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कश्मीर में हालात सामान्य होंगे

जम्मू-कश्मीर में स्थिति सामान्य होने के मार्ग में जो लोग और शक्तियां व्यवधान पैदा कर रहे हैं उन्हें निश्चित रूप से राष्ट्रविरोधी ही माना जायेगा क्योंकि ऐसा करके वे उस पाकिस्तान की मदद कर रहे हैं

जम्मू-कश्मीर में स्थिति सामान्य होने के मार्ग में जो लोग और शक्तियां व्यवधान पैदा कर रहे हैं उन्हें निश्चित रूप से राष्ट्रविरोधी ही माना जायेगा क्योंकि ऐसा करके वे उस पाकिस्तान की मदद कर रहे हैं जो कश्मीर को पुनः अंतर्राष्ट्रीय समस्या बनाने का सपना पाल रहा है। केन्द्र की मोदी सरकार ने भारतीय संविधान के तहत ही इसकी संरचना में परिवर्तन करके समूचे भारत के साथ इसका समन्वय पुख्ता करने का प्रयास किया है परन्तु कुछ राजनीतिज्ञ और खुद को ‘खुदाई खिदमतगार’ समझने वाले गैर सरकारी मानवाधिकार संगठन के लोग इस राज्य में लागू धारा 370 को खुदाई फरमान मान बैठे थे और इसकी आड़ में कश्मीर में अलगाववादी तत्वों की ढाल का काम कर रहे थे। इन लोगों ने 370 को ही ‘कमाई’ का जरिया बना लिया था।
धारा 370 को समाप्त करके सरकार ने उन मानवाधिकारों का स्थापन किया है जो इस राज्य के दबे-पिछड़े लोगों को इसके भारत में विलय होने के बाद से नहीं मिल रहे थे। लोकतान्त्रिक अधिकारों के लिए दिन-रात खुद को दुबला दिखाने में माहिर इन कथित खुदाई खुदमतगारों को यह हकीकत नजर नहीं आती कि जम्मू-कश्मीर के आर्थिक-सामाजिक व शैक्षणिक रूप से पिछड़े गुर्जर समुदाय के लोगों को भारतीय संविधान में प्रदत्त राजनैतिक आरक्षण का अधिकार नहीं मिल रहा था, उन्हें यह भी नजर नहीं आता कि राज्य के सफाई कर्मचारियों की नई पीढि़यों को दूसरा कोई और काम न करने देने की छूट कानून बनाकर समाप्त कर दी गई थी। 
राज्य की महिलाओं से भारत के ही किसी दूसरे राज्य के नागरिक के साथ विवाह करने पर अपने नागरिक अधिकारों व पैतृक सम्पत्ति के अधिकारों से बेदखल कर दिया जाता था मगर किसी विदेशी नागरिक के साथ विवाह करने पर उसकी नागरिकता पर कोई अन्तर नहीं पड़ता था। अनुसूचित जाति व जनजाति के लोगों को उनके संवैधानिक अधिकार से धारा 370 के नाम पर वंचित रखा जाता था। एक ही देश में दो संविधान लागू होने से उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता था मगर भारतीय सेनाओं द्वारा अपने देश की भौगोलिक सीमाओं के संरक्षण के लिए उठाये गये कदमों से उन्हें भारी तकलीफ होती थी। 
भारतीय फौज के जांबाज सैनिकों को अत्याचारी और बलात्कारी बताने में ऐसे खुदाई खिदमतगार लफ्फाजी में एक-दूसरे से आगे बढ़ने की होड़ में नजर आते थे और टीवी चैनलों में बैठकर देशभक्त सेना की कटु निन्दा तक करते थे।
 आखिरकार 370 हटने से कश्मीर का क्या नुकसान हुआ है, जरा इस बारे में तो कोई जुबान खोले? बेशर्मी की हदें तब पार हो जाती हैं जब ये लोग कश्मीर के साथ उत्तर-पूर्वी राज्यों के नागालैंड जैसे सूबे का नाम लेते हैं और कहते हैं कि वहां भी तो विशेष व्यवस्था लागू है? 
जरा कोई इनसे पूछे कि संविधान में अनुसूची पांच और छह किस वजह से रखी गई हैं ? इन अनुसूचियों को जब शामिल किया गया था तो संविधान सभा के कुछ सदस्यों ने स्वयं कहा था कि यह संविधान के भीतर संविधान है मगर इसका विरोध किसी ने नहीं किया था क्योंकि ये अनुसूचियां भारत की आदिम जातियों और उनकी परंपराओं के अनुसार जीवन-जीने की छूट देती हैं और उन्हें विकास की धारा में क्रमशः शामिल करने का प्रावधान करती हैं जिसके लिए स्वयं राष्ट्रपति के पास विशेषाधिकार हैं और उनका इस्तेमाल वह राज्यों के राज्यपालों की मार्फत करते हैं। 
भारत की विविधता को समरस रखते हुए एकल राष्ट्र की मजबूती के लिए ये कदम उठाये गये थे। इसके साथ ही संविधान में अनुच्छेद  371 का प्रावधान करके विभिन्न राज्यों की नैसर्गिक विशिष्टता और वहां के लोगों की सांस्कृतिक पहचान को जीवन्त रखने हेतु विशेष प्रावधानों की व्यवस्था की गई किन्तु 370 के तहत जम्मू-कश्मीर को पृथक संविधान देकर और संसद समेत विभिन्न राष्ट्रीय वैधानिक संस्थाओं के अधिकार क्षेत्र सीमित करके हमने समग्र भारतीयता के भाव को संघीभूत करने के मार्ग में व्यवधान खड़ा करने को समायुकूल माना जिसका विरोध स्वयं संविधान लिखने वाले स्व. बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर ने किया था और उन्होंने अनुच्छेद 370 लिखने से मना कर दिया था। 
