राज्यों के हो रहे चुनावों में महाराष्ट्र राज्य की विशेष स्थिति है। यह बड़े राष्ट्रीय मुद्दों पर जनता की रायशुमारी का प्रदेश भी जाना जाता है और आर्थिक मुद्दों पर देश की दिशा तय करने वाला राज्य भी जाना जाता है। फिलहाल भारत की कुल अर्थव्यवस्था तीन लाख करोड़ (थ्री ट्रिलियन) समझी जाती है जिसमें एक लाख करोड़ की अकेली हिस्सेदारी महाराट्र की ही है। इस 20 नवम्बर को महाराष्ट्र विधानसभा की 288 सीटों पर चुनाव हो रहे हैं जिनमें असली मुकाबला सत्तारूढ़ महायुति गठबन्धन व विपक्षी इंडिया गठबन्धन के बीच होना है।
इससे पहले जिन दो राज्यों हरियाणा व जम्मू-कश्मीर में चुनाव हुए उनमें एक जम्मू-कश्मीर में इंडिया गठबन्धन विजयी हुआ और दूसरे हरियाणा में भारतीय जनता पार्टी जीती। इस राज्य में सीधी टक्कर कांग्रेस व भाजपा के बीच थी। हरियाणा के चुनाव परिणामों से सभी राजनैतिक पंडित आश्चर्य में पड़ गये क्योंकि यहां पिछले दस साल से भाजपा सत्ता में थी और इसके शासन के खिलाफ लोग खुल कर बोल रहे थे। इसके बावजूद यहां भाजपा की सरकार बनी। राज्य की 90 सदस्यीय विधानसा में भाजपा को 47 व कांग्रेस को 37 सीटें ही मिली। मगर महाराष्ट्र के बारे में अभी तक राजनैतिक पंडितों का मत इंडिया गठबन्धन के पक्ष में माना जा रहा है। इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि पिछले 2019 के विधानभा चुनावों में लोगों ने क्षेत्रीय पार्टी शिवसेना व भाजपा गठबन्धन के पक्ष में मत दिया था। परन्तु भाजपा व शिवसेना के बीच मुख्यमन्त्री पद को लेकर विवाद इतना गहराया कि शिवसेना ने विपक्षी पार्टियों कांग्रेस व राष्ट्रावादी कांग्रेस से हाथ मिलाकर नया महाविकास अघाड़ी गठबन्धन बनाया और अपने नेता उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में तीनों दलों की सांझा सरकार बनाई।
यह सरकार ढाई साल तक चली मगर बीच में ही शिवसेना के बहुमत विधायकों को साथ लेकर एकनाथ शिन्दें ने विद्रोह कर दिया औऱ भाजपा के साथ मिल कर सरकार बना ली। इसके थोड़े लम्बे समय बाद ही राष्ट्रवादी कांग्रेस के विधायकों ने भी अपनी पार्टी के सर्वोच्च नेता औऱ महाराष्ट्र के लौह पुरुष कहे जाने वाले श्री शरद पंवार से उनके भतीजे अजित पंवार के नेतृत्व में विद्रोह किया और भाजपा के साथ गठबन्धन किया। इस गठबन्धन को महायुित का नाम दिया गया। तब से लेकर आज तक महाराष्ट्र में इसी गठबन्धन की सरकार है।
इंडिया गठबन्धन ने इस सरकार को विश्वासघातियों की सरकार तक कहा मगर तथ्य यह है कि विधानसभा में बहुमत वाले महायुित को विधानसभा में चुनौती नहीं दी जा सकती। यह मामला सर्वोच्च न्यायालय भी पहुंचा। न्यायालय ने शिन्दे के नेतृत्व वाली इस सरकार को अवैध तो घोषित किया मगर इसे बर्खास्त करने जैसा कोई निर्देश नहीं दिया। अब हकीकत यह है कि पूरा मामला लोकतन्त्र की सबसे बड़ी अदालत लोगों की अदालत (चुनाव) के सामने है जिसका फैसला 20 नवम्बर को हो जायेगा। परन्तु महाराष्ट्र भारत का कोई सामान्य राज्य नहीं है। इस प्रदेश में एक से बढ़ कर एक सामाजिक क्रान्ति के अग्रदूत हुए हैं। जिनमें महात्मा फुले से लेकर डा. भीमराव अम्बेडकर के नाम लिखे जा सकते हैं। इसके साथ ही शिवाजी महाराज से लेकर शाहू जी महाराज तक के एेसे नाम हैं जिन्होंने राज-काज करते हुए सामाजिक बदलाव के बीज रोपित किये।
