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फिर उजड़े सुहाग और माओं की गोद

हंदवाड़ा की मुठभेड़ में शहीद जवानों के परिवारों के आंसू अभी थमे ही नहीं थे कि सोमवार की शाम हंदवाड़ा में हुई मुठभेड़ में तीन सीआरपीएफ जवानों के शहीद होने की खबर आ गई। जंग-ए-मैदान में अभी तक यही कहा जाता है कि लड़ती तो फौज है नाम सरदारों का होता है परन्तु कश्मीर में ऐसा नहीं है।

न जाने तूने कितने घरों के बुझाये हैं दीपक, उजाले हैं छीने, 
हजारों माओं की गोदें उजाड़ी, कई एक तकदीरें पल में बिगाड़ी
सुहागों को मिट्टी में मिलाया है तूने, हजारों को बेघर बनाया है तूने
सरों से उतारी है बहनों की चादर, खिलाई यतीमों को दर-दर की ठोकर।
जब जल, थल और नभ सेना पूरे राष्ट्र में कोरोना वारियर्स का अभिनंदन करने के लिए हैलिकाप्टरों द्वारा अस्पतालों पर पुष्प वर्षा कर रही थी, अस्पतालों के परिसर में सेना का बैंड धुनें बजा रहा था लेकिन कश्मीर के हंदवाड़ा में पाक परस्त आतंकवादी अपनी साजिशों को अंजाम दे रहे थे।
हंदवाड़ा की मुठभेड़ में शहीद जवानों के परिवारों के आंसू अभी थमे ही नहीं थे कि सोमवार की शाम हंदवाड़ा में हुई मुठभेड़ में तीन सीआरपीएफ जवानों के शहीद होने की खबर आ गई। जंग-ए-मैदान में अभी तक यही कहा जाता है कि लड़ती तो फौज है नाम सरदारों का होता है परन्तु कश्मीर में ऐसा नहीं है। जवानों का मनोबल कायम रखने के लिए सेना के अफसर भी जवानों के कंधे से कंधा मिलाकर आतंकवादियों से मोर्चा ले रहे हैं। हंदवाड़ा की मुठभेड़ में शहीद होने वाले पांच जवानों में 21 राष्ट्रीय राइफल्स के कमांडिंग अफसर कर्नल आशुतोष शर्मा, मेजर अनुज सूद भी शामिल है। दो जवान लांस नायक दिनेश सिंह, नायक राजेश कुमार और कश्मीर पुलिस के सब-इंस्पैक्टर समीर अहमद काजी भी शहीद हुए।
वर्ष 2018 में भी सेना के 5 अफसरों को शहादत देनी पड़ी थी। शहादत देने वालों में कर्नल रैंक से लेकर मेजर, कैप्टन और लैफ्टिनैंट रैंक के अधिकारी भी शामिल हैं। अगर हम कश्मीर में आतंकवाद के दौर में इतिहास पर एक नजर दौड़ाएं तो ब्रिगेडियर रैंक के अधिकारियों की शहादत से भी कश्मीर की धरती रक्त रंजित हो चुकी है। सबसे ज्यादा शहादतें सेना को 2010 में देनी पड़ी थी जब उसके दस अफसर शहीद हो गए थे। 2010 की एक अन्य घटना कुपवाड़ा के लोलाब इलाके में हुई थी जब 18 राष्ट्रीय राइफल्स के कमांडिंग अफसर कर्नल नीरज सूद ने अपनी शहादत देकर जवानों का मनोबल कायम रखा था।
2010 की सोपोर मुठभेड़ में कैप्टन देवेन्द्र सिंह और पुलवामा की मुठभेड़ में कैप्टन दीपक शर्मा शहीद हुए थे। हंदवाड़ा की मुठभेड़ में 40 वर्षीय कर्नल आशुतोष सूद आतंकवादियों से जारी मुठभेड़ का हिस्सा नहीं थे पर वे अपने जवानों का हौंसला बढ़ाने की खातिर उनका नेतृत्व करना चाहते थे। ऐसी शहादतों की सूची में कई अफसरों के नाम दर्ज हो चुके हैं। पिछले 32 वर्षों के आतंकवाद के इतिहास में सैन्य अफसरों और जवानों की शहादतों के चलते ही आज कश्मीर आतंकवाद से मुक्ति पाने की ओर अग्रसर है।
