लोकसभा चुनाव 2024

पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

तीसरा चरण - 7 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

94 सीट

चौथा चरण - 13 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

96 सीट

पांचवां चरण - 20 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

49 सीट

छठा चरण - 25 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

सातवां चरण - 1 जून

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

लोकसभा चुनाव पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

शांत सरोवर में पत्थर

अयोध्या विवाद में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद देश के हिन्दू और मुस्लिम समुदाय ने जिस संयम और सतर्कता का परिचय दिया उस पर हमें गर्व होना चाहिए।

अयोध्या विवाद में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद देश के हिन्दू और मुस्लिम समुदाय ने जिस संयम और सतर्कता का परिचय दिया उस पर हमें गर्व होना चाहिए। पूरे देश ने सुप्रीम फैसले को स्वीकार किया और मुख्य मुस्लिम पक्षकारों ने भी मान लिया कि इस फैसले के साथ ही अयोध्या मसले का समाधान हो गया है और वे सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर पुनर्विचार याचिका दायर नहीं करेंगे। 
मुस्लिम पक्षकारों में इकबाल अंसारी और सैंट्रल सुन्नी वक्फ बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ रिव्यू ​पि​टीशन दाखिल नहीं करने का ऐलान कर सराहनीय कदम उठाया। अयोध्या विवाद कुछ वर्षों का नहीं बल्कि 400 वर्ष से अधिक पहले का है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर मुस्लिम और धर्मांवलंबियों  ने देश की गंगा-जमुनी तहजीब यानी आपसी सौहार्द बनाए रखने में ही समझदारी दिखाई, लेकिन जमीयत उलेमा-ए-हिन्द ने अयोध्या फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दायर कर दी। 
आल इंडिया मु​स्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की पुनर्विचार याचिका भी कुछ दिनों में दायर की जाएगी। यह सही है कि किसी भी केस में हार और जीत के नजरिये से पक्षकारों को पुनर्विचार याचिका दायर करने का अधिकार है। फैसलों पर सहमति-असहमति को लेकर चर्चाएं भी होती रही हैं। अयोध्या की सरयू नदी शांत है तो फिर कुछ मुस्लिम कट्टरपंथियों द्वारा पुनर्विचार याचिका दायर करना शांत सरोवर में पत्थर फैंकने के समान ही है। 
मुस्लिम समाज में कुछ ऐसे तत्व हैं जो ​फिर से अयोध्या मसले पर आग भड़काने का प्रयास कर रहे हैं। अयोध्या मसले को फिर से सुप्रीम कोर्ट में ले जाने वाले पक्ष यह भी मानते हैं कि इससे सुप्रीम कोर्ट के फैसले में कोई बदलाव नहीं आने वाला लेकिन वह फैसले में अन्तर्विरोध को अदालत के सामने रखना चाहते हैं। यदि फैसले में बदलाव की कोई सम्भावना नहीं तो फिर शीर्ष अदालत में जाने का औचित्य क्या है? 
देश के हिन्दुओं ने इस फैसले के लिए बहुत सब्र किया है। श्रीराम जन्मभूमि के लिए कुल 76 लड़ाइयों के अलावा 1934 से लेकर आज तक अनगिनत लोगों ने संघर्ष किया और इन सभी में हजारों लोगों ने अपने प्राणों की आहूति दी किन्तु न कभी राम जन्मभूमि पर पूजा छोड़ी न परिक्रमा और न कभी उस पर अपना दावा छोड़ा। राम जन्मभूमि पर विराजमान रामलला को टैंट में से निकाल कर भव्य मंदिर में देखने के ​लिए लंबी कानूनी लड़ाई भी लड़ी। प्रत्येक व्यक्ति या महापुरुष की पहचान उसके जन्म स्थान से होती है। 
करोड़ों हिन्दुओं की आस्था है कि अयोध्या का इतिहास भारतीय संस्कृति की गौरव गाथा है। पुनर्विचार याचिका दायर करने वाले मुस्लिमों को चाहिए था कि वह अयोध्या फैसला स्वीकार करके आगे बढ़ते लेकिन उन्होंने फिर हिन्दू और मुस्लिमों में लकीर खींच दी। इस देश में मुस्लिम बादशाहों के चलते कभी भी इस बात पर सवाल खड़ा नहीं हुआ कि अयोध्या के विवादित स्थल की मल्कियत हिन्दुओं की है या मुस्लिमों की मगर इससे जुड़ा हुआ सवाल यह भी है कि मुस्लिम बादशाहत के रहते क्यों केवल प्रतीकात्मक रूप से उन स्थानों को चुना गया जिनका संबंध हिन्दुओं की भावनाओं से गहराई से जुड़ा हुआ था। 1669 में कट्टर औरंगजेब ने मथुरा के श्रीकृष्ण जन्म स्थान पर मस्जिद तामीर करने का हुक्मनामा जारी किया और काशी में विश्वनाथ मंदिर के स्थान पर। 
बेशक इसका संबंध अपने साम्राज्य की सीमाएं बढ़ाना नहीं था बल्कि हिन्दुओं में खौफ पैदा करना था कि वे बादशाहों के फरमान के आगे अपनी अटूट आस्था को भूल कर दिल में टीस लेकर जीते रहें। निश्चित रूप से यह मानसिक अत्याचार था जो हिन्दुओं ने सहा। कट्टरवादी मु​स्लिमों को लगा कि अयोध्या फैसले के बाद उनकी सियासत की दुकान बंद हो जाएगी। इसलिए वे अपनी दुकानदारी चमकाने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। यदि मुसलमानों को मजहबी भावनाओं का सम्मान करते हुए उन्हें एक देश दिया जा सकता है तो हिन्दुओं को उसी आधार पर मंदिर बनाने के लिए जमीन देने में क्यों अड़चनें खड़ी की जा रही हैं। 
मुझे यह कहने में कोई परहेज नहीं कि आजादी से पहले पाकिस्तान में अनेक ऐतिहासिक महत्व के प्राचीन मंदिर थे, अब उनके अवशेष भी नहीं हैं। इसके विपरीत भारत की सनातनी संस्कृति के चलते आजादी के बाद हजारों मस्जिदों का निर्माण भी हुआ और पुरानी मस्जिदों का जीर्णोद्धार भी हुआ। ऐसा बहुसंख्यक हिन्दू समाज के सक्रिय सहयोग से ही सम्भव हुआ। राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग ने भी मुस्लिम समाज को आगाह किया था कि रिव्यू पि​टीशन मुस्लिम समुदाय के हित में नहीं होगी और इससे दो समुदायाें के बीच एकता को नुक्सान पहुंचेगा। देखना होगा पुनर्विचार याचिका सुप्रीम कोर्ट में जाकर कितना ठहरती है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

twenty + 18 =

पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।