शिवाजी महाराज की पुराने संसद भवन परिसर में मूर्ति भी लगी है। यह मूर्ति शिवसेना के आग्रह पर वाजपेयी सरकार के दौरान लगाई गई थी। इसका एक विशेष मन्तव्य था कि शिवाजी ने अपना राज सामान्य किसानों व अन्य छोटा-मोटा धंधा करने वालों की फौज बना कर जमाया था। जिसे हिन्दवी राज का नाम दिया गया था मगर इसका मतलब ‘हिन्दू राज’ नहीं था क्योंकि उनके राज में मुस्लिम सम्प्रदाय के लोग भी ऊंचे-ऊंचे पदों पर आसीन थे खास कर फौज में। महाराष्ट्र की विशेषता इसी तथ्य से आंकी जा सकती है कि एक ओर यहां हिन्दू राष्ट्र के पैरोकार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का मुख्यालय है तो दूसरी तरफ बाबा साहेब अम्बेडकर दीक्षा भूमि है। डा. अम्बेडकर ने उसी नागपुर शहर में 1956 में लाखों अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म की दीक्षा ली थी जहां संघ का मुख्यालय है।
अतः इसी से स्पष्ट है कि महाराष्ट्र की राजनीति कोरे नारों से अलग हट कर वैचारिक व सैद्धान्तिक रही है। 2019 से पहले तक इस राज्य में भाजपा व शिवसेना का गठबन्धन राष्ट्रीय स्तर पर काम करता था जिसे देखते हुए शिवसेना भाजपा से बड़ी सहभागी पार्टी थी। मगर 2014 में यह क्रम पलटा। उस वर्ष में भाजपा को शिवेसना से कुछ अधिक सीटें मिली जिसे देखते हुए मुख्यमन्त्री पद भाजपा के पास गया और देवेन्द्र फण्डनवीस मुख्यमन्त्री बने। इसी प्रकार 2019 के चुनावों में भाजपा को शिवसेना से 75 प्रतिशत अधिक सीटें मिली अतः इस बार भी भाजपा अपना मुख्यमन्त्री चाहती थी जिसे शिवसेना ने स्वीकार नहीं किया और गठबन्धन को तोड़ दिया। जिससे महाविकास अघाड़ी की सरकार गठित हुई और इसके मुखिया शिवसेना के संस्थापक स्व. बाला जी ठाकरे के सुपुत्र उद्धव ठाकरे चुने गये।
यह कमाल राष्ट्रवादी कांग्रेस के सर्वेसर्वा श्री शरद पंवार का था। शरद पंवार ने कभी समझौता न करने वाली दो पार्टियों कांग्रेस व शिवसेना के बीच करार करा दिया था। दरअसल शिववसेना को पूर्ण रूप से राजनैतिक दल बनाने वाले शरद पंवार ही हैं जिन्होंने शिवसेना को कट्टरपंथी हिन्दुत्व के घेरे से बाहर निकाला और कांग्रेस जैसी धर्मनिरपेक्ष पार्टी से इसका मेल कराया। इससे महाराष्ट्र की राजनीति घनघोर मराठावाद से बाहर निकली। अतः महाराष्ट्र के वर्तमान चुनाव दो विचारधाराओं के बीच की सीधी लड़ाई के रूप में उभऱेंगे।
शिवसेना का जन्म 1966 में ही हुआ था। शुरू में इसने मुम्बई शहर में अपनी जड़ें महाराष्ट्रवाद का चोला ओढ़ कर जमाई और मुम्बई शहर से मद्रासियों (दक्षिण भारत के लोगों) को भगाने का आह्वान किया। शिवसेना ने देखते-देखते ही मुम्बई के मजदूरों को भी अपने झंडे तले लेने का अभियान चलाया औऱ कम्युनिस्टों की राह मुश्किल कर दी।
बाद में उत्तर भारतीयों विशेष कर पूर्वी उत्तर प्रदेश व बिहार के लोगों के खिलाफ भी एेसा ही अभियान चला। इस वजह से मैंने ऊपर लिखा है कि शऱद पंवार ने 2019 में इस पार्टी से गठबन्धन करके व कांग्रेस को इसके पाले में खड़ा करके शिवसेना को भारत की मिट्टी की तासीर के अनुसार वास्तविक राजनैतिक दल बनने का अवसर दिया। मगर महाराष्ट्र की भूमि दलितों को भी ऊपर उठा कर बराबरी पर लाने वाली धरती रही है।
यहां रूढ़ीवाद व पोंग पंथी विचारों के खिलाफ भी अलख जगती रही है। इस राज्य में किसानों से लेकर दलितों की अपनी पार्टियां भी रही हैं। इस बार के चुनावों को लेकर इसी वजह से यह राज्य देशवासियों के लिए आकर्षण का विषय बना हुआ है।