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एकीकृत निगम से बदलेगी व्यवस्था

केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने दिल्ली के तीनों नगर निगम को एक करने का फैसला किया है।  2012 में नगर निगम चुनाव से पहले दिल्ली नगर निगम को तीन भागों में बांट दिया गया था। केन्द्र सरकार के इस फैसले के बाद तीनों नगर निगमों को एक करने के साथ 272 वार्ड ही रखे जाएंगे लेकिन महापौर का कार्यकाल बढ़ा कर कम से कम ढाई वर्ष किया जा सकता है। दरअसल दिल्ली नगर निगम को तीन निगमों में विभाजित करने का प्रयोग पूरी तरह से विफल रहा है। महानगर दिल्ली में नगर निगम को दक्षिण दिल्ली नगर​ निगम, उत्तरी दिल्ली नगर निगम और पूर्वी दिल्ली नगर निगम में विभाजित करने के बाद न ताे नगर निगम के कामकाज में सुधार हुआ और उलटा नगर निगम वित्तीय संकट में इस कदर फंस गए कि कर्मचारियों को वेतन देना मुश्किल हो गया था। वर्ष 2011 में जब दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित थीं तो उन्होंने दिल्ली विधानसभा में एक प्रस्ताव पास किया था, जिसे केन्द्र ने अपनी स्वीकृति दी थी। इसके बाद  पहली बार चुनाव 2012 में हुआ। उस समय दिल्ली और केन्द्र दोनों जगहों पर कांग्रेस सत्तारूढ़ थी और नगर​ नगम में भारतीय जनता पार्टी का शासन था। 2012 के चुनाव में तीनों नगर निगमों में भाजपा की शानदार जीत हुई थी। भाजपा 272 में से 130 सीटें जीतने में सफल रही थी, जबकि कांग्रेस पार्टी को 77 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा था।

2017 के नगर निगम चुनावों में भाजपा की एक तरफा जीत हुई थी और भाजपा की सीटों की संख्या 138 से बढ़कर 181 तक पहुंच गई थी। 2017 के चुनाव में आम आदमी 49 सीटों के साथ दूसरे स्थान पर रही और कांग्रेस केवल 31 सीटों पर ​सिमट गई थी। तीनों नगर निगमों का कार्यकाल 5 मई को समाप्त हो जाएगा और लगता नहीं कि 5 मई तक चुनाव हो पाएंगे। दिल्ली में सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी ने इस फैसले के खिलाफ  सुप्रीम कोर्ट में याचिका भी दायर कर रखी है। 

चुनाव होने तक दिल्ली की जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों की बजाय सरकारी अफसर कुछ समय तक नगर निगम चलाएंगे जो सीधे उपराज्यपाल की देखरेख में काम करेंगे। दरअसल शीला दीक्षित सरकार के रहते कांग्रेस की सोच यह थी कि नगर निगम को तीन भागों में बांटने का फैसला भारतीय जनता पार्टी को कमजोर बना देगा लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ, उल्टा दिल्ली में कांग्रेस का सफाया होना शुरू हो गया। दिल्ली नगर निगम को तीन टुकड़ों में बांटने का फैसला ही गलत था। दिल्ली नगर  निगम के विभाजन के बाद दिल्ली में पांच स्थानीय निकाय बन गए थे। दिल्ली छावनी परिषद और नई दिल्ली पालिका परिषद भी है। दिल्ली शहर का वह हिस्सा जो दिल्ली विकास प्राधिकरण के अधीन होता है जहां नई कालो​नियाँ  बसाई जाती हैं और तब तक के विकास का कार्य समाप्त न हो जाए और नई कालोनियां दिल्ली नगर​ नगम को नहीं सौंप दी जातीं वहां स्थानीय निकाय का काम दिल्ली विकास प्राधिकरण के जिम्मे ही होता है। पहले तो दिल्ली देश की राजधानी है और यहां केन्द्र सरकार काम करती है। दुनियाभर में ऐसा कोई मॉडल हमारे सामने नहीं है कि देश की राजधानी में अलग से सरकार भी है और  देश के किसी अन्य शहर में भी 5 या 6 स्थानीय निकाय हों। एक कहावत है ज्यादा योगी मठ उजाड़। अंग्रेजी में एक कहावत है-“Too many Cooks spoil the broth” यानि कई रसोइये भी शोरबा खराब कर देते हैं। यही हाल दिल्ली महानगर का हुआ। दिल्ली  नगर निगम में काफी अरसे से भ्रष्टाचार का बोलाबाला रहा है। दक्षिणी दिल्ली नगर​ ​​निगम अमीर है तो उत्तरी दिल्ली नगर निगम और पूर्वी दिल्ली नगर निगम की आर्थिक हालत बहुत खस्ता है।

 दिल्ली में भ्रष्टाचार के चलते अवैध निर्माण जारों पर हुआ और सड़कें संकरी गलियों में तब्दील हो गईं। दिल्ली कचरे का शहर बन गया और दिल्ली की पहचान जहरीली गैसों का चैम्बर बन गई। भयंकर प्रदूषण की चपेट में आने से दिल्ली में शुद्ध हवा में सांस लेना भी दूभर हो गया। विडम्बना यह रही कि राजनीतिज्ञों और अफसरशाही की सांठगांठ से भूमाफिया ने अवैध कालोनियों का निर्माण किया और हर साल दिल्ली पर आबादी का बोझ बढ़ता गया और महानगर का बुनियादी ढांचा दम तोड़ गया। अब सवाल यह है कि  दिल्ली के नगर निगमों को एक करके व्यवस्थाएं कितनी बदल जाएंगी। माना जा रहा है कि फिर से दिल्ली को एक महापौर मिलेगा और मेयर इन कौंसिल की व्यवस्था अपनाई जाती है तो दिल्ली की जनता पार्षद और महापौर का सीधा चुनाव कर सकेगी। दिल्ली की ओर से चुना हुआ महापौर दिल्ली  के मुख्यमंत्री के बराबर भी हो सकता है। हालांकि एक नगर​ निगम होने पर आरक्षण प्रणाली पर पेच फंस सकता है। यह भी कहा जा रहा है कि एक नगर निगम होने पर खर्चे में कमी आएगी क्योंकि तीन नगर निगम संचालित करने पर खर्चा बहुत बढ़ गया था। अभी बहुत सारी चीजें सुलझाई जानी हैं। देखना होगा कि इससे दिल्ली को क्या लाभ मिलता है। इस बात की सम्भावना भी जताई जा रही है कि नगर निगम को दिल्ली सरकार से पूरी तरह दूर रखा जाए। इस संबंध में डीएमसी एक्ट की 17 धाराओं का अधिकार दिल्ली सरकार से छीन कर अपने अधीन ले सकती है। 2009 में केन्द्र ने इन धाराओं के तहत कार्रवाई करने का अधिकार दिल्ली  सरकार को दे दिया था। इसके बाद दिल्ली नगर निगम  में दिल्ली सरकार का हस्तक्षेप बढ़ा। इस बार मैदान में आम आदमी पार्टी भी है। पंजाब में आप पार्टी की सरकार बनने के बाद उसके हौंसले बुलंद हैं। अब सवाल यह है कि क्या दिल्ली के मुख्यमंत्री अपने बराबर किसी महापौर को सहन करेंगे। टकराव की स्थिति बनी रहेगी या कामकाज सुुचारू रूप से होगा। यह देखना अभी भविष्य की बात है।