इसी वजह से पं. नेहरू के मन्त्रिमंडल में शामिल जनसंघ के संस्थापक डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने जब दिसम्बर 1950 में पं. नेहरू द्वारा पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमन्त्री लियाकत अली खां से दोनों देशों के अल्पसंख्यकों के मुद्दे पर समझौता किया तो उन्होंने मन्त्रिमंडल से त्यागपत्र देकर अलग जनसंघ पार्टी बनाई और इसके घोषणापत्र में ही शामिल कर दिया कि वह धारा 370 के खिलाफ हैं और इसे समाप्त किये जाने के पक्षधर हैं क्योंकि एक देश में दो संविधान, दो निशान और दो प्रधान नहीं चल सकते। अतः आज के खुदाई खिदमतगारों को सबसे पहले 370 और 371 के बुनियादी फर्क को समझना चाहिए और फिर अपनी छाती पर हाथ रखकर सोचना चाहिए कि जम्मू-कश्मीर से 370 को हटाना क्यों जरूरी था? असलियत तो यही रहेगी कि इस प्रावधान को हटाने के पक्ष में प्रख्यात समाजवादी चिन्तक डा. राम मनोहर लोहिया भी थे।
 डा. लोहिया पाकिस्तान को लेकर भी बहुत संजीदा थे और उन्होंने सुझाव दिया था कि भारत और पाकिस्तान दोनों का महासंघ बनना चाहिए जिसका समर्थन उस समय जनसंघ के शीर्ष नेता दीनदयाल उपाध्याय ने भी किया था परन्तु इसके बाद पाकिस्तान में फौजी हुकूमत काबिज हो गई थी। अतः प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी के जो लोग व्यक्तिगत रूप से आलोचक हैं वे ही इस राष्ट्रभक्तिपूर्ण और देश को मजबूत बनाने के कदम का विरोध करने की हिमाकत कर सकते हैं और कश्मीर में हालात सामान्य होने में बाधा पैदा करने के प्रयत्न कर सकते हैं। 
सवाल यह नहीं है कि 15 दिन बाद इस सूबे के विभिन्न क्षेत्रों में स्कूल खुलने के बाद उनमें विद्यार्थियों की उपस्थिति क्या रही बल्कि प्रश्न यह है कि स्कूल खोलने का फैसला किया गया और इस यकीन के साथ किया गया कि आम जनता के दिल से वह डर समाप्त होगा जिसे पाकिस्तान और उसके गुर्गे पैदा करना चाहते हैं। राज्य में संचार प्रणाली को पूरी तरह शुरू न करने को लेकर भी आलोचना हो रही है मगर सवाल यह है कि जिस प्रणाली का उपयोग करके पाकिस्तान और उसके हमदर्द राज्य में भोले-भाले लोगों को पत्थरबाज बना रहे थे और उन्हें मुफलिस बनाये रखकर आतंकवाद को पनाह देने का जुर्म कर रहे थे, उनके हौंसले टूटे हैं या नहीं? संचार प्रणाली तो जल्दी ही फिर से शुरू हो जायेगी मगर देश विरोधियों के हौसले तोड़ना तात्कालिक जरूरत है। 
भला आम कश्मीरी जनता डर के साये में क्यों रहे जबकि उसके सामने यह विकल्प खोल दिया गया है कि भारत की फौज उसके नागरिक अधिकारों की सुरक्षा करने के लिए तैनात है और पाकिस्तान परस्त देश विरोधियों को उनकी हैसियत बताने के लिए तैयार है। जो फौज कुछ साल पहले श्रीनगर में आयी बाढ़ से वहां के लोगों को निजात दिलाने में अपनी जान जोखिम में डालकर बाजार से लेकर स्कूल खुलवाने में नागरिक प्रशासन की मदद करती है वह अब अपने मानवीय कर्त्तव्य से किस तरह पीछे हट सकती है। अतः कश्मीर के लोगों को सबसे पहले यह समझना चाहिए कि कश्मीर उनका है और भारत की सरकार संविधान के तहत उनके हकों की निगेहबान है, वे खुद ही अपने नेता हैं और अपने कश्मीर के मुहाफिज हैं। 
इसलिए बेखाैफ-ओ-खतर उन्हें अपने काम धन्धों और रोजाना के काम में लौटकर जवांमर्दी का सबूत देना चाहिए और खुदाई खिदमतगार बने घूम रहे लोगों को पैगाम देना चाहिए कि 370 के नाम पर अपनी दुकानें चलाने वाले सियासतदानों के दिन अब लद गये, अब कश्मीरियों की सियासत के दिन आये हैं। उन्हें भारत के उस संविधान पर पूरा भरोसा है जिसमें हर भारतीय नागरिक को बराबर के अधिकार दिये गये हैं।

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