‘हिम्मत को परखने की गुस्ताखी मत करना, पहले भी कई बार तूफानों का रुख मोड़ चुका हूं। यह सिर्फ व्हाट्स ऐप स्टेट्स नहीं है, यह शहीद कर्नल आशुतोष शर्मा का व्यक्तित्व का सार है। अफसोस दो बार सेना मैडल से सम्मानित कर्नल शर्मा इस बार खुद आतंकवाद के तूफान का शिकार हो गए। अफसरों और जवानों ने अपनी शहादत देकर लश्कर के खूंखार कमांडर हैदर और उसके साथी को मार गिराया। समूचे राष्ट्र को इनकी शहादत पर गर्व है। धन्य है कर्नल आशुतोष की पत्नी पल्लवी शर्मा, जिसने सुहाग उजड़ने की पीड़ा सहते हए यह कहा कि ‘‘मैं अपने पति की शहादत पर आंसू नहीं बहाऊंगी, उनकी कुर्बानी मेरे लिए और देश के लिए गर्व की बात है, मेरे आंसू उन्हें ठेस पहुंचाएंगे।’’
मुठभेड़ में शहीद हुए मेजर अनुज सूद की चार माह पहले ही शादी हुई। उसके हाथों की मेहंदी भी फीकी नहीं हुई कि पति की शहादत की खबर आ गई। शहीद लांस नायक तो घर के इकलौते चिराग थे। यह सही है कि सरकार शहीदों के परिवारों को सहायता राशि देगी, उनके परिवार के सदस्यों को सरकारी नौकरी का भरोसा ​दिलायेगी लेकिन शहीदों की पत्नियां, माता-पिता और भाई-बहनों का सारी उम्र का दुःख दूर नहीं किया जा सकता। शहीदों की स्मृतियां पत्नी और बच्चों को सारी उम्र रुलाएंगी।
पूरी दुनिया महामारी से निपटने में लगी है, उस वक्त भी पड़ोसी पाकिस्तान आतंकवाद के अपने एजैंडे को रफ्तार दे रहा है। पाकिस्तान खुद भी कोरोना वायरस से बीमार है, उसके पास न दवाइयां हैं न अस्पताल और न ही वेंटिलेटर लेकिन वह अब भी भारत में अशांति और अस्थिरता पैदा करने में लगा हुआ है।  इसके लिए वहां की सरकार और  आईएसआई की मदद से आतंकवादी तंजीमों का बड़ा तंत्र काम कर रहा है।
हिजबुल और लश्कर के आतंकवादी लगातार घुसपैठ कर रहे हैं। अब जबकि जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाई जा चुकी है, राज्य केन्द्र शासित प्रदेश बनाया जा चुका है और वहां आतंकवादी अभी भी सक्रिय हैं तो यह सरकार का कर्त्तव्य है कि वह आतंकवाद का सफाया करने के अभियान को तेजी प्रदान करे। इसमें कोई संदेह नहीं ​कि मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा बलों को फ्री हैंड दे रखा है।
आतंकवाद का पूरी तरह सफाया होने ही वाला है। राष्ट्र सर्वोपरि है। राष्ट्र के मूल्य बचाने हैं तो कश्मीर में पाकिस्तान के षड्यंत्रों को विफल बनाने के लिए निर्णायक कदम उठाने ही होंगे। जीवन में कभी-कभी ऐसे क्षण भी आए हैं जब गुरु गोविन्द सिंह जी जैसे महापुरुषों ने भी आह्वान कियाः
जो तौ प्रेम खेलन का चाव,
 सिर धर तली, गली मेरी आओ।
 आज सिर तली पर रखकर जूझने का वक्त आ गया है लेकिन हमारे सैन्य अफसरों और जवानों की शहादत नहीं बल्कि आतंकवादियों के सिर चाहिए। राष्ट्र अगर चैन से सोता है तो केवल इसलिए कि सीमाओं पर जवान तन कर खड़ा है। शहीदों का बलिदान भुलाया नहीं जा सकता लेकिन राष्ट्र काे समझना होगा कि शहीदों के परिवार का दुःख-दर्द कैसे बांटें। पंजाब केसरी परिवार शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करता है।

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