए इनका निर्देश प्राप्त करने लगते हैं तो फिर होता है इनका व्यावसायिक इस्तेमाल। अब समय आ गया है कि सद्चरित्र धार्मिक और आध्यात्मिक विभूतियां जनता को इनके प्रति सचेत करें और लोगों को आस्था और धर्म के सच्चे मार्ग पर लाएं और उन्हें व्यक्ति पूजा के अधर्म अंधविश्वास से बचाएं। आज के अवतारों से लोगों को बचाएं, अन्यथा एक के बाद एक कलंक कथाएं सामने आती जाएंगी।