उद्योग जगत की नजरें इस बात पर लगी हुई थी कि दिग्गज उद्योगपति और दरिया दिल इंसान रतन टाटा के निधन के बाद उनका उत्तराधिकारी कौन बनेगा। करीब 34 लाख करोड़ रुपए के टाटा समूह की कमान और प्रबंधन किसके हाथ में होगा। टाटा ग्रुप की सभी 29 कम्पनियों की कुल मार्केट कैप इस वर्ष 20 अगस्त तक 403 अरब डॉलर हो चुकी है। अब यह तय हो चुका है कि रतन टाटा की विरासत उनके सौतेले भाई नोएल टाटा के हाथ में होगी। मुम्बई में ट्रस्ट की बैठक में नोएल टाटा के नाम पर मोहर लगा दी गई। नोएल टाटा ग्रुप से 40 साल से ज्यादा समय से जुड़े हुए हैं। वह सर दोराबजी टाटा ट्रस्ट और सर रतन टाटा ट्रस्ट के ट्रस्टी हैं। इन ट्रस्ट का टाटा संस में अधिकांश शेयर है। ग्रुप के साथ लम्बे समय से जुड़ाव और इन ट्रस्टों में अपनी भूमिका के चलते नोएल टाटा चेयरमैनशिप के लिए रेस में सबसे आगे थे। यह फैसला रतन टाटा की फिलोस्फी पर ही लिया गया जो कहती है कि चलते रहना ही जिन्दगी है यानि लीडरशिप में कोई रुकावट नहीं आनी चाहिए। नोएल अपने बड़े भाई रतन टाटा की तरह शांत व संयमित आचरण के लिए जाने जाते हैं। नोएल हमेशा लो प्रोफाइल रहे हैं। कुछ वर्ष पहले यह कहा जा रहा था कि उनके पास विमानन और आॅटोमोबाइल इंडस्ट्री में काम करने का ज्यादा अनुभव नहीं है। अब टाटा की विरासत को सम्भालने की पूरी जिम्मेदारी उनके कंधों पर आ गई है। ट्रस्ट के अधिकांश सदस्यों ने उन पर पूरा भरोसा जताया है। नोएल टाटा ने भी आश्वस्त किया है कि वह देश की आजादी से पहले स्थापित समूह के संस्थापकों की विरासत को आगे बढ़ाने के लिए तैयार हैं। टाटा ट्रस्ट सामाजिक भलाई के काम करने का एक बेहतरीन माध्यम है। इस पहल को आगे बढ़ाने और राष्ट्र निर्माण में अपनी भूमिका निभाने के लिए खुद को समर्पित कर रहे हैं।
नोएल ने यूनिवर्सिटी ऑफ ससेक्स से पढ़ाई की है। नोएल ने टाटा इंटरनेशनल से अपने करियर की शुरुआत की। 1999 में वे ग्रुप की रिटेल शाखा ट्रेंट के मैनेजिंग डायरेक्टर बनाए गए। इसे उनकी मां सिमोन ने शुरू किया था। 2010-11 में उन्हें टाटा इंटरनेशनल का चेयरमैन बनाया गया। इसके बाद उनके ग्रुप के चेयरमैन बनाए जाने पर चर्चा शुरू हो गई। इस बीच सायरस मिस्त्री ने खुद टाटा ग्रुप का चेयरमैन बनाए जाने की बात कही। इसके बाद सायरस मिस्त्री को टाटा संस के चेयरमैन पद से हटा दिया गया और रतन टाटा ने ग्रुप की कमान संभाली। 2018 में उन्हें टाइटन का वाइस चेयरमैन बनाया गया और 2017 में उन्हें ट्रस्ट के बोर्ड में शामिल किया गया।
रतन टाटा ने दो दशक से भी अधिक समय तक टाटा समूह का नेतृत्व किया और उन्होंने विरासत में मिली 34 सूचीबद्ध और गैर सूचीबद्ध कम्पनियों को लगातार मजबूती प्रदान की। लाइसैंस परमिट राज में फले-फूले औद्योगिक घरानों का प्रभाव लगातार कम होता गया। वहीं टाटा समूह का लगातार मजबूत बने रहना रतन टाटा की बहुत बड़ी उपलब्धि रही। समय के साथ-साथ रतन टाटा ने ग्रुप की कम्पनियों को वैश्विक बाजारों के अनुरूप ढाला और एंग्लो-डच कोरस स्टील और जगुआर, लैंड रोवर का अधिग्रहण किया। इससे टाटा समूह वैश्विक स्तर पर अन्य ग्रुपों के मुुुकाबले काफी आगे खड़ा हो गया। कभी वह दौर था जब सत्ता को टाटा-बिड़ला की सरकारें कहा जाता था। आज भी औद्योगिक घरानों के नाम सत्ता से जोड़े जाते हैं लेकिन टाटा ग्रुप का नाम नहीं जोड़ा जाता।
देश में आर्थिक उदारीकरण की नीतियों की शुरूआत के बाद से ही रतन टाटा ने कारोबारी उपलब्धियां हासिल कीं। टाटा समूह न किसी राजनीतिक दल के करीब रहा न किसी दल के खिलाफ रहा। ऐसा नहीं है कि रतन टाटा को हमेशा सफलता ही मिली। 2008 में आई टाटा नैनो कार एक विफल प्रयोग साबित हुआ। टाटा टेलीकॉम और टाटा कैपिटल को भी ज्यादा सफलता नहीं मिली लेकिन टाटा ग्रुप को रक्षा क्षेत्र, इलैक्ट्रोनिक्स और ईवी सैक्टर में ले गए। टीसीएस उनका सफल उपक्रम रहा। घाटे में चल रही सरकारी विमानन कम्पनी एयर इंडिया का अधिग्रहण करने के बाद एयर इंडिया की प्रतिष्ठा बहाल करने के लिए लगातार कदम उठाए। रतन टाटा अपने उत्तराधिकारी के लिए एक मूल्यवान विरासत छोड़ गए हैं। टाटा ट्रस्ट कम्पनी से प्राप्त लाभांश का उपयोग विभिन्न कल्याणकारी गतिविधियों के लिए करते हैं। हालांकि टाटा समूह की कम्पनियों में पेेशेवर और अनुभवी लोग काम कर रहे हैं लेकिन अंतिम निर्णय का अधिकार अब नोएल टाटा के पास है। रतन टाटा की विरासत अतीत से अधिक भविष्य के बारे में है। भारतीय एवं विश्व अर्थव्यवस्था में नए दौर की शुरूआत हो चुकी है। कई तरह की चुनौतियां सामने हैं। उद्योगपतियों की नई पीढ़ी तेजी से उभर रही हैं। नई दृष्टि और नए तौर-तरीकों के साथ ग्रुप को सम्भालने और उसे आगे बढ़ाने की चुनौतियां नोएल टाटा के सामने रहेंगी। उम्मीद है नोएल सभी जिम्मेदारियों को अपने कौशल से बेहतरीन ढंग से सम्भालेंगे।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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